भारत में अगले साल होने वाले लोकसभा चुनाव को लेकर सत्तारूढ़ बीजेपी समेत विभिन्न विपक्षी दलों ने रणनीति बनानी शुरू कर दी है। इस चुनाव को लेकर बीजेपी और उसके सहयोगी दलों में फिलहाल तालमेल नजर आ रहा है। दूसरी ओर विपक्षी दल प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी और उनकी पार्टी बीजेपी को हराने के लिए एकजुट होने का प्रयास तो कर रहे हैं, लेकिन उनकी यह ‘मेहनत’ फिलहाल सफल होती नजर नहीं आ रही है। बड़ी बात यह है भारत में विपक्षी दलों के नेता ऐसा गठबंधन बनाने की कोशिश में लगे हैं, जिसमें देश की प्रमुख विपक्षी पार्टी कांग्रेस शामिल न हो। इस मसले पर विपक्षी दलों में लगातार रस्साकशी चल रही है।
भारत में लोकसभा का चुनाव ही अगली सरकार का चेहरा तय करता है। इसमें जिस पार्टी या उससे जुड़े गठबंधन को जीत मिलती है, वह अधिकतम पांच साल तक देश की बागडोर संभालता है। बीजेपी लोकसभा के पिछले दो चुनाव जीत चुकी है और लगातार तीसरी बार जीत के लिए जुटी हुई है। बीजेपी और उसके नेता आश्वस्त हैं कि पार्टी इस बार भी जीत का सेहरा अपने सिर बांध लेगी। बीजेपी को फिर से सत्ता में न आने देने की कवायद में जुटे विपक्षी दलों के नेता भी मान रहे हैं कि बीजेपी को हराने के लिए जब तक सभी दल एक नहीं होंगे, तब तक सत्ता की चाबी विपक्ष के पास नहीं आ पाएगी। हालांकि अभी तक के समीकरण यही बता रहे हैं कि विपक्षी दलों को एक होने में खासी परेशानी हो रही है। वे अपनी इस एकता से कांग्रेस के किनारे रखने का प्रयास कर रहे हैं। लेकिन बड़ा सवाल यह है कि क्या कांग्रेस के बिना विपक्ष का गठबंधन सफल हो पाएगा?
अचानक ऐसा क्या हुआ कि विपक्षी दलों को कांग्रेस ‘अछूत’ सी लगने लगी है और वे उसके बिना ही बीजेपी को हराने का मंसूबा बांधने लगे हैं? कांग्रेस भारत की वह पार्टी है, जिसने इस देश पर सबसे अधिक साल तक शासन किया है। इस पार्टी ने नेहरू, इंदिरा गांधी जैसे विश्वव्यापी नेता दिए हैं। लेकिन अब विपक्षी दल इस पार्टी से परहेज क्यों करने लगे हैं? बड़ी बात यह है कि नेहरू-इंदिरा परिवार के युवा नेता राहुल गांधी ने हाल ही में पूरे देश में ‘भारत-जोड़ो’ यात्रा निकालकर कांग्रेस में नई जान फूंकने का प्रयास तो किया ही, साथ ही यह भी संदेश देने की भी कोशिश की कि कांग्रेस से जुड़कर ही देश में विपक्षी एकता कायम हो सकती है। लेकिन कई विपक्षी पार्टियों के नेता उनके दावे को अनसुना कर रहे हैं। भारत में आजकल बड़े विपक्षी नेता ममता बनर्जी, के चंद्रशेखर राव, अखिलेश यादव, अरविंद केजरीवाल आदि चुनाव में बीजेपी को हराने के लिए अथक मेहनत कर रहे हैं लेकिन इस मेहनत में वह कांग्रेस को शामिल नहीं कर रहे हैं।
तो इसकी वजह क्या है? ममता बनर्जी सालों तक कांग्रेस से जुड़ी रहीं तो बाकी के ये नेता भी सत्ता पाने के लिए समय समय पर कांग्रेस की मदद लेते रहे हैं। इन नेताओं की पार्टियों व अन्य दलों ने पिछले चुनावों में बीजेपी को हराने के लिए कांग्रेस से गठजोड़ किया, लेकिन अब मामला एकदम उलट गया है। असल में ममता बनर्जी की राहुल गांधी से कथित ‘दुश्मनी’ ने विपक्षी एकता से कांग्रेस को दूर कर दिया है। पिछले दिनों ममता बनर्जी ने राहुल गांधी को निशाने पर लेते हुए कहा था कि अगर राहुल विपक्ष का चेहरा हैं तो फिर कोई भी नरेन्द्र मोदी को पराजित नहीं कर पाएगा। उन्होंने यह कहकर एकता की संभावना को और कमजोर कर दिया कि राहुल गांधी असल में मोदी की सबसे बड़ी टीआरपी हैं। दूसरी ओर कांग्रेस के नेता आरोप लगा रहे हैं कि पीएम नरेंद्र मोदी और ममता बनर्जी के बीच राहुल को बदनाम करने का समझौता हुआ है। इस कटुता की वजह यह रही कि विधानसभा के चुनावों में हार को लेकर राहुल व ममता ने एक दूसरे पर आरोप उछाले थे, जिसके बाद इनमें लगातार खटास आती गई। बाकी नेताओं के साथ ही यही रहा। पिछले विधानसभा चुनाव में उन्होंने कुछ एक राज्यों में कांग्रेस के साथ गठजोड़ किया, लेकिन उन्हें हार का सामना करना पड़ा।
राजनीति विश्लेषक मानते हैं कि असल में राहुल गांधी के ‘बोल-वचन’ विपक्ष की एकता में बाधक बन रहे हैं। वह जो भी बोलते हैं, वह बीजेपी व मोदी को रास आता है लेकिन विपक्ष आहत हो जाता है। कांग्रेस लगातार कहती है कि उनके नेता राहुल गांधी भविष्य के नेता हैं और ‘भारत जोड़ो’ यात्रा ने उन्हें और परिपक्व बनाया है, लेकिन राजनैतिक पंडितों का कहना है कि इस यात्रा के बाद राहुल के कथित अनर्गल बयानों ने गड़बड़ कर दी। विपक्षी एकता को लेकर राहुल भी गंभीर नहीं दिख रहे हैं और वह लगातार ‘एकला-चलो’ का संदेश दे रहे हैं। अब हालात यह हो गए हैं कि कांग्रेस भले ही बार-बार यह कहे कि उसके बिना विपक्षी एकता संभव नहीं, लेकिन सभी विपक्षी दलों को उसका साथ मंजूर नहीं है। हाल ही में मोदी सरकार के खिलाफ विपक्षी नेताओं के मार्च, आंदोलन, बैठकों में कांग्रेस से दूरी ने इस विचार को और पुख्ता किया है। भारत में चल रहे ये राजनैतिक समीकरण व आरोप-प्रत्यारोप बता रहे हैं कि मोदी और उनकी पार्टी को हराने के लिए विपक्षी दलों व कांग्रेस के बीच एकता ‘दूर की कौड़ी’ है। देखना यह होगा कि आगामी दिनों में ‘एकता’ की यह कवायद किस करवट बैठेगी।