(मानवी पंत)
कई विकलांगों के लिए रोजमर्रा की जिंदगी जीना आसान नहीं होता। कारण कई हैं जैसे कि अच्छे प्रोस्थेटिक्स तक उनकी सीमित पहुंच, महंगा रखरखाव, सीमित गतिशीलता और जागरूकता की कमी। सामाजिक उपेक्षा एक अलग चुनौती होती है। कल्पना कीजिए कि इस सबके बीच अगर ऐसा कोई कृत्रिम अंग मिल जाए जो शरीर के अंग का ही एक रूप लगे। वह भी ऐसा कि आंख बंद करके भी उसके जरिए किसी वस्तु के संपर्क को महसूस किया जा सके। डॉ. श्रिया श्रीनिवासन का अनूठा नजरिया यही है। वह लोगों को उनकी संवेदना और गतिशीलता को बढ़ाकर एक खुशहाल और स्वस्थ जीवन जीने के लिए सशक्त बनाने में जुटी हैं।
अमेरिका में जन्मी और यहीं पली-बढ़ी श्रिया के माता-पिता ने उनकी अच्छी परवरिश की। शुरुआत से ही उनकी मां गुरु सुजाता श्रीनिवासन ने उनमें भरतनाट्यम नृत्य की तरह कठोरता और अनुग्रह पैदा किया। श्रिया तैराकी और टेनिस खेलने के अलावा पियानो और वायलिन जैसे वाद्ययंत्र बजाने में भी माहिर हैं। चूंकि उनके परिवार के कई सदस्य भारत में रहते थे इसलिए वह हर गर्मियों में अपने दादा-दादी से मिलने जाती थीं। वहां परिवार की कहानियों, घर के बने स्वादिष्ट भोजन और पारिवारिक परंपराओं से उनकी जुड़ाव हुआ।

अपने प्रारंभिक वर्षों में श्रिया ने देखा कि कैसे उनके कुछ दोस्त, परिजन और परिचित न्यूरो मस्कुलर विकारों से पीड़ित होने के बाद जीवन के लिए संघर्ष कर रहे थे। इन अनुभवों ने बायोमेडिकल क्षेत्र विशेष रूप से प्रोस्थेटिक्स के लिए उनके जुनून को बढ़ाया। उन्होंने केस वेस्टर्न रिजर्व यूनिवर्सिटी से बायोमेडिकल इंजीनियरिंग में स्नातक की उपाधि प्राप्त की। प्रतिष्ठित मैसाचुसेट्स इंस्टीट्यूट ऑफ टेक्नोलॉजी (एमआईटी) से डॉक्टरेट किया। एमआईटी में शोधकर्ता के रूप में उन्होंने कृत्रिम अंगों वाले व्यक्तियों को स्पर्श की भावना हासिल करने में मदद के उद्देश्य से दो अभूतपूर्व सर्जिकल तकनीकों का आविष्कार किया। वर्तमान में श्रिया हार्वर्ड विश्वविद्यालय में बायो इंजीनियरिंग की सहायक प्रोफेसर हैं जहां वह हार्वर्ड बायो हाइब्रिड ऑर्गन्स एंड न्यूरोप्रोस्थेटिक्स (बायोनिक्स) लैब की कमान संभालती हैं।
अपने मुख्य मिशन के बारे में श्रिया बताती हैं कि आमतौर पर सर्जिकल क्षेत्र के पेशेवरों को इंजीनियरिंग या वैज्ञानिक श्रेत्र के पेशेवरों से अलग माना जाता है। यह कभी-कभी चिकित्सा उपकरणों के डिजाइन और मानव शरीर के साथ उनके मेल के बीच अंतर पैदा कर देता है। मेरा काम उस अंतर को पाटना है। हार्वर्ड की प्रोफेसर बताती हैं कि एक बार वह प्रोप्रियोसेप्शन की सर्जरी में शामिल थीं। यह तय करता है कि हमारी मांसपेशियों और जोड़ों की संवेदनाएं कैसे काम करती हैं। इस प्रक्रिया से गुजरने वाले रोगियों ने पारंपरिक सर्जरी की तुलना में अपने कृत्रिम अंगों पर अधिक नियंत्रण दिखाया। इस प्रक्रिया को 50 से अधिक रोगियों में लागू किया गया और उनके जीवन में परिवर्तन नजर आया। यह देखना बेहद संतुष्टिदायक रहा है। एक एडवांस कृत्रिम अंग के लिए यह क्षमता रोमांचक है।
उन्नत कृत्रिम अंगों के भविष्य को लेकर श्रिया आशाजनक दिखती हैं क्योंकि वे मरीजों को अधिक प्राकृतिक, सहज और एकीकृत अनुभव प्रदान करते हैं। उन्होंने अपने डिवाइस का उदाहरण देते हुए बताया कि संवेदी प्रतिक्रिया उसके नवाचार में एक महत्वपूर्ण अंतर है। इसे लूप में रखने से चलना और हाथ में हेरफेर करना बहुत आसान हो जाता है। जब निष्क्रिय कृत्रिम अंग उपकरण वाला व्यक्ति चम्मच रखता है तो उन्हें पता नहीं चल पाता कि उन्होंने वाकई उस चीज से संपर्क किया है। हमारी नई सर्जरी तकनीक उन्नत कृत्रिम अंगों को स्पर्श संवेदी बनाती हैं। इससे लोगों को पता चलता है कि उनके कृत्रिम अंग किस चीज को छू रहे हैं। यहां तक कि आंखें बंद होने पर भी वह इसे जान सकते है। यह सर्जिकल तकनीक नसों और मांसपेशियों को जोड़ती है ताकि लोग कृत्रिम उपकरण को महसूस कर सकें।
श्रिया जोर देकर कहती हैं कि शोध का एक महत्वपूर्ण हिस्सा विफलता और उस विफलता पर काबू पाने के बारे में है। किसी उत्पाद का आविष्कार करते समय ऐसे पल आते हैं जब लगता है कि जब हम दीवार से टकराएंगे और उस दीवार के पार जाने या कूदने का तरीका खोजना होगा। जरूरी चीज यह है कि हम निराशा में न घिरें। निराशाओं को संभालने के तरीके बारे में बताते हुए श्रिया कहती हैं कि वह नतीजों से भावनात्मक रूप से नहीं जुड़ती हैं और परिणाम की तुलना में प्रक्रिया पर अधिक ध्यान देती हैं।
श्रिया एक शोधकर्ता और प्रोफेसर होने के अलावा प्रशिक्षित भरतनाट्यम डांसर भी हैं। उन्होंने अपने डांस पार्टनर जोशुआ जॉर्ज के साथ अनुभव डांस कंपनी की स्थापना की है। इसमें उत्तरी अमेरिका में पहली पीढ़ी के भारतीय-अमेरिकी पेशेवर शामिल हैं। उनके अंदर डांस के लिए प्यार अनुसंधान के जुनून जैसा ही है। वह बताती है कि आज कई डांसर मानव शरीर की शारीरिक रचना और शरीर विज्ञान के बारे में पूरी तरह नहीं जानते। नृत्य एक उच्च प्रभाव वाली गतिविधि है इसलिए जब डांसर अपने घुटनों, टखनों और कूल्हों में चोट का अनुभव करते हैं तो वे आमतौर पर ये नहीं जानते कि ऐसा क्यों हुआ और इसका नुकसान कैसे कम किया जाए। ऐसे में हाल ही में मैंने भरतनाट्यम में बायोमैकेनिक्स का मेल किया ताकि डांसर की चोट को कम करने के लिए हमारे शरीर को प्रशिक्षित किया जा सके। अनुभव डांस कंपनी के साथ हम ऐसे उपकरण बनाने पर काम कर रहे हैं कि क्या संवेदी प्रतिक्रिया लोगों को भरतनाट्यम जैसी जटिल कला से बेहतर तरीके से जुड़ने में मदद कर सकती है।
श्रिया पिछले कई सालों से भरतनाट्यम परफॉरमेंस के लिए भारत का दौरा करती रही हैं। उन्होंने चेन्नई में सिम्बायोनिक जैसे स्टार्ट-अप के साथ भी सहयोग किया है ताकि कृत्रिम अंग विकसित करने और उन्हें लोगों के लिए अधिक किफायती बनाने के तरीके खोजने में मदद मिल सके। भारत में स्वास्थ्य सेवा के लिए अनुकूल पारिस्थितिकी तंत्र की कमी है। इसे बदलने के लिए शैक्षिक दृष्टिकोण को सुधारने की आवश्यकता है।
(मानवी पंत एक कहानीकार, लेखक और प्रोफेसर हैं। वह नई दिल्ली इंस्टिट्यूट ऑफ मैनेजमेंट में असिस्टेंट प्रोफेसर हैं।)