यह किसी भी तरीके से तर्कसंगत नहीं है कि हम रूसी टैंकों के यूक्रेन में अवैध रूप से किए गए आक्रमण की शुरुआत के 100 दिन पूरे होने का कोई दिवस मना रहे हैं जिसे रूस ने एक विशेष ऑपरेशन बताया जबकि यह पूर्वनिर्धारित था। 24 फरवरी व्लादिमीर पुतिन का दुस्साहस न केवल यूक्रेन पर बल्कि रूस, मध्य एशियाई गणराज्यों, पूर्वी यूरोप, पश्चिमी यूरोप समेत बड़े पैमाने पर बाकी दुनिया पर भी भारी पड़ रहा है।
आवश्यक खाद्य पदार्थों जैसे की तेल और प्राकृतिक गैस समेत सभी खाद्य पदार्थों की कमी अब दिखाई देने लगी है। क्योंकि कीव निर्यात करने में असमर्थ है और मॉस्को ने प्रत्येक वस्तू पर पाबंदियां लगाई हुई हैं। अंतरराष्ट्रीय श्रम संगठन ने अनुमान लगाया है कि रूसी आक्रमण की शुरुआत के बाद से यूक्रेन में करीब 50 लाख नौकरियां चली गई हैं और अगर यह युद्ध जारी रहती है तो यह आंकड़ा 70 लाख को छू सकता है।
लेकिन यह पूरी कहानी नहीं है। पचास लाख से अधिक लोग पड़ोसी देशों में अपनी जान बचाने के लिए भाग गए हैं या शरणार्थी बन गए हैं। जबकि युद्ध के परिणामस्वरूप आंतरिक रूप से विस्थापित होने वाले सैकड़ों हजारों लोगों की कोई संख्या नहीं है। यह तर्क दिया गया है कि भले ही अधिकांश शरणार्थी महिलाएं, बच्चे और साठ वर्ष से अधिक आयु के बुजुर्ग हों लेकिन इनमें 30 लाख के करीब कामकाजी उम्र का भी एक बड़ा वर्ग है।
यूक्रेन से शरणार्थियों की भारी संख्या पोलैंड, हंगरी, रोमानिया, मोल्दोवा और स्लोवाकिया जैसे पड़ोसी देशों के लिए अप्रत्याशित समस्याएं पैदा कर रही है। इन सरकारों पर सामान्य दबाव एक तरफ तो बढ़ ही रहा है बल्कि दुश्मनी की अनिश्चितकालीन निरंतरता स्थानीय श्रम बाजार पर एक अतिरिक्त बोझ डाल रही है जिससे शरणार्थियों और स्थानीय आबादी की बेरोजगारी बढ़ जाती है।
लेकिन यह पूरी तस्वीर नहीं है। रूसी संघ के जबरदस्त आर्थिक व्यवधान के चलते चाहे मास्को में बैठे अधिकारी इसे स्वीकार करना चाहें या नहीं लेकिन इसका प्रभाव कजाकिस्तान, किर्गिस्तान, ताजिकिस्तान और उजबेकिस्तान जैसे देशों पर भी पड़ रहा है। ये चार अर्थव्यवस्थाएं विशेष रूप से अपने लोगों से प्रेषण के लिए रूस पर निर्भर हैं और इसका प्रभाव दो तरह से कटौती करता है। रूसी संघ में नौकरियों की कमी के चलते इन प्रवासियों को घर लौटने के लिए मजबूर होना पड़ रहा है जिसका खामियाजा इन देशों की स्थानीय अर्थव्यवस्थाओं पर भी दबाव डालता है। यह वही समस्या है जो पहले से ही एशिया की कई अर्थव्यवस्थाओं को कोविड-19 व्यवधानों के कारण झेलनी पड़ रही हैं।
विश्व बैंक ने अपनी हालिया रिपोर्ट में कहा है कि निम्न और मध्यम आय वाले देशों में प्रेषण प्रवाह 2022 में यूएस 630 बिलियन डॉलर या 4.2 फीसदी की वृद्धि तक पहुंचने की उम्मीद है। हालांकि इस आशा के साथ कुछ सावधानियां भी हैं। यूक्रेन को प्रेषण जो यूरोप और मध्य एशिया में सबसे बड़ा प्राप्तकर्ता है 2022 में 20 फीसदी से अधिक बढ़ने की उम्मीद है। हालांकि कई मध्य एशियाई देशों में प्रेषण प्रवाह जिसका मुख्य स्रोत रूस है नाटकीय रूप से गिर जाएगा। विश्व बैंक ने कहा है कि बढ़ती खाद्य, उर्वरक और तेल की कीमतों के साथ इन गिरावटों से खाद्य सुरक्षा के लिए जोखिम बढ़ने और इनमें से कई देशों में गरीबी बढ़ने की संभावना है।
विश्व बैंक में सोशल प्रोटेक्शन एंड जॉब्स ग्लोबल प्रैक्टिस के ग्लोबल डायरेक्टर मीकल रुतकोव्स्की कहते हैं कि यूक्रेन पर रूसी आक्रमण ने वैश्विक अर्थव्यवस्था के लिए बड़े पैमाने पर मानवीय, प्रवासन और शरणार्थी संकट और जोखिम पैदा कर दिया है जो अभी भी कोरोना महामारी के प्रभाव से निपट रही हैं। उनका कहना है कि यूक्रेनियन परिवारों के साथ-साथ मध्य एशिया में युद्ध के आर्थिक प्रभाव से प्रभावित लोगों सहित सबसे कमजोर लोगों की रक्षा के लिए सामाजिक सुरक्षा कार्यक्रमों को बढ़ावा देना जरूरी है। लोगों को खाद्य असुरक्षा और बढ़ती गरीबी के खतरों से बचाने के लिए यह एक प्रमुख प्राथमिकता है।
यह बताया गया है कि 2021 में प्रेषण के लिए शीर्ष पांच प्राप्तकर्ता देश भारत, मैक्सिको, चीन, फिलीपींस और मिस्र थे और मध्य एशिया के भीतर ताजिकिस्तान और किर्गिज गणराज्य दो अर्थव्यवस्थाएं (यहां प्रेषण सकल घरेलू उत्पाद का एक बड़ा हिस्सा है) जहां प्रेषण प्रवाह क्रमश: 34 फीसदी और 33 फीसदी रहा। वहीं दूसरी ओर यूक्रेन संकट ने वैश्विक नीति का ध्यान अन्य विकासशील क्षेत्रों और आर्थिक प्रवास से हटा दिया है।