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कनॉट प्लेस के बारे में ये बातें नहीं जानते होंगे आप!

दिल्ली के दिल कनॉट प्लेस को कौन नहीं जानता। क्या आपको मालूम है कि जहां कनॉट प्लेस बना है, वहां पहले दो गांव हुआ करते थे। यह ठीक है कि अंग्रेजों ने इसे 'बाजार' के रूप में विकसित किया, लेकिन कभी रिहायशी इलाका भी हुआ करता था। कनॉट प्लेस के बारे में पढ़िए रोचक व अनकहे किस्से।

वर्ष 1931 में अंग्रेज शासकों ने भारत के पहले 'मॉल' कनॉट प्लेस का निर्माण बड़े ही मन से किया। यह जॉर्जियाई वास्तुकला से प्रेरित इंग्लैंड के बाथ शहर में रॉयल क्रिसेंट जैसा खूबसूरत नजर आता है। इसका विहंगम दृश्य। फोटो: राजीव भट्ट

देश की राजधानी दिल्ली के दिल कनॉट प्लेस (नया नाम राजीव चौक) के बारे में आज आपको कुछ रोचक और अलग हटकर बताते हैं। यह विश्वविख्यात कमर्शल हब है और इसे भारत के पहले मॉल का तमगा भी हासिल है। आपको हैरानी होगी कि कभी कनॉट प्लेस रिहायशी इलाका भी हुआ करता था, जिनमें रसूख वाले लोगों के अलावा विदेशी भी रहते थे। कनॉट प्लेस देश के नामी लोगों की सैरगाह भी रहा है और इसकी दुकानों पर देश के नामी नेता व अमीर लोग शॉपिंग करने आते थे। इमरजेंसी (वर्ष 1975) के बाद कनॉट प्लेस में बदलाव शुरू हुआ। अब ये पूरे तौर पर कमर्शल हो चुका है। बस दो-चार परिवार अभी भी यहां आशियाना बनाए हुए हैं।

पहले कनॉट प्लेस के इतिहास की भी कुछ बात कर लें। इतिहास की पुस्तकें बताती हैं कि इसके निर्माण के लिए यहां बसे माधोगंज और राजा का बाज़ार जैसे पुराने गांवों को हटाकर वहां के वाशिंदों को करोल बाग इलाके में शिफ्ट किया गया था। यह भी बताया जाता है इसके निर्माण से पहले आसपास का इलाका रिज (जंगलनुमा) था।

यहां चांदनी चौक, कश्मीरी गेट, सिविल लाइंस इलाके के अमीर-उमरा लोग वीकेंड पर तीतर-बटेर जंगली खरगोश आदि के शिकार के लिए आते। यहां का हनुमान मंदिर पुराने वक्त का ही है। कनॉट प्लेस का नाम ब्रिटेन के शाही परिवार के सदस्य ड्यूक ऑफ कनॉट के नाम पर रखा गया है। इस मार्केट का डिजाइन डब्यू एच निकोल और टॉर रसेल किया था। वर्ष 1929 में इस मार्केट के निर्माण का काम शुरू हुआ। इसके बनने में चार साल लगे और निर्माण 1931 में पूरा हुआ। जॉर्जियाई वास्तुकला से प्रेरित यह परिसर इंग्लैंड के बाथ शहर में रॉयल क्रिसेंट के समान दिखता है।

कनाट प्लेस में बड़े-बड़े स्टोर और प्रतिष्ठित ब्रांड के शोरूम आज भी मौजूद हैं। फोटो: राजीव भट्ट

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