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भारत में फिल्म पायरेसी रोकने को बना सिस्टम, अरबों का हो रहा नुकसान

भारत में कॉपीराइट कानून और आईपीसी के तहत अभी तक कानूनी कार्रवाई को छोड़कर पायरेटेड फिल्मी सामग्री पर सीधे कार्रवाई करने के लिए कोई संस्थागत तंत्र नहीं है। इंटरनेट के प्रसार और लगभग प्रत्येक व्यक्ति द्वारा निशुल्क में फिल्मी सामग्री देखने में रुचि रखने के साथ पायरेसी में तेजी देखी गई है।

प्रतीकात्मक पिक्चर। Photo by Geoffrey Moffett / Unsplash

पायरेसी के कारण दुनियाभर के फिल्म उद्योग को करोड़ों-अरबों रुपये का घाटा झेलना पड़ता है। आज के ऑनलाइन युग में इस घाटे के लगातार बढ़ने की संभावना जताई जा रही है। इस पायरेसी से भारत की फिल्म इंडस्ट्री भी काफी पीड़ित है और ऐसा अनुमान है कि उसे हर साल करीब 20 हजार करोड़ रुपये का नुकसान होता है। इस नुकसान को रोकने के लिए देश के सूचना एवं प्रसारण मंत्रालय ने पायरेसी रोकने के लिए कड़े कदम उठाए हैं। इस वर्ष मॉनसून सत्र के दौरान संसद द्वारा सिनेमैटोग्राफ (संशोधन) कानून, 1952 को पारित करने के बाद मंत्रालय ने पायरेसी के खिलाफ शिकायतें प्राप्त करने और बिचौलियों को डिजिटल प्लेटफॉर्म पर पायरेटेड सामग्री को हटाने का निर्देश देने के लिए नोडल अधिकारियों का एक संस्थागत तंत्र स्थापित किया है।

गौरतलब है कि भारत में कॉपीराइट कानून और आईपीसी के तहत अभी तक कानूनी कार्रवाई को छोड़कर पायरेटेड फिल्मी सामग्री पर सीधे कार्रवाई करने के लिए कोई संस्थागत तंत्र नहीं है। इंटरनेट के प्रसार और लगभग प्रत्येक व्यक्ति द्वारा निशुल्क में फिल्मी सामग्री देखने में रुचि रखने के साथ पायरेसी में तेजी देखी गई है। इस तंत्र से पायरेसी के मामले में सूचना और प्रसारण मंत्रालय द्वारा तुरंत कार्रवाई की जा सकेगी और उद्योग को राहत मिलेगी। विधेयक के बारे में संसद में केंद्रीय मंत्री अनुराग ठाकुर ने कहा कि इस कानून का उद्देश्य फिल्म पायरेसी पर अंकुश लगाने की फिल्म उद्योग की लंबे समय से चली आ रही मांग को पूरा करना है। इस कानून में 40 वर्ष बाद संशोधन किया गया, ताकि 1984 में अंतिम महत्वपूर्ण संशोधन किए जाने के बाद डिजिटल पायरेसी सहित फिल्म पायरेसी के खिलाफ प्रावधानों को इसमें शामिल किया जा सके।

भारत में बोर्ड की अनुमति के बिना भी फिल्में चलती हैं। फोटो:सोशल मीडिया

उन्होंने जानकारी दी कि संशोधन में न्यूनतम 3 महीने की कैद और 3 लाख तक रुपये के जुर्माने की सख्त सजा शामिल है, सजा को 3 साल तक बढ़ाया जा सकता है और ऑडिटेड सकल उत्पादन लागत का 5 प्रतिशत तक जुर्माना लगाया जा सकता है। मूल कॉपीराइट धारक या इस उद्देश्य के लिए उनके द्वारा अधिकृत कोई भी व्यक्ति पायरेटेड सामग्री को हटाने के लिए नोडल अधिकारी को आवेदन कर सकता है। नोडल अधिकारी से निर्देश प्राप्त करने के बाद, डिजिटल प्लेटफॉर्म 48 घंटे की अवधि के भीतर पायरेटेड सामग्री देने वाले ऐसे इंटरनेट लिंक को हटाने के लिए बाध्य होगा।

संसद द्वारा मानसून सत्र में पारित सिनेमैटोग्राफ (संशोधन) कानून, 2023 (2023 का 12) ने फिल्म प्रमाणन से संबंधित मुद्दों का समाधान किया, जिसमें फिल्मों की अनधिकृत रिकॉर्डिंग और फिल्म प्रदर्शन और इंटरनेट पर अनधिकृत प्रतियों के प्रसारण द्वारा फिल्म पायरेसी का मुद्दा शामिल है। पायरेसी के लिए सख्त दंड लगता है। यह संशोधन मौजूदा कानूनों के अनुरूप हैं जो फिल्म पायरेसी के मुद्दों का समाधान करते हैं।

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