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बिशन सिंह बेदीः फिरकी के फनकार

ऐसे व्यक्ति के बारे में कहने के लिए कुछ और शब्द नहीं बचा है, जिसे अपने जीवनकाल में "स्पिन के बादशाह" के रूप में पहचाना गया था। बिशन सिंह बेदी भले ही सांसारिक जीवन के 77 वर्ष पूरे करने के बाद हमें छोड़कर चले गए हों, लेकिन हमारे पास उनसे जुड़ी यादें हमेशा रहेंगी।

बिशन सिंह बेदी। फोटो ICC Twitter

(प्रभजोत सिंह)

बिशन सिंह बेदी, जिन्हें बाएं हाथ से स्पिन गेंदबाजी को एक अलग मुकाम तक पहुंचाया, अब हमारे बीच नहीं हैं। एक दिवंगत आत्मा के बारे में उसके करीबी प्रिय लोग और परिवार के सदस्य क्या कहते हैं, इससे बेहतर श्रद्धांजलि क्या हो सकती है।

बिशन सिंह बेदी ने बाएं हाथ की स्पिन गेंदबाजी को अलग मुकाम तक पहुंचाया। फोटो साभार सोशल मीडिया

"यह पापा के मिजाज में नहीं था कि इस तरह की अल्टिमेट स्पिन बॉल से हम सबको आउट कर दें, यह कुछ ऐसा था जिसका हम अंदाजा भी नहीं लगा पाए।

उनके जाने से हम सदमे में हैं और दुख से उबरने की कोशिश कर रहे हैं, ऐसे हमें यह जानकर सांत्वना मिलती है कि उन्होंने एक समृद्ध, निडर और पूर्ण जीवन जीया। ऐसा जीवन जिसने कई लोगों को प्रेरित किया। प्यार का हर संदेश हमें प्रेरणा देता है, चाहे वो सार्वजनिक रूप से हो या व्यक्तिगत रूप से।

उनके धैर्य, हास्य और बड़े दिल का जश्न मनाने के लिए सभी को धन्यवाद। यह देखना दिल को छू लेने वाला है कि पिताजी ने अपने जीवन के माध्यम से कितनी पीढ़ियों को प्रेरित किया। उनके जीवन का हर दिन अपने परिवार और विश्वास के प्रति समर्पण तथा अपने वाहेगुरु की सेवा में व्यतीत हुआ। वह एक ऐसे जीवन के प्रतीक थे, जो निरभऊ निरवैर था। हमें यह जानकर सुकून मिलता है कि वह अब अपने परमात्मा के पास हैं।

पिताजी, हम धन्य हैं कि हमें आपके जैसा निडर पिता मिला। हम आपके आदर्श वाक्य से जीने का प्रयास करेंगे- गौर से देखो और आत्मसात करो। इसी महानता के साथ हमारा मार्गदर्शन करते रहना।

प्यार और विश्वास के साथ-
अंजू बेदी, अंगद, मेहर, गुरिक, नेहा, गौतम, सुहावी।"

ऐसे व्यक्ति के बारे में कहने के लिए कुछ और शब्द नहीं बचा है, जिसे अपने जीवनकाल में "स्पिन के बादशाह" के रूप में पहचाना गया था। बिशन सिंह बेदी भले ही सांसारिक जीवन के 77 वर्ष पूरे करने के बाद हमें छोड़कर चले गए हों, लेकिन हमारे पास उनसे जुड़ी यादें हमेशा रहेंगी।

एक ऐसा व्यक्ति, जिसने सटीक स्पिन गेंदबाजी के साथ अपनी अलग पहचान बनाई, जिसमें विविधता और उड़ान शामिल थी, जो अपने समय के सबसे शक्तिशाली बल्लेबाजों में भी खौफ भर देते थे। वह एक सेनानी, एक महान चैलेंजर और सबसे ऊपर एक अद्भुत इंसान और सच्चे खिलाड़ी थे।

67 टेस्ट मैचों की उनकी पारी ने उन्हें 266 विकेट दिलाए, जो उनके समय तक कोई भी भारतीय गेंदबाज हासिल नहीं कर पाया था। उन्होंने नॉर्थम्प्टनशायर के लिए खेलते हुए काउंटी क्रिकेट में 1250 से अधिक विकेट लेने का गौरव भी हासिल किया था। यह इंग्लिश काउंटी क्रिकेट में किसी भी भारतीय खिलाड़ी का अधिकतम स्कोर है।

उन्होंने 22 टेस्ट मैचों में भारत का नेतृत्व किया और उनमें से छह जीते। एकदिवसीय अंतरराष्ट्रीय मैचों में भारत की पहली जीत भी उनकी कप्तानी में आई, जब भारत ने पूर्वी अफ्रीका को हराया था। तब बिशन सिंह बेदी पूर्वी अफ्रीकी बल्लेबाजी के लिए आतंक से कम नहीं थे।

वह एक योद्धा थे। महान बल्लेबाज नहीं थे। लेकिन उन्होंने नाइट वॉचमैन के रूप में कुछ शानदार पारियां खेलीं। एक बार कीवी स्पिनर - पीटर पेथेरिक को छक्के जड़कर बेहतरीन अर्धशतक भी बनाया था। कभी-कभी वह टीम के लिए कुछ उपयोगी रन बनाने के लिए अपने बल्ले को घुमाना भी पसंद करते थे।

वह एक शानदार इंसान थे। जब वह पाकिस्तान में थे, तब उन्होंने कराची के एक अस्पताल में जिंदगी के लिए जूझ रहे एक लड़के के लिए रक्तदान में समय नहीं लगाया। उस समय बिशन को कोई नहीं पहचान पाया था और इस तरह उन्होंने मानवीयता से भरे अपने महान कार्य से एक बच्चे की जान बचा ली थी।

सक्रिय क्रिकेट से संन्यास लेने के बाद बिशन उस खेल को कुछ वापस लौटाना चाहते थे जिसने उन्हें सुपरस्टार बना दिया था। उन्होंने न केवल भारत बल्कि अपने गृह राज्य पंजाब में कोचिंग भी दी। उन्होंने पंजाब की युवा टीम को 1992-93 में प्रतिष्ठित रणजी ट्रॉफी में जीत के पोडियम तक पहुंचाया था। उन्होंने दिल्ली को लगातार चार साल तक रणजी चैंपियन बनाने में महत्वपूर्ण भूमिका निभाई थी।

बिशन एक साहसी, ईमानदार और दिल से सच्चे खिलाड़ी थे। अर्जुन पुरस्कार विजेता संघ के सक्रिय सदस्य के रूप में उन्होंने अपनी सेवानिवृत्ति के बाद खिलाड़ियों की भलाई के लिए कई प्रोजेक्ट शुरू किए।

वह फिटनेस फ्रीक थे। राष्ट्रीय और राज्य स्तरीय खिलाड़ियों और उनके सभी ट्रेनी को पता था कि बिशन एक कठिन टास्क मास्टर हैं और फिटनेस से कभी समझौता नहीं करेंगे।

वह अपने सिद्धांतों पर अडिग रहते थे। पेशेवर और नैतिक तरीके से चीजों को करते थे। यही कारण था कि वह सच्ची बात को सीधा मुंह पर बोलने में कभी संकोच नहीं करते थे। उन्हें एक विद्रोही के रूप में जाना जाता था। उन्होंने अपने सिद्धांतों से समझौता करने के बजाय लोगों और संगठनों से अलग होना पसंद किया। यही बात बिशन को उनके साथ के लोगों से अलग करती है।

जो लोग उनके सिद्धांतों और प्रोफेशनल व्यवहार को महत्व देते थे, वो उनकी कसम तक खाते थे। ऐसे ही एक प्रशंसक उनके पूर्व टेस्ट सहयोगी और पाकिस्तान के ऑलराउंडर इंतिखाब आलम थे। क्रिकेट जगत में 'इंति' के नाम से मशहूर थे और पंजाब रणजी ट्रॉफी से भी जुड़े रहे थे।

यह महज संयोग हो सकता है कि कुछ महीने पहले ही बिशन ने हम सभी को अलविदा कहा था। उन्होंने ऐतिहासिक गुरुद्वारा करतारपुर साहिब में इंतिखाब आलम से मुलाकात की थी। व्हीलचेयर पर होने के बावजूद, बिशन अपने पुराने दोस्त इंती से मिलने को लेकर बेहद उत्साहित थे।

उनकी दोस्ती महान थी। मैं नियमित रूप से उनसे बातचीत करता था। हाल ही में हम फोन पर संपर्क में थे। मुझे अभी भी याद है कि जब मैंने उन्हें द ट्रिब्यून में अपना कॉलम फिर से शुरू करने के लिए राजी किया था। उनके साहसिक और निडर लेखन ने जब क्रिकेट कंट्रोल बोर्ड और सरकार दोनों में कई लोगों खासकर उच्च अधिकारियों को परेशान कर दिया था, तब उन्होंने लिखना बंद कर दिया था। लेकिन वह कभी झुके नहीं क्योंकि वह खिलाड़ियों और खेल के लिए अकेले लड़ने वाले योद्धा थे।

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