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भारत में सुप्रीम कोर्ट का समलैंगिक विवाह को मंजूरी देने से इंकार, अमेरिकी हुए 'निराश'

अमेरिका स्थित दंपति जेपी मॉर्गन चेज पॉलिसी सेंटर के प्रबंध निदेशक और अध्यक्ष पराग मेहता और उनके पति वैभव जैन इस मामले में दर्जनों याचिकाकर्ताओं में से थे। उन्होंने यूट्यूब के माध्यम से जजों को मामले में अपनी दलीलें देते हुए लाइव देखा था। उन्होंने फैसले पर निराशा जताई है।

पराग मेहता (बाएं) अपने पति वैभव जैन और अपने दो नवजात बच्चों विवान और रानी के साथ। (फोटो परिवार के सौजन्य से)

भारत की सुप्रीम कोर्ट द्वारा समलैंगिक विवाह को मंजूरी न देने का फैसला उन दो भारतीय अमेरिकी याचिकाकर्ताओं के लिए भी एक झटका था, जिन्होंने दो साल से अधिक समय तक अपनी शादी को मान्यता दिलाने का इंतजार किया है।

3-2 के फैसले के साथ की भारत की सुप्रीम कोर्ट ने समलैंगिक विवाह को मान्यता देने से मना कर दिया। कोर्ट ने तर्क दिया कि भारत में विवाह का कोई संवैधानिक अधिकार नहीं है। यह फैसला सुप्रीम कोर्ट के मुख्य न्यायाधीश डीवाई चंद्रचूड़ और जस्टिस एसके कौल, एसआर भट्ट, हिमा कोहली और पीएस नरसिम्हा द्वारा सुनाया गया था।

याचिकाकर्ताओं के वकीलों ने तर्क दिया कि विवाह एक मौलिक अधिकार है, जो भारत के सभी नागरिकों को दिया जाना चाहिए। लेकिन कोर्ट इससे सहमत नहीं हुआ। फैसले की घोषणा करते हुए चंद्रचूड़ ने कहा कि संविधान स्पष्ट रूप से शादी करने के मौलिक अधिकार को मान्यता नहीं देता है।

two man's hands wearing gold-colored wedding rings
फैसले में कहा गया कि समान लिंग विवाह को 1954 के विशेष विवाह अधिनियम द्वारा संरक्षित नहीं किया गया था।Photo by Nick Karvounis / Unsplash

इस अधिनियम में व्याख्या केवल अंतरधार्मिक विवाहों से संबंधित के रूप में की गई थी। इसके अलावा अदालत ने फैसला सुनाया कि संसद और भारत के राज्यों के पास समलैंगिक विवाह को कायम रखने के लिए कानून बनाने की शक्ति है लेकिन जहां कोई कानून मौजूद नहीं है वहां मिसाल कायम करना अदालत की जिम्मेदारी नहीं है।

वहीं न्यायमूर्ति एसआर भट्ट ने कहा कि विवाह एक सामाजिक संस्था है जो राज्य के अधिकार क्षेत्र से बाहर है। यह एक सामाजिक चिंता है जिस पर अदालत का बहुत कम प्रभाव है। उन्होंने कहा कि हालांकि LGBTQ+ लोगों को अपने साथी चुनने का अधिकार है लेकिन उनके अधिकार सुनिश्चित करने की कोर्ट की कोई जिम्मेदारी नहीं है।

भारतीय सुप्रीम कोर्ट ने फैसला सुनाया कि यह सुनिश्चित करने के लिए एक विशेष समिति गठित की जानी चाहिए कि LGBTQ+ लोगों को कानून के तहत उनके विषमलैंगिक समकक्षों के समान सुरक्षा मिले। LGBTQ+ जोड़ों को संयुक्त रूप से एक साथ गोद लेने पर भी प्रतिबंध है। इस पर मुख्य न्यायाधीश चंद्रचूड़ ने घोषणा की कि कानून अच्छे या बुरे माता-पिता के बारे में धारणा नहीं बना सकता है।

अमेरिका स्थित दंपति जेपी मॉर्गन चेज पॉलिसी सेंटर के प्रबंध निदेशक और अध्यक्ष पराग मेहता और उनके पति व एएपीआई विक्ट्री फंड के राष्ट्रीय आउटरीच निदेशक वैभव जैन इस मामले में दर्जनों याचिकाकर्ताओं में से थे। उन्होंने यूट्यूब के माध्यम से जजों को मामले में अपनी दलीलें देते हुए लाइव देखा था।

जैन ने फैसला सुनाए जाने के कुछ मिनट बाद न्यू इंडिया अब्रॉड से कहा कि हम बहुत निराश हैं। हम आज सुप्रीम कोर्ट के फैसले से बहुत निराश हैं। हम जानते हैं कि आज ऐसा नहीं हुआ लेकिन अंततः भारत में यह अधिकार मिलेगा और आने वाली पीढ़ियाँ पीछे मुड़कर देखेंगी और आश्चर्य करेंगी कि यह सारा उपद्रव किस बात को लेकर था।

फैसले से पहले जारी एक बयान में जैन ने कहा था कि हमारा मामला बहुत सरल है। पांच दशकों से अधिक समय से भारतीय कानून यह मानता आया है कि विदेशी विवाह भारत में वैध हैं। लेकिन हमारा संविधान लिंग के आधार पर भेदभाव को स्पष्ट रूप से प्रतिबंधित करता है। इसलिए जहां तक मेरा सवाल है। पराग के साथ मेरी शादी भारत में पहले से ही वैध है। अदालतों और सरकार को बस यह स्वीकार करने की जरूरत है कि क्या सच और सही है।

बता दें कि जैन भारतीय नागरिक हैं जबकि मेहता अमेरिकी नागरिक हैं। मेहता ओबामा प्रशासन में पूर्व चीफ ऑफ स्टाफ और अमेरिकी सर्जन जनरल विवेक मूर्ति के वरिष्ठ सलाहकार रह चुके हैं। मेहता ने साल 2012 में वाशिंगटन डीसी में जैन से मुलाकात की और पांच साल बाद डीसी सर्किट कोर्ट ऑफ अपील्स न्यायाधीश श्रीनिवासन द्वारा संचालित एक कानूनी समारोह में उनसे शादी कर ली। दंपति ने हाल ही में दो शिशुओं रानी और विवान को गोद लिया है।

ऐसे ही भारतीय किशोर की अपनी कामुकता के साथ समझौता करने की कहानी 'माई मैजिकल पैलेस' के लेखक भारतीय अमेरिकी कुणाल मुखर्जी ने न्यू इंडिया अब्रॉड को बताया कि सुप्रीम कोर्ट का फैसला बेहद निराशाजनक रहा। इसका भारत के लाखों LGBTQ+ नागरिकों के दैनिक जीवन पर विनाशकारी प्रभाव पड़ेगा।

हालांकि मुखर्जी ने कहा कि इस मामले ने एक तरह की जीत की पेशकश की। 20 साल पहले भारत में कोई नहीं जानता था कि समलैंगिकता क्या है। फिलहाल हम पूरे भारत के सामने और केंद्र हैं। अधिकांश भारतीय समान-लिंग विवाह का समर्थन करते हैं।

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