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2023 का साल अमेरिका-भारत संबंधों के लिए परिवर्तनकारी है?

व्हाइट हाउस के फ्रंट लॉन में स्वागत समारोह से लेकर बाइडेन-मोदी बैठकों, कांग्रेस में मोदी के संबोधन और औपचारिक राजकीय रात्रिभोज तक, सबका संदेश एक ही था- भारत और अमेरिका महान राष्ट्र हैं जो एक-दूसरे का सबसे अधिक सम्मान करते हैं।

रेमंड ई विकरी, जूनियर

प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी की इस साल वाशिंगटन यात्रा ने अमेरिका-भारत संबंधों के कई समर्थकों में उत्साह पैदा किया है। आंशिक रूप से ही सही, यह भावना उचित है। बाइडेन प्रशासन, कांग्रेस और भारत ने यह सुनिश्चित करने के लिए हरसंभव प्रयास किया कि यात्रा एक मजबूत और बढ़ती हुई साझेदारी का संदेश दे। व्हाइट हाउस के फ्रंट लॉन में स्वागत समारोह से लेकर बाइडेन-मोदी बैठकों, कांग्रेस में मोदी के संबोधन और औपचारिक राजकीय रात्रिभोज तक, सबका संदेश एक ही था- भारत और अमेरिका महान राष्ट्र हैं जो एक-दूसरे का सबसे अधिक सम्मान करते हैं।

दोनों पक्षों द्वारा जारी संयुक्त बयान भी काफी महत्वाकांक्षी और लुभावने हैं। प्रौद्योगिकी और सैन्य सहयोग से लेकर स्वास्थ्य, शिक्षा और वैश्विक विकास तक के मामले में इस दस्तावेज़ को द्विपक्षीय संबंधों में प्रगति के लिए सबसे व्यापक और व्यापक दृष्टिकोण के रूप में चित्रित का प्रयास किया गया है। हालांकि संयुक्त वक्तव्य काफी हद तक वर्तमान में जारी वार्ता से प्रेरित है, लेकिन कुछ विषय हैं जो महत्वपूर्ण प्रगति को दिखाते हैं। इनमें से अधिकांश रक्षा मामले को लेकर हैं। इसमें भारत में जीई एफ-414 जेट इंजन के निर्माण के लिए जनरल इलेक्ट्रिक और हिंदुस्तान एयरोनॉटिक्स लिमिटेड के बीच समझौता ज्ञापन भी शामिल है।

मोदी की यात्रा के अलावा 2023 को अमेरिका-भारत संबंधों में परिवर्तनकारी वर्ष मानने की कई वजहें हैं। अमेरिका ने "अमेरिका फर्स्ट" नीति के तहत अन्य लोकतंत्रों के साथ साझा उद्देश्य पर बढ़ने के लिए ट्रम्प प्रशासन के अंतरराष्ट्रीय संबंधों से पीछे हटने के फैसले को उलट दिया है, जिनमें भारत सबसे बड़ा और सबसे प्रमुख देशो में से है। बाइडेन प्रशासन ने भारत के प्रति लेन-देन के दृष्टिकोण को समाप्त कर दिया है। अब अमेरिका-भारत वार्ताएं 'समझौते की कला' से संचालित नहीं होती हैं, जिसमें हर रियायत या मूल्य के हस्तांतरण के लिए एक-दूसरे को फायदा पहुंचाने की मांग की जाती है। एक आर्थिक और रणनीतिक भागीदार के रूप में भारत जो कुछ भी सामने लाता है, उसकी अधिक सराहना की जाती है।

भारत भी अमेरिका-भारत संबंधों में एक मजबूत और समान भागीदार के रूप में हिस्सा लेने की स्थिति में है। भारत को अब 200 वर्षों के राष्ट्रीय अपमान यानी ब्रिटिश औपनिवेशिक अतीत से पैदा भय और असुरक्षा की तरफ देखने की जरूरत नहीं है। 2023 में भारत जी-20 और शंघाई सहयोग संगठन का प्रमुख है। इसने ग्लोबल साउथ का आयोजन किया है और यह अमेरिका-जापान-ऑस्ट्रेलिया-भारत क्वाड का एक महत्वपूर्ण सदस्य है। चीनी विस्तारवाद के खिलाफ भारत का रुख उसे एक स्वतंत्र और खुले हिंद-प्रशांत क्षेत्र की कुंजी के रूप में मान्यता देता है। भारत अपनी सबसे बड़ी आबादी के साथ दुनिया की सबसे तेजी से बढ़ती प्रमुख अर्थव्यवस्था भी है।

फिर भी यह याद रखना चाहिए कि ऐसी कई यात्राएं भी हुई हैं जो बहुत उत्साही और आशावादी रही हैं। वर्ष 2000 में राष्ट्रपति क्लिंटन की भारत यात्रा के दौरान भारतीय सांसदों ने उनसे हाथ मिलाने के लिए अपनी मेज पर तालियां बजाई थीं। 2005 में जब प्रधानमंत्री मनमोहन सिंह वाशिंगटन आए थे, तब असैन्य परमाणु समझौते पर हस्ताक्षर किए गए थे। भारतीय गणतंत्र दिवस परेड में मुख्य अतिथि के रूप में राष्ट्रपति ओबामा की मौजूदगी को "गेम चेंजर" माना जाता था। 2019 में "हाउडी मोदी" कार्यक्रम में राष्ट्रपति ट्रंप और प्रधानमंत्री मोदी एक साथ चले थे। इन घटनाओं की उम्मीदें हमेशा पूरी नहीं हुईं।

कम से कम तीन कारक हैं, जो आने वाले वर्षों में 2023 को अमेरिका-भारत संबंधों के लिए परिवर्तनकारी मानने से रोक सकते हैं। इनमें पहला है अहंकार यानी यह दृष्टिकोण कि प्रत्येक देश अपने आप में इतना महान है कि उसे दूसरे की आवश्यकता नहीं है। दूसरी, अंतर्राष्ट्रीय सशस्त्र संघर्ष, रणनीतिक मामलों पर अमेरिका और भारत के बीच बुनियादी मतभेदों का प्रदर्शन। और तीसरा, अमेरिका और भारत दोनों में से किसी एक या दोनों में लोकतांत्रिक मूल्यों का अपव्यय, ऐसे मूल्य जो संबंधों का आधार है। इस प्रकार 2023 में प्रधानमंत्री मोदी की अमेरिका यात्रा से बड़ा प्रोत्साहन लिया जा सकता है, लेकिन अमेरिका और भारत के बीच साझेदारी को जितना मजबूत होना चाहिए, उतना मजबूत बनाने की दिशा में अभी काम किया जाना बाकी है।

रेमंड ई विकरी, जूनियर: सामरिक और अंतरराष्ट्रीय अध्ययन केंद्र में वरिष्ठ सहयोगी, अलब्राइट स्टोनब्रिज के वरिष्ठ सलाहकार, वाणिज्य के पूर्व सहायक सचिव

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