अंतरराष्ट्रीय संबंधों में बहुत सारी चीजें नियत नहीं होती हैं। फिर भी हर देश अपनी भलमनसाहत दिखाते हुए एक बात पक्की करके अपने दांव का बचाव कर रहे हैं। मसला यह नहीं कि क्या अफगानिस्तान बिखर जाएगा या कि ऐसा कब होगा।

अगर स्वीडन जैसा देश इस निष्कर्ष पर पहुंचा है कि मध्य एशियाई देश विनाश की ओर बढ़ रहा है, तो बेशक यह सतर्क रहने का वक्त है। साथ ही यह काफी दुर्भाग्यपूर्ण है कि प्रधानमंत्री इमरान खान के पाकिस्तान ने भी इस सख्त चेतावनी का समर्थन किया है। यह इसलिए दुर्भाग्यपूर्ण है क्योंकि पाकिस्तान अगस्त में तालिबान को काबुल में सत्ता गद्दीनशीन करने में सक्रिय रूप से शामिल था। वही इस्लामाबाद अब इस बात से इनकार करता है कि उसने तालिबान को किसी भी तरह से मदद की है, यह केवल उसी देश से उम्मीद की जा सकती है जिसने सीमा की दोनों तरफ से चाल चलने पर गर्व किया है।