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मातृभाषा दिवस पर UN में अरविन्द घोष, विवेकानंद का क्यों हुआ जिक्र

रुचिरा ने कहा कि भारत के महान दार्शनिकों ने भाषा के महत्व पर विधिवत जोर दिया है। श्री अरविन्द का मानना था कि बच्चों के शिक्षण और सीखने का आधार मातृभाषा होनी चाहिए। इसी तरह स्वामी विवेकानंद ने शरीर, मन और आत्मा की समग्र तैयारी के लिए आत्मज्ञान पर जोर दिया था।

Photo by Mathias Reding / Unsplash

21 फरवरी को अंतरराष्ट्रीय मातृभाषा दिवस के मौके पर यूनाइटेड नेशन मुख्यालय में भारत की स्थायी प्रतिनिधि रुचिरा कंबोज ने हिंदी में वक्तव्य दिया। रुचिरा ने अपने संक्षिप्त वक्तव्य में श्री अरविन्द घोष और स्वामी विवेकानंद के बयानों का जिक्र किया और अंतरराष्ट्रीय मातृभाषा दिवस की बधाई दी।

रुचिरा ने कहा कि भारत के महान दार्शनिकों ने भाषा के महत्व पर विधिवत जोर दिया है। File photo

रुचिरा ने कहा कि भारत के महान दार्शनिकों ने भाषा के महत्व पर विधिवत जोर दिया है। श्री अरविन्द का मानना था कि बच्चों के शिक्षण और सीखने का आधार मातृभाषा होनी चाहिए। इसी तरह स्वामी विवेकानंद ने शरीर, मन और आत्मा की समग्र तैयारी के लिए आत्मज्ञान पर जोर दिया था।

साल 2023 के लिए अंतरराष्ट्रीय मातृभाषा दिवस की थीम ‘बहुभाषी शिक्षा के लिए प्रौद्योगिकी का उपयोग: चुनौतियां और अवसर’ रखी गई है। भारत में हिंदी सबसे ज्यादा बोलने वाली भाषा है। विश्व में सबसे ज्यादा बोली जाने वाली भाषाओं में हिंदी चौथे स्थान पर है।

भारत के प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी भी वैश्विक मंचों पर हिंदी भाषा में भाषण देते हैं। हिंदी के महत्व पर एक बार उन्होंने कहा था कि भाषा किसी के मूल्यांकन का आधार नहीं हो सकती। पीएम मोदी अंग्रेजी माध्यम से शिक्षा हासिल करने वाले छात्रों के माता-पिता से भी अनुरोध कर चुके हैं कि वे अपने बच्चों से घरों में मातृभाषा में बात किया करें।

संयुक्त राष्ट्र के अनुसार हर दो हफ्ते में एक भाषा गायब हो रही है। Photo by Bernd 📷 Dittrich / Unsplash

क्यों मनाया जाता है अंतरराष्ट्रीय मातृभाषा दिवस

संयुक्त राष्ट्र के अनुसार हर दो हफ्ते में एक भाषा गायब हो रही है। वर्तमान में दुनियाभर में बोली जाने वाली करीब 6900 भाषाएं हैं। इनमें से 90 प्रतिशत भाषाओं को बोलने वाले लोग एक लाख से भी कम हैं। अंतरराष्ट्रीय मातृभाषा दिवस मनाने का उद्देश्य दुनियाभर की सभी भाषाओं को न सिर्फ सम्मान देना है बल्कि लुप्त होतीं मातृभाषाओं के संरक्षण के लिए गंभीर प्रयास करना है।

यूनेस्को ने मातृभाषा दिवस मनाने की घोषणा 17 नवंबर 1999 के दिन की थी और पहली बार साल 2022 में इस दिन को अंतरराष्ट्रीय मातृभाषा दिवस के रूप में मनाया गया था। इस दिवस की शुरुआत बांग्ला भाषा आंदोलन के दौरान हुई थी। कनाडा में रहने वाले बांग्लादेशी रफीकुल इस्लाम ने 21 फरवरी को अंतरराष्ट्रीय मातृभाषा दिवस मनाने का सुझाव दिया था।

दरअसल ढाका यूनिवर्सिटी के छात्रों और सामाजिक कार्यकर्ताओं ने अपनी मातृभाषा का अस्तित्व बनाए रखने के लिए 21 फरवरी 1952 को एक बड़ा आंदोलन किया था। तत्कालीन पाकिस्तान सरकार ने उस आंदोलन को दबाने के लिए प्रदर्शनकारियों पर गोलियां चलवा दी थीं। इस आंदोलन में करीब 16 लोगों की मौत हुई थी। भाषा के लिए हुए इस बड़े आंदोलन में शहीद युवाओं की याद में ही यूनेस्को ने साल 1999 में 21 फरवरी को मातृभाषा दिवस मनाने का फैसला किया।

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