पूरी दुनिया पर चढ़ा क्रिकेट वर्ल्ड कप का खुमार भले ही 19 नवंबर को उतर गया हो लेकिन बॉलीवुड और क्रिकेट की कहानी कुछ ऐसी है जो लगातार चलती रहती है। बॉलीवुड और क्रिकेट एक-दूसरे का दामन हमेशा थामे रहे हैं। 2023 के वर्ल्ड कप में भारत की फाइनल तक की यात्रा किसी फिल्मी थ्रिलर से कम नहीं थी। फाइनल का अंत भी किसी फिल्मी एंटीक्लाइमेक्स की तरह रहा।

यह सही है कि लाइव मैच का जो रोमांच होता है उसे फिर से नहीं जीया जा सकता अलबत्ता बॉलीवुड में कुछ ऐसी फिल्में बनी हैं जो उसी लाइव रोमांच को फिर से पैदा करने का माद्दा रखती हैं। अगर बॉलीवुड और क्रिकेट की जुगलबंदी पर नजर डालें तो इस फेहरिस्त में सबसे पहले लगान फिल्म का नाम आता है। बॉलीवुड के मिस्टर परफेक्शनिस्ट आमिर खान अभिनीत यह फिल्म आज भी देखने पर उतना ही रोमांच पैदा करती है जैसा किसी थ्रिलर को पहली बार देखने पर होता है।
बेशक, लगान जैसी फिल्म बार-बार नहीं बनती परंतु बार-बार देखी अवश्य जा सकती है। इस फिल्म में उतार-चढ़ाव और रोमांच उतना ही जीवंत है जितना कि किसी हाई-प्रोफाइल मुकाबले में होता है। फिल्म में खेल की पिच पर देशभक्ति की असरदार डोज दी गई है। एक तरफ क्रिकेट का रोमांच और दूसरी तरफ देशभक्ति के फ्यूजन ने इस फिल्म को ऐसे मुकाम पर पहुंचाया है जहां इतने असरदार तरीके से शायद कोई और फिल्म नहीं पहुंच सकी है। इसका सबसे बड़ा कारण यह है कि फिल्म का कैनवस विराट है जो अतीत के संघर्षों से होता हुआ आधुनिकता की जद्दोजहद पर फिल्मी तरीके से जीत हासिल करता है। आशुतोष गोवारिकर की यह फिल्म सामाजिक विषमताओं के बीच भाईचारे और एकता का संदेश देती है।
अभिषेक कपूर की फिल्म 'काई पो चे' चेतन भगत के उपन्यास 'थ्री मिस्टेक्स ऑफ माई लाइफ' पर बनी है। यह फिल्म तीन दोस्तों और उनके संघर्षों की कहानी कहती है। तीन दोस्तों में से एक ईशान क्रिकेट खिलाड़ी है जो आंतरिक राजनीति के चलते नेशनल टीम में जगह नहीं बना पाता लेकिन जिला स्तर पर इतना लोकप्रिय हो जाता है कि उसे कोचिंग मिलने लगे। तीनों दोस्त इसी को अवसर मानकर एक क्रिकेट अकादमी शुरू करते हैं जो लोकल खिलाड़ियों के बीच चर्चित हो उठती है। मगर भूकंप के रूप में आई आपदा इन सबके सपनों को ध्वस्त कर देती है। मगर ईनाम जिस धुन और जुनून से अली को कोच करता है उसकी तरंगें कभी भी किसी को झंकृत कर सकती हैं।
नागेश कुकनून की 'इकबाल' जब चाहे देखने वाली एक वाकई प्रेरक फिल्म है। फिल्म एक बहरे और गूंगे युवक की कहानी है। इस किरदार को श्रेयस तलपड़े ने निभाया है। फिल्म खिलाड़ी के संघर्षों को तो पेश करती ही है यह भी दर्शाती है कि किसी खिलाड़ी का परिवार एक प्रतिभा को जमीन से आसमान तक पहुंचाने के लिए क्या कुर्बानी देता है। यह फिल्म उदीयमान प्रतिभाओं की आर्थिक जद्दोजहद को भी वास्तविकता के साथ परदे पर उतारती है।
भारतीय क्रिकेट टीम के पूर्व कप्तान और आज भी इस खेल के लिए प्रेरणा हैं महेंद्र सिंह धोनी। उनकी बायोपिक है एमएस धोनी : द अनटोल्ड स्टोरी। जैसा कि नाम से ही जाहिर है यह फिल्म एक साधारण से परिवार के उस बच्चे की कहानी है जिसमें क्रिकेट को लेकर स्कूली दिनों से ही जुनून था। छोटे से शहर से निकलकर, घर-परिवार की वास्तविक बंदिशों को पार करके और एक मध्यवर्गीय पिता की इच्छा-आकांक्षाओं को साथ लेकर जमीन से आसमान तक के धोनी के सफर को यह फिल्म एक प्राकृतिक फ्लो में दर्शकों के सामने लाती है। सुशांत राजपूत ने माही यानी धोनी का किरदार बखूबी निभाया है। फिल्मी परदे पर दिखने वाला रोमांस भी माही के जीवन का हिस्सा रहा है। कई बार विश्व विजेता बने कप्तान एमएसडी की यह बायोपिक इस बात का प्रमाण है कि अगर प्रतिभा है तो साधारणता से उत्कृष्टता हासिल की जा सकती है।

अक्षय कुमार स्टारर 'पटियाला हाउस' का जिक्र यहां इसलिए अनुकूल लगता है क्योंकि यह भारतीय फिल्मों और क्रिकेट के एक अलग पहलू को सामने लाती है। और वह पहलू है एनआरआई खिलाड़ियों की प्रतिभा। रचिन रविंद्र जैसे खिलाड़ी आज न्यूजीलैंड की नेशनल टीम का हिस्सा हैं तो केशव महाराज दक्षिण अफ्रीका के। ये खिलाड़ी दुनिया को बताते हैं कि जब क्रिकेट की बात आती है तो भारतीयों से बेहतर कोई नहीं है।
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