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राष्ट्रवाद-हिंदुत्व ही नहीं, ये है नॉर्थ-ईस्ट के चुनावों में BJP की जीत का मोदी मंत्र

चुनाव नतीजों में जीत के बाद पीएम मोदी ने कार्यकर्ताओं को संबांधित करते हुए विरोधियों पर तंज कसा और कहा कि कुछ लोग कहते हैं कि मर जा मोदी, लेकिन देश कहता है कि मत जा मोदी। कुछ लोग कहते हैं मोदी तेरी कब्र खुदेगी, लेकिन बीजेपी लगातार बढ़ती जा रही है।

प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी और जीत का जश्न मनाते समर्थक (फोटो ट्विटर)

भारत में नॉर्थ-ईस्ट के तीन राज्यों में हुए विधानसभा चुनाव में प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी की भारतीय जनता पार्टी (BJP) ने एक बार फिर दिखा दिया है कि विकास से जुड़ी योजनाएं, राष्ट्रवाद और हिंदुत्व के बल पर वह अब ऐसे राज्यों में भी आगे बढ़ रही है, जहां पहले कभी उसे अछूत माना जाता था। इन आदिवासी और ईसाई बहुल राज्यों में बीजेपी अपने ‘टारगेट’ से नहीं भटकी और उसने एक बार फिर जता दिया कि भारत के अधिकतर राज्यों के लोग उस पर विश्वास करते हैं।

तीनों राज्यों में बीजेपी का जलवा
नॉर्थ-ईस्ट के तीन राज्यों में हुए चुनाव के परिणाम गुरुवार को आ गए। इनमें त्रिपुरा और नागालैंड में बीजेपी स्पष्ट रूप से सरकार बना रही है तो मेघालय में वह अलायंस के साथ सरकार में जुड़ रही है। त्रिपुरा में बीजेपी अपनी सरकार को बनाए रखेगी तो नागालैंड में वह नेशनलिस्ट डेमोक्रेटिक प्रोग्रेसिव पार्टी (NDPP) के नेतृत्व वाले सत्तारूढ़ गठबंधन के साथ एक बार फिर से सरकार बनाने जा रही है। मेघालय में बीजेपी वहां फिर से अपने पुराने सहयोगी नेशनल पीपुल्स पार्टी (NPP) के साथ मिलकर सरकार बनाएगी, जबकि चुनाव से पहले इन दोनों पार्टियों ने अलग-अलग चुनाव लड़ा था। लेकिन इनमें फिर से गठबंधन हो गया है। सीधा सा अर्थ यही है कि यहां बीजेपी का अपना एजेंडा काम कर गया है।

अन्य नॉर्थ-ईस्ट राज्यों में भी बीजेपी की बढ़त
विशेष बात यह है कि इन तीनों राज्यों के अलावा नॉर्थ-ईस्ट के अन्य राज्यों में भी बीजेपी का परचम लहरा रहा है। हाल के वर्षों में पार्टी ने इस क्षेत्र में असम से लेकर अरुणाचल प्रदेश और मणिपुर तक उल्लेखनीय प्रदर्शन किया है। वर्ष 2016 में असम के चुनाव में बीजेपी ने जीत हासिल कर राज्य में कांग्रेस के 15 साल के शासन को खत्म किया था। उसी वर्ष अरुणाचल प्रदेश में बीजेपी ने ‘खेल’ कर अपनी सरकार बना ली तो साल 2017 में बीजेपी ने मणिपुर राज्य को भी फतह कर लिया था। खास बात यह रही कि पांच वर्ष पहले त्रिपुरा विधानसभा के चुनाव में भी बीजेपी ने जीत हासिल करके राज्य में 25 साल के लेफ्ट पार्टी के शासन को खत्म कर दिया। इसके अलावा पांच साल पूर्व ही बीजेपी ने मेघालय व नागालैंड में जूनियर पार्टी बनकर गठबंधन सरकार बनाई। फिलहाल नॉर्थ-ईस्ट के सिक्किम और मिजोरम में क्षेत्रीय दलों की सरकार है, बाकी राज्यों में बीजेपी का जलवा चल रहा है।

राष्ट्रवाद व हिंदुत्व के अलावा विकास योजनाएं
आखिर इन राज्यों में ‘अछूत’ सी रही बीजेपी अचानक ‘सर्वग्राही’ कैसे हो गई? असम और त्रिपुरा हिंदू-बहुसंख्यक राज्य हैं लेकिन पूर्वोत्तर के बाकी राज्यों के अधिकतर हिस्सों में आदिवासी और ईसाई बहुसंख्यक हैं। यहां बीफ खाया जाता है जिसके खिलाफ बीजेपी अभियान चलाती रही है। यहां हिंदी भाषा भी नहीं बोली जाती और हिंदुत्व को लेकर हाल तक इन राज्यों में बीजेपी को हिकारत की नजरों से देखा जाता था। लेकिन ऐसा क्या हुआ कि यहां ‘भगवा’ लहराने लगा है। असल में इसके पीछे बीजेपी की लंबी लड़ाई और रणनीति भी है। जब भारत में अटल बिहारी वाजपेयी के नेतृत्व वाली बीजेपी सरकार थी तो उसने नॉर्थ-ईस्ट राज्यों के विकास के लिए एक प्रभावी केंद्रीय मंत्रालय बनाया था और वहां सद्भावना बनाने के लिए कई कार्य किए थे। वर्ष 2014 में आई नरेंद्र मोदी के नेतृत्व वाली बीजेपी सरकार ने इन राज्यों के लिए सड़क, रेल, बिजली व उद्योग आदि के लिए नई योजनाएं बनाईं और पुरानी परियोजनाओं को अमल में लाने में तेजी दिखाई। इन राज्यों में भेजे जाने वाले केंद्रीय बजट ने भी राज्यों में विकास को आगे बढ़ाया जिसका परिणाम अब नजर आने लगा है।

राजनैतिक 'खेला' भी खूब किया बीजेपी ने
नॉर्थ-ईस्ट के राज्यों में बीजेपी ने राजनैतिक ‘खेला’ भी खूब किया। असम में कांग्रेस के प्रभावी नेता हिमंत बिस्वा सरमा को पार्टी में शामिल कर लिया। मणिपुर में कांग्रेस के एन बीरेन सिंह और अरुणाचल प्रदेश के नेता पेमा खांडू को अपनी पार्टी में ले लिया। ये तीनों नेता वहां अब बीजेपी की ओर से इन राज्यों का नेतृत्व कर रहे हैं। इन राज्यों में अपने को आगे बढ़ाने के लिए और यहां के क्षेत्रीय भूगोल को देखते हुए बीजेपी ने क्षेत्रीय दलों से गठबंधन करने में परहेज नहीं किया। यह भी गौरतलब है कि नॉर्थ-ईस्ट के राज्यों में बीजेपी का वैचारिक संगठन राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ (RSS) सालों से मेहनत कर रहा था। वहां के आदिवासी इलाकों में हजारों सेवकों की हत्या हुई, लेकिन संगठन ने हार नहीं मानी और हिंदुत्व व राष्ट्रवाद की लौ को जिलाए रखा। केंद्र में बीजेपी की सरकार बनने के बाद आरएसएस ने तेजी दिखाई और वहां के स्थानीय लोगों को बीजेपी की ओर मोड़ने में जबर्दस्त कामयाब रही। स्थानीय लोगों को लगने लगा कि अब बीजेपी ही उनका और राज्य का वाकई भला कर सकती है। वहां लगातार बढ़ रहे विकास कार्यों ने उनकी इस सोच को और मजबूत किया।

फिलहाल बीजेपी के लिए सालों तक अछूत रहे नॉर्थ-ईस्ट के राज्य अब इस पार्टी के लिए ‘वंदनवार’ बन गए हैं। विपक्ष हैरान है और समझ नहीं पा रहा कि हिंदी बेल्ट की एक पार्टी इन राज्यों में लगातार अपना विस्तार कैसे कर रही है। हैरानी की बात तो है ही, बड़ी बात यह भी है कि ऐसे राज्यों में बीजेपी ने अपनी आइडियोलॉजी को तिलांजलि नहीं दी और प्रत्यक्ष या परोक्ष रूप से उसे बनाए रखा। बस हुआ यह कि केंद्र में उसकी सरकार आने के बाद इन राज्यों में विकास योजनाओं में तेजी आई, जिसका परिणाम गुरुवार को तीन राज्यों में आए चुनाव परिणाम बता रहे हैं।

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