Skip to content

सिंधु जल संधि: विश्व बैंक के दखल से सुलझेगा भारत-पाक का बरसों पुराना ये विवाद?

भारत और पाकिस्तान ने लगभग एक दशक की बातचीत के बाद 1960 में संधि पर हस्ताक्षर किए थे जिसमें विश्व बैंक एक हस्ताक्षरकर्ता था। इसके जरिए पूर्वी और पश्चिमी नदियों के जल के बंटवारे के मानक तय किए गए थे। हालांकि कई मसलों को लेकर दोनों देशों के बीच बरसों से मतभेद चल रहे हैं।

Photo by Veda Nimkhedkar / Unsplash

भारत और पाकिस्तान के बीच सिंधु जल संधि बरसों से विवाद की जड़ बनी हुई है। 1960 में हुई इस संधि को लेकर दोनों देशों के बीच असहमति और मतभेद जारी हैं। अब विश्व बैंक ने किशनगंगा और रातले जलविद्युत संयंत्रों के संबंध में लंबित विवाद को हल करने के लिए तटस्थ विशेषज्ञों और मध्यस्थता न्यायालय के अध्यक्ष को नियुक्त किया है।

विश्व बैंक का कहना है कि उसे उम्मीद है कि तटस्थ विशेषज्ञ मिशेल लिनो और कोर्ट ऑफ आर्बिट्रेशन के अध्यक्ष सीन मर्फी अपने अधिकार क्षेत्र के जनादेश पर निष्पक्ष और सावधानीपूर्वक विचार करेंगे। भारत ने तटस्थ विशेषज्ञ नियुक्त करने की मांग की थी जबकि पाकिस्तान का कहना था कि कोर्ट ऑफ आर्बिट्रेशन के जरिए यह मसला सुलझाया जाना चाहिए।

बता दें कि भारत और पाकिस्तान ने लगभग एक दशक की बातचीत के बाद नदियों को जल बांटवारे को लेकर 1960 में इस संधि पर हस्ताक्षर किए थे जिसमें विश्व बैंक एक हस्ताक्षरकर्ता था। संधि के अनुसार पूर्वी नदियों जैसे सतलुज, ब्यास और रावी के पूरे पानी पर भारत का अधिकार है। यह साल में करीब 33 मिलियन एकड़ फीट (एमएएफ) होता है।

This post is for paying subscribers only

Subscribe

Already have an account? Log in

Latest