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गुलामी और आजादी का गवाह रहा है दिल्ली का चांदनी चौक

बंटवारे के दौरान चांदनी चौक में एक बार फिर खून-खराबा हुआ था। आजादी का पहला जश्न लालकिला के सामने मनाया गया और चांदनी चौक में लोगों ने कई दिनों तक जुलूस निकाले। यह बाजार और इलाका इतना शानदार था कि नामी शायर, गालिब, मीर, जोंक आदि ने यही अपना आशियाना बनाया था।

Photo by Sergio Capuzzimati / Unsplash

भारत की राजधानी नई दिल्ली के पुरानी दिल्ली इलाके का सबसे पुराना बाजार चांदनी चौक देश की गुलामी व आजादी का गवाह रहा है। मुगलकाल में बना और विकसित हुए इस ऐतिहासिक बाजार ने अपनापन भी देखा, एक पागल बादशाह का कत्ले-आम भी झेला तो अंग्रेजों के कब्जे का भी गवाह रहा। यही वह बाजार है, जहां आजादी के दीवाने अंग्रेजों को उखाड़ने की कस्मे खाते थे। जब देश आजाद हुआ तो देश के सबसे बड़े जश्न को भी इस बाजार ने अपनी आंखों से देखा है।

दिल्ली के इतिहास की जानकारी रखने वाले लोग बताते हैं कि मुगल बादशाह शाहजहां ने आगरा छोड़कर जब दिल्ली को राजधानी बनाने का निर्णय लिया तो सबसे पहले उन्होंने यमुना नदी के किनारे लाल किले का निर्माण किया। बादशाह की बेटी जहांआरा ने लाल किला के सामने बाजार बनाने की योजना बनाई थी। जहांआरा ने ही करीब डेढ़ किलोमीटर लंबे इस बाजार का नाम चांदनी चौक रखा, जो फतेहपुरी मस्जिद पर जाकर खत्म होता था। बाजार की परिकल्पना बेहद शानदार थी। पूरे चांदनी चौक बाजार के बीचों-बीच एक नहर बहती थी, जिसके दोनों ओर आसमान चूमते छायादार पेड़, उनके नीचे खूबसूरत दुकानें, जिनमें हीरे जवाहरात से लेकर मिठाई, नमकीन और शर्बत शराब तक की दुकानें थी। बेहद व्यवस्थित तरीके से बनाए गए इस शाहजहांनाबाद में बुलंद दरवाजे भी बनाए गए जो सुरक्षा व आवागमन के लिए बेहद शानदार थे। इन दरवाजों में कश्मीरी गेट, मोरी गेट, तुकर्मान गेट, अजमेरी गेट, लाहौरी गेट, दिल्ली गेट और काबुली गेट शामिल हैं। मुगलकाल में इन्हें गेट के बजाय दरवाजा बोला जाता था।

जब शहजहां का बनाया शाहजहांनाबाद बस रहा था तो राजकाज से जुड़े मंत्रियों व अमीर-उमरा के लिए बाजार के दोनों ओर शानदार हवेलियों का निर्माण किया गया। हवेलियां क्या थी, मान लीजिए कि छोटे-छोटे महल थे। उस दौरान दिल्ली के सबसे अमीर कारोबारी व रईस इन्हीं हवेलियों में रहते थे, उनका सीधे मुगल बादशाह से ताल्लुक था और राजकाज चलाने के लिए वे राजा को फंड भी मुहैया कराया करते थे। अंग्रेजी काल में भी इन रईसों का जलवा कायम रहा। कुछ तो उनमें से अंग्रेजों के बैंकर भी रहे थे। इन बड़ी हवेलियों में में छुन्नामल की हवेली, खजांची की हवेली, बेगम समरू और हवेली आजम खान आज भी मौजूद हैं। हीरे-जवाहरातों का बाजार दरीबां कलां भी मुगलों के शासनकाल में ही बना था। यह बाजार आज भी मौजूद है। जब शाहजहां के बेटे औरंगजेब ने दिल्ली की सत्ता संभाली तब इस बाजार के बुरे दिन शुरू हो गए।

औरंगजेब के शासनकाल के दौरान चांदनी चौक का इतिहास खून में डूबने-उतराने लगा। उसने अपने भाई दारा शिकोह को परास्त कर इसी बाजार में घुमाया और बाद में उसे मारकर चांदनी चौक में उसकी लाश का जुलूस निकाला। उस दौरान चांदनी चौक की रंगत धीरे-धीरे फीकी होने लगी। सब कुछ था इस बााजार में लेकिन सुकून नजर नहीं आता था। चांदनी चौक की कोतवाली में ही गुरु तेग बहादुर शहीद हुए और जहां फौवारा है, वहां भाई मतिदास की हत्या की गई। उस दौरान हालात इतने बिगड़ गए थे कि जो भी लोग शासन के खिलाफ बोलते थे, उन्हें मारकर कोतवाली के बाहर टांग दिया जाता था। हर रोज वहां किसी न किसी की लाश टंगी दिखाई देती थी। औरंगजेब की मौत के बाद तो यह बाजार और शाहजहांनाबाद का कोई वली-वारिस ही नहीं रहा। यहां लगातार आक्रमण होते रहे। ईरानी बादशाह और लुटेरे नादिरशाह द्वारा चांदनी चौक में किया गया कत्ले-आम दिल्ली का एक स्याह पन्ना था। इस पागल बादशाह ने चांदनी चौक की सुनहरी मस्जिद से ही लूट और कत्ले-आम का आदेश दिया था, जिसके बाद उसके बर्बर सैनिकों ने इस बाजार और आसपास की रिहायशी आबादी में हजारों लोगों को मार डाला और भारी लूट की। नादिरशाह करोड़ों रुपये की लूट में अपने साथ कोहिनूर हीरा ओर 'तख्त-ए-ताऊस' (मयूर सिंहासन) भी ले गया था।

मुगल शासन का पतन लाल किला से हुआ और चांदनी चौक एक बार फिर से सुर्खियों में आ गया। वर्ष 1857 में जब अंग्रेजों ने लालकिले पर कब्जा जमाया तो सबसे पहली परेड उन्होंने चांदनी चौक में ही निकाली। अंग्रेजी शासन के दौरान चांदनी चौक में बहने वाली नहर कई जगह से टूट गई थी और उसका पानी रुककर सड़ने लगा था। बताते हैं कि पानी में मच्छर पैदा होने से इलाके में मलेरिया फैलने लगा जिस कारण अंग्रेजों ने नहर में मिट्टी डालकर उसे बंद करा दिया। बाजार के टाउन हाल पर लगा घंटाघर अब नहीं रहा लेकिन उसका नाम अभी तक बरकरार है। इसी घंटाघर के नीचे स्वतंत्रता सेनानियों ने अंग्रेजों को उखाड़ने के लिए कई बार कसमें खाई थी।

देश के बंटवारे के दौरान चांदनी चौक में एक बार फिर खून-खराबा हुआ और शांति बनाने के लिए यहां काफी दिनों तक सेना लगी रही। आजादी का पहला जश्न लालकिला के सामने मनाया गया और चांदनी चौक में लोगों ने कई दिनों तक जुलूस निकाले। यह बाजार और इलाका इतना शानदार था कि नामी शायर, गालिब, मीर, जोंक आदि ने यही अपना आशियाना बनाया था। इस बाजार को आज भी सर्वधर्म भाव स्थल के रूप में भी मान्यता मिली हुई है। लाल किला के सामने शुरू होते ही ऐतिहासिक लाल (जैन) मंदिर और गौरी शंकर मंदिर है। कुछ कदम आगे चलें तो दाईं ओर जहां कभी कुमार सिनेमा था, उसके बगल में अंग्रेजों द्वारा निर्मित गिरजाघर बरकरार है। आगे बढ़ते ही बायीं ओर गुरुद्वारा शीशगंज और उसके बगल में सुनहरी मस्जिद नजर आती है तो आखिर में विशाल फतेहपुरी मस्जिद लोगों का मन मोह लेती है।

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