भारत में समान नागरिक संहिता (UCC) यानी ‘एक देश-एक कानून’ को लेकर एक बार फिर से गंभीर चर्चा शुरू हो गई है। भारत की सरकार की राजनैतिक पार्टी बीजेपी व उसके सहयोगी दलों के अलावा अधिकतर आम जन का भी मानना है कि जब कई इस्लामिक देश इस प्रकार के कानून को मान रहे हैं, तो भारत में इस तरह का कानून लागू करने में समस्या नहीं आनी चाहिए। लेकिन भारत में समान नागरिक संहिता को लागू करने में कई किंतु-परंतु हैं। देश के कई राजनैतिक दल तो इसका विरोध कर ही रहे हैं, कई मुस्लिम संगठन भी इसके खिलाफ मंतव्य जता रहे हैं।
देश के प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने हाल ही में इस कानून पर देशवासियों से बात की और कहा कि देश के संविधान के अनुच्छेद 44 में सभी नागरिकों के लिए समान कानून लागू करने की बात कही गई है। सुप्रीम कोर्ट भी देश में यूसीसी को आवश्यक बताता रहा है। देश की अधिकतर जनता भी इसे लागू करने के पक्ष में है। प्रधानमंत्री ने इस बात पर नाराजगी जताई है कि कुछ राजनैतिक दल वोट बैंक के स्वार्थ के चलते मुसलमानों को बरगलाकर उन्हें इस कानून के दोष गिना रहे हैं। फिलहाल भारत सरकार ने यूसीसी को लेकर ‘मेहनत’ शुरू कर दी है। देश के विधि आयोग ने इस मसले पर भारत वासियों से उनके सुझाव मांगे है, ताकि इस मसले को आगे बढ़ाया जाए। वैसे सत्तारूढ़ बीजेपी व उसके सहयोग देश पिछले कई वर्षों से लगातार यूसीसी लागू करने की मांग उठाते रहें हैं। अब ऐसा लगता है कि सरकार यूसीसी को लागू करने के लिए एक्शन मोड में आ रही है।
पहले समान नागरिक संहिता के पेंच को समझ लें। देश में सिविल और आपराधिक कानून सभी पर लागू होता है। इसके उल्लंघन पर किसी भी धर्म, मजहब, जाति या समाज के व्यक्ति को समान रूप से सजा दी जाती है। लेकिन सारा मसला पारिवारिक कानून से जुड़ा हुआ है, जिसमें शादी, तलाक, भरण–पोषण, उत्तराधिकार, संपत्ति का मसला व गोद लेने संबंधी कानूनों में सुधार की आवश्यकता जताई जा रही है। देश के बहुसंख्यक वर्ग हिंदुओं के लिए इस मसले पर कड़े कानून हैं और वहां महिलाओं से लेकर बच्चों के अधिकार पर भी कड़ाई का प्रावधान है। लेकिन देश के अधिकतर मुस्लिम संगठन इस कानून को मानने से लगातार इनकार करते रहें। उनका कहना है कि वह इस मसले पर अपने धर्म के नियमों के हिसाब से चलेंगे, जिसे मुस्लिम पर्सनल लॉ कहा जाता है। वैसे देश की अधिकतर हिंदू आबादी के लिए सालों पहले बनाए गए हिंदू कोड बिल में लगातार संशोधन व सुधार होता रहा है, लेकिन पर्सनल लॉ को कभी नहीं छेड़ा गया।
भारत में यूसीसी को लेकर लगातार विरोध के स्वर उठते रहे हैं, लेकिन दुनिया में इस तरह का कानून मानने वाले वाले देशों की संख्या बहुत अधिक है और इनमें मुस्लिम देश भी शामिल हैं, जिनके कार्यकलापों को कथित तौर पर कट्टर माना जाता है। इन मुस्लिम देशों में पाकिस्तान, बांग्लादेश, तुर्किए, इंडोनेशिया, मिस्र जैसे देश शुमार हैं, जहां समान नागरिक संहिता लागू है। इन देशों में धर्म विशेष या समुदाय के लिए अलग कानून नहीं है। सभी एक कानून के नीचे हैं। पारिवारिक कानून में जहां ट्रिपल तलाक की बात हैं तो कई मुस्लिम देशों में इस पर प्रतिबंध हैं। इनमें बांग्लादेश, मलेशिया, इराक, संयुक्त अरब अमीरात, इडोनेशिया, कुवैत में तो बहुत साल पहले ही ट्रिपल तलाक पर रोक लगा दी गई है। कई मुस्लिम देशों में तो एक से अधिक शादी पर भी प्रतिबंध लगा हुआ है। भारत में यह तलाक कानून हाल ही में समाप्त किया गया है, लेकिन इसे अभी भी प्रभावी नहीं माना जा रहा है, क्योंकि देश में मुस्लिम महिलाओं पर कई प्रकार के दबाव रहते हैं।
भारत में पीएम मोदी द्वारा यूसीसी का मसला उठाने के बाद अब नए तरह से बहस शुरू हो गई है। विपक्षी राजनैतिक दल पुरानी परंपरा के अनुसार यूसीसी लागू करने को लेकर विरोध में तो हैं, लेकिन इस बार वह फूंक-फूंककर कदम उठा रहे हैं। उन्हें लगता है कि देश में अगले साल लोकसभा चुनाव हैं, इसलिए वे कुछ ऐसा न बोलें कि मोदी सरकार की पार्टी के पक्ष में वोटों का ध्रुवीकरण हो जाए। दूसरी ओर देश की अधिकतर आबादी इसके पक्ष में नजर आ रही है। वैसे भी देश के सभी नागरिक बराबर हैं तो फिर उनके लिए शादी, तलाक, उत्तराधिकार आदि के कानून भी एक जैसे होने चाहिए। ऐसा होने से राष्ट्रीय एकता को बल मिलेगा, सभी नागरिकों में बराबरी का भाव पैदा होगा और महिलाओं के हितों की अनदेखी का सिलसिला थमेगा। भारत के लिए राहत की बात यह है कि कुछ मुस्लिम संगठन यूसीसी को लेकर सकारात्मक रुख दिखा रहे हैं। देश के कुछ विपक्षी दल भी इसे लागू करने के हक में हैं। तो देखना होगा कि बिना किसी तनाव व लॉ एंड ऑर्डर की समस्या के बिना यह कानून लागू हो पाएगा।