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विज्ञान, साजिश और महामारी: कोविड-19 की उत्पत्ति की अंतहीन खोज

कोरोना की वजह से बहुत कुछ दांव पर है। पारदर्शिता और जवाबदेही की जरूरत अब ज्यादा महसूस हो रही है। नए और घातक जैविक हथियार बनाने की किसी भी राष्ट्र की इच्छा की निंदनीय है। भविष्य में ऐसा न हो, यह सिर्फ दंडात्मक कार्रवाई से ही सुनिश्चित किया जा सकता है।

Photo by Fusion Medical Animation / Unsplash

इंद्रनील बसु-रे
इस ग्रह के इतिहास में महामारियां बुरा वक्त लेकर आती रही हैं। कोविड-19 सबसे खराब महामारी बनकर आई है। मुझे 2020 की शुरुआत के दिन याद हैं जब मैंने एक चिकित्सक के बजाय अंतरिक्ष यात्री की तरह कपड़े पहने थे। अस्पताल में मुझे बेहद बीमार और मरने के कगार पर खड़े मरीजों को संभालना पड़ता था। उस समय कोविड संक्रमण को रोकने के लिए कोई दवा नहीं थी, कोई टीका नहीं था। घातक वायरस को रोकने का एकमात्र तरीका सुरक्षात्मक कवच पहनना ही था। तब तक हजारों लोग काल के गाल में समा चुके थे। अस्पताल के हॉल शवों से भरे हुए थे। दिल दहला देने वाली गंध फैली हुई थी। परिजनों की आंखों से बहते आंसू देखना रोजमर्रा की बात हो गई थी। तब हमें नहीं पता था कि यह किस तरह का वायरस है। तभी कुछ चीनी वायरोलॉजिस्ट ने इस बीमारी के जीन सीक्वेंसिंग का पता लगाया। उससे पता चला कि यह बीमारी चमगादड़ों से इंसानों में फैली है।

ऐसी अटकलें हैं कि कोरोना वायरस चीन की वुहान लैब से ही लीक हुआ था। (फोटो साभार सोशल मीडिया)

इस बीमारी से सात लाख से अधिक लोगों की मौत होने के बाद यह सवाल अभी भी बना हुआ है। चीन के पशु बाजार में ये खतरनाक वायरस विकसित कैसे हुआ? चमगादड़ में फैलने वाले वायरसों के बारे में हम अरसे से जानते हैं, लेकिन उनके इंसानों में प्राकृतिक रूप से फैलने की घटना पहले कभी नहीं देखी गई थी। ऐसी आशंका है कि निश्चित रूप से यह सब वायरल लैब में हुआ होगा, जब वैज्ञानिकों ने इंसानों में उनकी घुसपैठ के लिए उनके डीएनए अनुक्रम में कृत्रिम रूप से जीन डाले होंगे।

शी झेंगली को "चीन की बैट वुमन" के रूप में भी जाना जाता है। वह वुहान इंस्टीट्यूट ऑफ वायरोलॉजी में वायरोलॉजिस्ट थीं। उन्होंने चमगादड़ से फैले कोरोना वायरस पर व्यापक शोध किया था। उनके जोखिम भरे गेन-ऑफ-फंक्शन प्रयोगों पर नेचर जर्नल में प्रकाशित लेख ने दुनिया भर में उन्हें प्रसिद्ध कर दिया था। गेन-ऑफ-फंक्शन एक तकनीकी शब्द है जो उन सूक्ष्मजीवों के आनुवंशिक निर्माण में परिवर्तन की तरफ इशारा करता है जो विकास की श्रृंखला में उच्च स्तर पर रहने वाले जीवों जैसे चमगादड़ से मनुष्यों तक को निशाना बना सकते हैं और प्रसार कर सकते हैं। 2015 में झेंगली और उनकी टीम ने सार्स जैसे वायरस के साथ चमगादड़ के कोरोना वायरस को मिलाकर एक हाइमेरिक वायरस बनाया था। यह इतना अधिक संक्रामक और घातक था कि इसकी क्षमताओं को लेकर विवाद खड़ा हो गया था। इसी वजह से अटकलें लगाई जाती रही हैं कि कोविड-19 की उत्पत्ति में झेंगली की लैब की अहम भूमिका रही होगी।

यह संदेह तब और गहरा गया जब वुहान लैब को फंडिंग देने वाले अमेरिका के कुछ संस्थानों को प्रयोगशाला से घातक वायरसों के गलती से लीक होने के खतरे के बारे में सबूत मिले। इसमें पहले सबूत ये था कि कोरोना वायरस का प्रकोप फैलने से पहले ही वुहान इंस्टीट्यूट ऑफ वायरोलॉजी के कई शोधकर्ता बीमार पड़ गए थे। इससे अनुमान लगाया गया कि वायरस गलती से लैब से लीक हो गया और उसने वहां काम करने वालों को पहला निशाना बनाया। वुहान इंस्टीट्यूट जहां पर स्थित है, वहीं पास में वुहान पशु बाजार है। वायरोलॉजी इंस्टिट्यूट में सिस्टम की नाकामी की ढकने वालों ने इसे ही वायरस की उत्पत्ति का आसान स्पष्टीकरण बना दिया।

जीन थेरेपी और सेल इंजीनियरिंग विशेषज्ञ डॉ अलीना चान अनथक रूप से वायरस की उत्पत्ति का पता लगाने में जुटी हैं। उन्हें संदेह है कि यह वायरस वुहान इंस्टीट्यूट से ही लीक हुआ होगा। वायरोलॉजी इंस्टीट्यूट पर उनके निरंतर फोकस और लैब से वायरस लीक होने की आशंका ने आगे की जांच के दरवाजे खोल दिए हैं। साथ ही उस पर लोगों का ध्यान खींचा है, जिसे कभी साजिश की थ्योरी माना जाता था। लगातार उपहास का पात्र बनने और चीनी सरकार से संभावित खतरे का सामना करने के बावजूद डॉ चान ने अपनी थ्योरी पर आगे काम करना बंद नहीं किया।

इस तरह का दावा करने वाली चान इकलौती व्यक्ति नहीं थी। चीन के एक वायरोलॉजिस्ट डॉ ली मेंग यान ने तो यहां तक दावा कर दिया कि चीन की सरकार ने जानबूझकर इस वायरस को पैदा करके दुनिया में छोड़ा है। हालांकि यह दावा अभी विवादों में है और प्रमाणित नहीं हुआ है। लेकिन यह उस अविश्वास और पारदर्शिता की कमी को जाहिर करता है जो चीनी सरकार ने दुनिया में कोविड की शुरुआत के समय इस वायरस से निपटने के प्रति दिखाई थी। अगर इसमें जरा भी सच्चाई है तो यह एक प्रयोग में हुई गंभीर गलती की तरफ इशारा करता है। ऐसी गलती जिसके शिकार आज हजारों चीनवासी भी हैं।

चीन ने महामारी की शुरुआत में जिस तरह से पारदर्शिता को छिपाया और सूचनाओं को दबाने का प्रयास किया, वह व्यापक रूप से रिकार्ड में दर्ज है। चीन सरकार को दिसंबर 2019 की शुरुआत में ही इस प्रकोप के बारे में पता चल गया था, इसके बावजूद वह शुरुआत में एक इंसान से दूसरे इंसान तक इस वायरस के फैलने की संभावना से इनकार करती रही। इस वायरस के बारे में सोशल मीडिया पर चेतावनी देने वाले ली वेनलियांग जैसे चिकित्सकों की जमकर आलोचना की गई या गायब कर दिए गए! इस बीच, चीन गुपचुप तरीके से इस वायरस का प्रसार रोकने के लिए अपने प्रांतों को पूरी तरह बंद करता रहा, साथ ही प्रकोप के बारे में महत्वपूर्ण जानकारियां छिपाता रहा और बाकी दुनिया को स्थिति की गंभीरता कम करते बताता रहा। निस्संदेह रूप से उसकी इन हरकतों का ही परिणाम था कि कोरोना वायरस दुनिया भर में तेजी से फैला और लाखों लोगों की मौत की वजह बन गया। यह कोई नहीं जानता था कि आखिर एक प्राकृतिक महामारी के बारे में कोई जानकारी को क्यों दबाएगा! इस तरह की गड़बड़ियों ने वायरस की वास्तविक उत्पत्ति को लेकर चीन की मंशा पर संदेह बढ़ाया। यह भी आशंका गहराई कि क्या यह जैविक युद्ध का संभावित हथियार विकसित करने का प्रयोग था जो उलटा पड़ गया!

हाल ही में एफबीआई और अमेरिकी सरकार के ऊर्जा विभाग ने कम आत्मविश्वास के साथ ही सही, दावा किया कि कोरोना वायरस की उत्पत्ति वायरोलॉजी इंस्टिट्यूट से ही हुई थी। हालांकि, अन्य देशों की खुफिया एजेंसियां पहले से ही कोविड-19 के पैदा होने के पीछे लैब से लीक होने की थ्योरी का समर्थन करती रही हैं। एक इजरायली विशेषज्ञ ने तो यहां तक कहा था कि वायरोलॉजी संस्थान का संचालन चीन की विज्ञान अकादमी के तत्वावधान में होता है। यही नहीं, इसकी कुछ लैब का संबंध "चीन के रक्षा प्रतिष्ठान के अंदर पीएलए या बीडब्ल्यू से जुड़े तत्वों से भी है। "पीएलए" का मतलब चीन की सेना और "बीडब्ल्यू" का अर्थ जैविक हथियार है।

एफबीआई ने अपनी राय हालांकि स्पष्ट कर दी है लेकिन सीआईए ने कुछ नहीं कहा है। सीआईए का कहना है कि वह लैब से वायरस लीक होने की थ्योरी के बारे में निश्चित रूप से नहीं कह सकता। हालांकि अमेरिकी प्रेस में यह तथ्य खूब आया कि शायद एजेंसी का यह कदम कोविड-19 बनाने में अपनी भागीदारी को छिपाने की कोशिश है। यह अब छिपी बात नहीं है कि वुहान इंस्टीट्यूट ऑफ वायरोलॉजी में अनुसंधान के लिए अमेरिका भी अमेरिकी राष्ट्रपति के पूर्व मुख्य चिकित्सा सलाहकार डॉ एंटनी फाउची के माध्यम से फंडिंग कर रहा था। उन्होंने दावा किया था कि यह सब कोई फायदा उठाने के लिए नहीं था।

इसके विपरीत, इको हेल्थ एलायंस के पूर्व उपाध्यक्ष डॉ एंड्रयू हफ ने दावा किया कि अमेरिकी सरकार ने चीन में कोरोना वायरस की खतरनाक आनुवंशिक इंजीनियरिंग में पैसा लगाया था। इससे यह चिंता बढ़ गई कि कोविड-19 को बनाने में अमेरिका की भूमिका रही होगी। इको हेल्थ एलायंस एक वैश्विक पर्यावरणीय स्वास्थ्य गैर-लाभकारी संगठन है जो वन्यजीवों और लोगों को बीमारियों से बचाने के लिए समर्पित है। डॉ एंड्रयू हफ एक अनुभवी टेक्नोलॉजिस्ट और संक्रामक रोग महामारी विज्ञानी हैं  जिनका वैज्ञानिक अनुसंधान, राष्ट्रीय सुरक्षा और उद्यमिता में दशकों का अनुभव है। उन्हें तथाकथित "कोविड कवर-अप" के खिलाफ आवाज उठाने वाला एक व्हिसलब्लोअर भी माना जाता है। हालांकि, वह यह भी दलील देते हैं कि कोरोना वायरस अचानक ही गलती से लीक हुआ होगा और यह किसी साजिश के तहत जानबूझकर नहीं किया गया होगा।

प्रयोगशाला से वायरस लीक होने के ठोस सबूतों की कमी की वजह से ही साजिश की कई कहानियां हवा में तैर रही हैं। हालांकि, यह भी सच है कि पशु बाजार से वायरस के पैदा होने की बात वैज्ञानिक रूप से बहुत अधिक विश्वसनीय नहीं लगती। इससे भी साजिश की थ्योरी को बल मिलता है। चीन सरकार लगातार जोर देती रही है कि कोविड-19 वुहान के पशु बाजार से ही फैला था। इसके बावजूद इसके प्राकृतिक रूप से प्रसार की थ्योरी पर शक करने की कई वजहें हैं। सबसे पहली वजह तो यही कि अभी तक कि जानकारी में इस वायरस का कोई बीच में मेजबान नहीं मिला है, जो दिखा सके कि जानवरों से मनुष्यों में यह किस तरह से पहुंचा। इसके अतिरिक्त, यह वायरस वुहान इंस्टीट्यूट के पास पैदा हुआ, जो चमगादड़ों के कोरोना वायरस पर शोध कर रहा था, जहां से इसके लीक की आशंका बढ़ गई। और आखिर में चीन सरकार का रवैया शक बढ़ाता है जिसने सबकुछ साफ साफ नहीं बताया और महामारी फैलने की जानकारी होने के बावजूद उसे छिपाने और ढकने का प्रयास किया। इससे पता चलता है कि उसके पास शायद कुछ ऐसी जानकारी थी, जो चीन सरकार नहीं चाहती थी कि दुनिया को उसका पता चले।

इस कोरोना वायरस की वजह से बहुत कुछ दांव पर लगा हुआ है। पारदर्शिता और जवाबदेही की जरूरत अब पहले के कहीं ज्यादा महसूस हो रही है। नए और घातक जैविक हथियारों को विकसित करने की किसी भी राष्ट्र की ऐसी इच्छा की सिर्फ निंदा ही की जानी चाहिए।  भविष्य में ऐसा फिर से न हो, यह सिर्फ दंडात्मक कार्रवाई करके ही सुनिश्चित किया जा सकता है। लैब से लीक होने की संभावना को लेकर चल रही बहस और परस्पर विरोधी राय बताती है कि वैज्ञानिक अनुसंधान में पारदर्शिता, जवाबदेही और निष्पक्ष जांच का कितना महत्व है। हम एक और वैश्विक महामारी के संभावित खतरे को नजरअंदाज नहीं कर सकते, न ही राजनीति या गोपनीयता की आड़ लेकर तरक्की का रास्ता रोकने की अनुमति दे सकते हैं। चीन में लोकतांत्रिक सरकार की गैरमौजूदगी और कोविड की उत्पत्ति पर उसी तरफ से लगातार पर्दा डालना इस दिशा में गंभीर बाधा बना हुआ है।

(इंद्रनील बसु-रे अमेरिकन अकादमी फॉर योगा इन मेडिसिन के मेंटर और संस्थापक हैं)

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