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विशेष लेख: तालिबान का पक्ष लेने वाले देश क्या वाकई गंभीरता दिखा रहे हैं?

अमेरिकी सैनिकों ने तय समय सीमा से पहले ही अफगानिस्तान छोड़ दिया है। लेकिन देखने वाली बात होगी कि अमेरिका काबुल हमले में मारे गए 13 सैनिकों का बदला कैसे लेगा।

अफगानिस्तान में तालिबान के कब्जे के बाद अंधाधुंध हिंसा और हत्याएं हो रही हैं। हाल ही में काबुल में कई जगह हुए सिलसिलेवार विस्फोट में 13 अमेरिकी सैनिकों समेत करीब 200 लोग मारे गए। इन हमलों की जिम्मेदारी आतंकी संगठन 'इस्लामिक स्टेट- खुरासान' (ISK) ने ली, जिसके बाद अमेरिकी सेना ने ड्रोन अटैक कर आतंकियों को मारने का दावा किया। जानकार अब आतंकी संगठन 'आईएसके' की सटीक उत्पत्ति और इतिहास का पता लगाने की कोशिश कर रहे हैं। कुछ विशेषज्ञों का मानना ​​है कि 'आईएसके' पाकिस्तान के आतंकी संगठन 'लश्कर-ए-तैयबा' का हिस्सा है, जो वैश्विक उग्रवाद और आतंकवाद के लिए कुख्यात है।

काबुल नरसंहार ऐसे समय पर हुआ, जब तालिबान खुद को "सुधारित" संगठन के रूप में पेश करने की कोशिश कर रहा था। वास्तव में तालिबान में कुछ ऐसे लोग हैं, जो खूंखार आतंकी संगठन 'आईएसके' से खुद को दूर करने की पूरी कोशिश कर रहे हैं। वे वास्तव में यह बताने या दिखावा कर रहे हैं कि निर्दोष नागरिकों पर नृशंस हमले के अपराधी तालिबान का हिस्सा नहीं हैं। तालिबान असहाय मध्य एशियाई देश अफगानिस्तान में सत्ता की सीट पर कब्जा करने के लिए आया है।

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