भारत के पूर्वोत्तर राज्य मणिपुर में 4 मई को जो हुआ या अब वहां जो चल रहा है अराजक और अतार्किक है। मणिपुर भारत का एक ऐसा हिस्सा है, जिसे सुरक्षा चिंताओं से कटा हुआ माना जाता है। ऐसे में वहां जो कुछ हो रहा है उसे देखकर लगता नहीं है कि राज्य सरकार और केंद्र सरकार मौजूदा या आने वाली स्थितियों को लेकर किसी नियंत्रण की स्थिति में हैं। भयावह घटनाओं को फर्जी खबरों के कालीन के नीचे दबा देना या इससे भी बदतर यह दिखावा करना कि सब कुछ धीरे-धीरे सामान्य हो रहा है, उन लोगों के प्रति 'एक और क्रूरता' है जिनके साथ गंदगी से भी बदतर व्यवहार किया गया है।
दो महिलाओं को निर्वस्त्र करके परेड कराना, हुड़दंगियों द्वारा खुले मैदान मे उनके साथ दुष्कर्म करना और उनकी रक्षा के लिए आए रिश्तेदारों की हत्या कर देना यह प्रमाण देने के लिए पर्याप्त है कि एक समाज कितना नीचे गिर सकता है। किसी भी संघर्ष की स्थिति में सबसे अधिक खतरे में महिलाएं और बच्चियां ही होती हैं। यह सत्य अपने आप में सब कुछ खोलकर रखा देता है कि उस शर्मनाक घटना की एफआईआर दर्ज करने में पुलिस को तीन महीने लग गये। जिस 'खाकी' का कर्तव्य गरीब, कमजोर और वंचितों की रक्षा करना है वह कितनी सक्रिया और संजीदा है घटनाएं उसकी भी गवाही दे रही हैं।
प्रधानमंत्री मोदी ने कहा तो सही है कि दूरस्थ मणिपुर में जो कुछ हुआ उसने देश का सिर शर्म से झुका दिया है। लेकिन एक सभ्य राष्ट्र आखिर कब तक शर्म से अपना सिर झुकाए रह सकता है जब हर नरसंहार के बाद मानक खंडन किया जाता है? साल 1984 में प्रधानमंत्री इंदिरा गांधी की हत्या के बाद देशभर में दंगों की बाढ़ आ गई थी। इसका कहर सिख समुदाय पर टूटा। इसी तरह 2002 के गोधरा दंगों में सड़कों पर हिंसा का नंगा नाच हुआ। एक राष्ट्र का सिर शर्मसार करने वाली दो घटनाओं का जिक्र ही यहां काफी है। एक ऐसा देश जो खुद को सभ्यताओं की उद्गम-स्थली मानकर गौरवान्वित महसूस करता है वहां युवा महिलाओं पर की गई क्रूरता कुछ ऐसी है जिसके बारे में अतीत के गुफावासी लोगों ने कभी न सोचा होगा। पूरे हालात को लेकर राज्य सरकार के साथ ही केंद्रीय एजेंसियों के पास भी कई अनुत्तरित प्रश्न हैं। पर कुछ तो कहना होगा।
राज्य और केंद्र दोनों ही को यह बताना चाहिए कि एक बड़ी खुफिया चूक कहां हुई जिसने भारत के एक अत्यंत महत्वपूर्ण हिस्से को तबाही के समंदर में डुबा दिया। यह कहने से कि राज्य सरकार महिलाओं पर हिंसक हमले के अपराधियों के लिए मृत्युदंड की मांग करेगी, कुछ नहीं होने वाला। यह तर्क भी निहायत घटिया और वाहियात है कि रेप तो दूसरे राज्यों में भी होते रहते हैं। यह न केवल अधिक शर्मनाक है बल्कि सर्वथा बेतुका है। मणिपुर में हिंसा के मौजूदा दौर के अंतर्निहित कारणों का पता लगाने के लिए राज्य और केंद्र को बिना किसी रोक-टोक के जांच करानी होगी। अभी हर बात केवल इस तथ्य की ओर इशारा करेगी कि महिलाओं पर क्रूर हमला भयावह सच्चाई का एक छोटा सा अंश था। हिंसा में जल रहे एक राज्य की आग बुझाने के लिए सरकार के साथ-साथ राष्ट्रीय विपक्ष को भी अपनी रचनात्मक भूमिका निभानी चाहिए। वक्त की यही मांग है।