भारत के प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने हिंदू ह्रदय सम्राट स्वामी विवेकानंद द्वारा शिकागो में विश्व धर्म संसद में दिए गए प्रतिष्ठित भाषण को आज याद किया। दरअसल आज यानी 11 सितंबर 1893 के दिन उन्होंने अपना ऐतिहासिक भाषण दिया था।
प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने एक्स पर पोस्ट करते हुए लिखा कि 130 साल पहले इसी दिन दिया गया स्वामी विवेकानन्द का शिकागो भाषण आज भी वैश्विक एकता और सद्भाव के आह्वान के रूप में गूंजता है। मानवता के सार्वभौमिक भाईचारे पर जोर देने वाला उनका कालातीत संदेश हमारे लिए मार्गदर्शक बना हुआ है।
Swami Vivekananda's Chicago speech, delivered on this day 130 years ago, resonates even today as a clarion call for global unity and harmony. His timeless message, emphasising the universal brotherhood of humanity, remains a guiding light for us. https://t.co/1iz7OgT5Ab
— Narendra Modi (@narendramodi) September 11, 2023
नरेंद्र मोदी के इस पोस्ट पर लाखों की संख्या में इंप्रेशन आए और हजारों की संख्या पर इस पोस्ट को लाइक किया गया। दरअसल 11 सितंबर 1893 को शिकागो में विश्व धर्म संसद में स्वामी विवेकानंद द्वारा दिए गए ऐतिहासिक भाषण ने पश्चिमी दुनिया को हिंदू धर्म और भारतीय आध्यात्मिकता के बारे में अवगत कराया था। विवेकानन्द ने अपना भाषण प्रसिद्ध शब्दों 'अमेरिका की बहनों और भाइयों' के साथ शुरू किया था।
यह हैं स्वामी विवेकानंद के भाषण के कुछ अंश
- अमेरिका की बहनों और भाइयों आपने जो गर्मजोशी और सौहार्दपूर्ण के साथ स्वागत किया है उसके जवाब में उठकर मेरा दिल अवर्णनीय खुशी से भर गया है। मैं दुनिया में भिक्षुओं के सबसे प्राचीन संप्रदाय की ओर से आपको धन्यवाद देता हूं। मैं धर्मों की जननी की ओर से आपको धन्यवाद देता हूं और सभी वर्गों और संप्रदायों के लाखों-करोड़ों हिंदू लोगों की ओर से आपको धन्यवाद देता हूं।
- मुझे ऐसे धर्म से होने पर गर्व है जिसने दुनिया को सहिष्णुता और सार्वभौमिक स्वीकृति दोनों सिखाई है। हम न केवल सार्वभौमिक सहिष्णुता में विश्वास करते हैं बल्कि हम सभी धर्मों को सत्य के रूप में स्वीकार करते हैं।
- अब तक आयोजित सबसे प्रतिष्ठित सभाओं में से एक आज का यह सम्मेलन गीता के उस उपदेश की पुष्टि करता है जिसमें लिखा है कि जो कोई भी मेरे पास आता है, चाहे किसी भी रूप में हो, मैं उस तक पहुंचता हूं। सभी मनुष्य उन रास्तों से संघर्ष कर रहे हैं जो अंततः मुझ तक पहुंचते हैं।
- सांप्रदायिकता, कट्टरता और इसको पालने वाले इनके वंशजों ने लंबे समय से इस खूबसूरत पृथ्वी को कब्जा कर रखा है। उन्होंने पृथ्वी को हिंसा से भर दिया है। इसे बार-बार मानव रक्त से सराबोर किया है, सभ्यता को नष्ट कर दिया है और पूरे राष्ट्र को निराशा में भेज दिया है।
- ईसाई को हिंदू या बौद्ध नहीं बनना है और न ही हिंदू या बौद्ध को ईसाई बनना है। लेकिन प्रत्येक को दूसरों की भावना को आत्मसात करना होगा।
- जिस प्रकार नदी की अलग-अलग धाराओं के अलग-अलग स्थान होते हैं और वे आखिर में अपना पानी समुद्र में मिला देती हैं। उसी तरह मनुष्य भी ईश्वर को पाने के लिए अलग-अलग प्रवृत्तियों में अलग-अलग रास्ते अपनाता है। भले ही वे टेढ़े या सीधे दिखाई देते हों लेकिन वे रास्ते ईश्वर तक पहुंचाते हैं।
- आइए हम सब उस ईश्वर के उपदेशक बनें और अनावश्यक चीजों पर झगड़ा न करें।
बता दें कि शिकागो में 130 साल पहले इसी दिन दिया गया स्वामी विवेकानन्द का यह ऐतिहासिक भाषण आज भी वैश्विक एकता और सद्भाव के आह्वान के रूप में गूंजता है।