भारत द्वारा वर्चुअल तरीके से आयोजित शंघाई सहयोग परिषद (SCO) के राष्ट्राध्यक्षों की 23वीं बैठक कम से कम दो महत्वपूर्ण कारणों से याद की जाएगी। पहला यह कि ईरान औपचारिक रूप से नौवें सदस्य के रूप में इस समूह में प्रवेश कर रहा है।
रूस, चीन, किर्गिज गणराज्य, कजाकिस्तान, ताजिकिस्तान और उज्बेकिस्तान के नेताओं द्वारा 2001 में शंघाई में स्थापित SCO में भारत और पाकिस्तान पूर्ण सदस्य के रूप में 2017 में शामिल हुए। रणनीतिक और आर्थिक महत्व के कारण ईरान का प्रवेश सभी के लिए फायदेमंद है। इसे आसानी से नजरअंदाज भी नहीं किया जा सकता। इस बार के वर्चुअल समिट को याद रखने की दूसरी वजह यह है कि पाकिस्तान के प्रधानमंत्री शहबाज शरीफ ने आतंकवाद पर क्या कहा।
आतंकवाद और उग्रवाद की निंदा करते हुए शरीफ ने कहा कि निर्दोष लोगों की हत्या का 'कोई औचित्य' नहीं हो सकता। आतंकवाद और उग्रवाद के 'सिरफिरे राक्षस' से पूरी ताकत और दृढ़ विश्वास के साथ लड़ना चाहिए। आतंकवाद के हर स्वरूप की स्पष्ट और कड़े शब्दों में निंदा की जानी चाहिए। निसंदेह, शरीफ ने अपनी टिप्पणियां यूं ही नहीं की हैं। आतंकवाद और उग्रवाद को लेकर शरीफ ने यह 'प्रवचन' भारत के प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी द्वारा पाकिस्तान के परोक्ष उल्लेख के बाद दिया। मोदी ने कहा था कि SCO को राज्य की नीति के साधन के रूप में सीमा पार आतंकवाद का समर्थन करने वाले देशों की आलोचना करने में संकोच नहीं करना चाहिए। आतंकवाद और आतंकी वित्तपोषण से निपटने में निर्णायक कार्रवाई का आह्वान करते हुए भारतीय नेता ने इस बात पर जोर दिया कि आतंकवादी गतिविधियों से लड़ने में कोई 'दोहरा मानक' नहीं होना चाहिए।
आतंकवाद पर पाकिस्तानी प्रधानमंत्री की मासूमियत इस्लामाबाद के लगातार तर्क के अनुरूप है कि वह खुद आतंक से 'पीड़ित' है। लेकिन शिखर सम्मेलन में उनका 'अवतार' कई लोगों के लिए आश्चर्य की बात रही होगी। खासकर उनके देश के शीर्ष नेताओं और इंटर सर्विसेज इंटेलिजेंस (ISI) के लिए जिसे आम तौर पर पाकिस्तान के अंदर डेरा डालने वाले आतंकवादी संगठनों के प्रमुख आका के रूप में देखा जाता है। बहरहाल, इस मसले पर शरीफ जितनी भी लीपापोती कर लें लेकिन दुनिया यही मानती है कि पाकिस्तान वैश्विक आतंक का केंद्र है और भारत के खिलाफ सीमा पार आतंकवाद में सक्रिय रूप से शामिल है। पर्यवेक्षक इस सच्चाई से भी वाकिफ हैं कि पाक पीएम शरीफ अचानक आतंकवाद के खिलाफ क्यों बोलने लगे या उन्होंने भारत द्वारा आयोजित वर्चुअल शिखर सम्मेलन में भाग लेने का विकल्प क्यों चुना। इसका उत्तर उस गड़बड़ी में छिपा है जिसमें पाकिस्तान खुद को पाता है और साथ ही उस छवि को हटाने की अनिवार्यता में है जो निश्चित रूप से एक संभावित आर्थिक सुधार के रास्ते में खड़ी है।
अंतरराष्ट्रीय मुद्रा कोष से पाकिस्तान को 3 अरब अमेरिकी डॉलर की जो राहत मिली है वास्तव में वह उसकी जरूरत का एक छोटा सा हिस्सा है और यह मदद भी महीनों की मिन्नतों के बाद मिल पाई है। शरीफ जानते हैं कि संकट के इस समय से उबरने के लिए पाकिस्तान को व्यापार और निवेश की दरकार है। किसी पाकिस्तानी प्रधानमंत्री को आतंकवाद के बारे में इस तरह की बात करते देखना सकारात्मक तो लग सकता है लेकिन शरीफ को इस मुगालते में नहीं रहना चाहिए कि दुनिया उनकी बातों को पचा लेगी। 'प्रवचन' का 'पुण्य' तभी मिल सकता है जब ठोस साक्ष्य सामने हों।