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विशेष लेख: जस्टिन ट्रूडो और राजनीतिक हताशा की गहराई

इन हालात में जस्टिन ट्रूडो को अमेरिका के पूर्व राष्ट्रपति जॉर्ज बुश की वह बात याद कर लेनी चाहिए जो उन्होंने 9/11 के बाद कही थी : यदि आप किसी आतंकवादी को खड़ा करते हैं तो आप भी आतंकवादी हैं और यदि आप किसी आतंकवादी को पनाह देते हैं तब भी आप आतंकवादी हैं।

अपने ही सियासी कुचक्रों में फंस गये हैं श्रीमान ट्रूडो... Image : twitter@Justin Trudeau

विश्व का संभ्रांत समाज यदि इन दिनों राजनीतिक कुटिलता की तस्वीर देखना चाहे तो उसमें निसंदेह रूप से एक ही अक्स उभरता है और वह हैं कनाडा के प्रधानमंत्री जस्टिन ट्रूडो। भारत पर लगाए महज एक आरोप ने पूरी दुनिया का रुख उनकी ओर कर दिया है। मगर ध्यान भटकाने की रणनीति के एक शानदार उदाहरण के रूप में ट्रूडो अपने राजनीतिक लाभ के लिए भारत-कनाडा संबंधों को अब तक के सबसे निचले स्तर पर गिरा चुके हैं, भले ही चरमपंथियों के करीब जाना दीर्घकालिक परिप्रेक्ष्य में विनाश का कारण बन जाए। उनकी बला से।

ट्रूडो का कहना है कि उनके पास इस आरोप के 'पुख्ता सुबूत' हैं कि कनाडाई नागरिक हरदीप सिंह निज्जर की हत्या के लिए भारत सरकार के एजेंट जिम्मेदार हैं। निज्जर वही था जिसे भारत ने आतंकवादी घोषित किया था। इसी आरोप के विस्तार में ट्रूडो ने यह भी मांग कर दी कि भारत इस मामले की जांच में सहयोग करे। अपने इस नाटक में उन्हें जो इच्छुक सहयोगी मिला वह कोई और नहीं बल्कि अमेरिका था। लिहाजा बाइडेन प्रशासन के वरिष्ठ अधिकारियों ने इस मसले पर तुरंत 'जवाबदेही' और बाहरी 'अंतरराष्ट्रीय दमन' के प्रति तिरस्कार की मांग कर डाली। मगर यहां ट्रूडो के साथ बाइडेन भी आसानी से भूल जाते हैं कि अपने ही नागरिकों को बाहर निकालने सहित न्यायेतर हत्या का 'विधान' अमेरिका ने ही लिखा था। हो सकता है कि कानूनी तौर पर ट्रूडो को यह न पता हो कि सबूतों के अभाव में आरोप को अदालत में खारिज कर दिया जाएगा लेकिन अंग्रेजी साहित्य के एक छात्र के रूप में आरोप और सबूत का अंतर उन्हे अवश्य पता होगा। लेकिन फिर भी कनाडा के प्रधानामंत्री यह भूल रहे हैं कि आरोपों को लेकर 100 बार कही जाने वाली बात भी सुबूत तो नहीं बन सकती।

इस पूरे प्रकरण को लेकर वरिष्ठ कनाडाई राजनेता तो यही कह रहे हैं कि निज्जर की हत्या पर उन्हें अभी तक इंटरनेट पर जो कुछ भी मिला है, उसके अलावा कुछ भी ठोस नहीं दिख रहा। बल्कि लिबरल पार्टी के भीतर लड़खड़ाते नेतृत्व को सहारा देने और जनमत सर्वेक्षणों से पता चलता है कि अगर कल चुनाव होते हैं तो जनता ट्रूडो को सत्ता से बाहर का रास्ता दिखा देगी। ऐसे में ट्रूडो ने बाइडन की 'घंटी' बजाई। जबकि सच यह है कि अपने मुल्क की सियासी पिच पर बाइडेन के पांव भी लड़खड़ा रहे हैं। सत्ता में बने रहने की बेताब कोशिश में ट्रूडो भले ही खालिस्तानियों का साथ दे सकते हैं लेकिन भारत के साथ बैर करके बाइडेन को अगले चार साल के लिए ओवल ऑफिस मिल जाएगा इसमें संदेह है। जहां तक ट्रूडो की बात है तो वह इस मसले पर जितना बोलेंगे, अपने लिए उतना ही गहरा गड्ढा खोदेंगे। उनका यह कहना कि जांच पूरी हो चुकी है लेकिन भारतीय सहयोग नहीं कर रहे हैं इस बात का सबूत है कि भविष्य की राजनीतिक पराजय से आशंकित एक बड़बोला राजनेता अपने ही कुचक्रों से बाहर निकलने का रास्ता खोज रहा है। और इस झमेले में ट्रूडो ने 'फाइव आइज' में अपने गठबंधन सहयोगियों के लिए भी हालात कठिन और जटिल बना दिए हैं।

अमेरिका के अपवाद के साथ उनमें से सभी स्पष्ट कारणों से बाहर रहने की कोशिश कर रहे हैं। भारत करीब 40 साल से कनाडा को खालिस्तानियों की सच्चाई और उनके आतंकी गठजोड़ के बारे में लगातार आगाह कर रहा है लेकिन दुर्भाग्य यह है कि बतौर प्रधानमंत्री जस्टिन ट्रूडो के पिता पियरे से लेकर अब तक वहां की सत्ता अराजक तत्वों के साथ ही गलबहियां कर रही है। 38 साल पहले का कनिष्क विमान हादसा सियासी उदासीनता का ही त्रासद नतीजा था। उस हादसे में 329 लोगों की जान गई थी और उनमें से अधिकांश कनाडा के ही थे। तब से लेकर अब तक भारत यह बात साधिकार कह सकता है कि आतंकवाद को लेकर कनाडा का रुख नर्म है। भले ही वोटों की खातिर खुलेआम संरक्षण न हो। इन हालात में जस्टिन ट्रूडो को अमेरिका के पूर्व राष्ट्रपति जॉर्ज बुश की वह बात याद कर लेनी चाहिए जो उन्होंने 9/11 के बाद कही थी: यदि आप किसी आतंकवादी को खड़ा करते हैं तो आप भी आतंकवादी हैं और यदि आप किसी आतंकवादी को पनाह देते हैं तब भी आप आतंकवादी हैं।

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