स्टैनफोर्ड विश्वविद्यालय के भारतवंशी प्रोफेसर और उनके साथी वैज्ञानिकों को अभिव्यक्ति की आजादी पर प्रतिबंधों से जुड़े मामले में अमेरिकी सरकार के खिलाफ ऐतिहासिक कानूनी जीत हासिल हुई है। जय भट्टाचार्य के नाम से मशहूर जयंता भट्टाचार्य कोरोना काल में लगाए गए लॉकडाउन के सख्त विरोधी रहे हैं। उन्होंने और अन्य वैज्ञानिकों ने लॉकडाउन के विरोध में एक घोषणापत्र जारी किया था जिसे सरकार ने सोशल मीडिया साइटों से हटवा दिया। अब अदालत ने इस मामले में सरकार के खिलाफ निषेधाज्ञा जारी की है।
जय और उनके साथी हार्वर्ड यूनिवर्सिटी के मेडिसिन के प्रोफेसर मार्टिन कुलडॉर्फ, ऑक्सफोर्ड यूनिवर्सिटी में महामारी विशेषज्ञ सुनेत्रा गुप्ता ने मिलकर अक्टूबर 2020 में कोविड महामारी के चरम के दौरान द ग्रेट बैरिंगटन डिक्लेरेशन प्रकाशित किया था। संक्षेप में बताएं तो इस घोषणापत्र में आर्थिक लॉकडाउन और उस तरह की अन्य प्रतिबंधात्मक नियमों पर रोक का आग्रह किया गया था।
इन लोगों का तर्क ये था कि इस लॉकडाउन से समाज को सीमित लाभ मिलेगा जबकि युवाओं और आर्थिक रूप से कमजोरों को नुकसान ज्यादा होगा। कई डॉक्टरों और पब्लिक हेल्थ एक्सपर्ट्स ने इस घोषणापत्र पर हस्ताक्षर किए थे। लेकिन अमेरिकी सरकार को लॉकडाउन के खिलाफ उनका घोषणापत्र नहीं सुहाया।
अधिकारियों ने सोशल मीडिया पर से उनका घोषणापत्र हटवा दिया। इसे जय और उनके साथियों ने अदालत में चुनौती दी। इस साल की शुरुआत में अदालत ने सरकार को अंतरिम निषेधाज्ञा आदेश जारी करके सोशल मीडिया कंपनियों पर दबाब न डालने का निर्देश दिया। हाल ही में अमेरिका के पांचवे सर्किट की अपीलीय अदालत की तीन जजों की बेंच ने प्रशासनिक आदेश जारी करके हुए निषेधाज्ञा आदेश में संशोधन करते हुए पूरी तरह लागू करने का आदेश दिया।
भट्टाचार्य कहते हैं कि उनके माता-पिता गरीबी में पले-बढ़े थे। उनकी मां कोलकाता की झुग्गी बस्ती में रहती थीं। उनके पिता एक इलेक्ट्रिकल इंजीनियर और रॉकेट वैज्ञानिक थे। 1970 के दशक में वे अमेरिका आकर बस गए। 19 साल की उम्र में अमेरिकी नागरिक बन गए जय का कहना है कि उनका बचपन गरीबी और वंचित समाज में बीता है, इसलिए उन्हें पता है कि लॉकडाउन से ऐसे लोगों पर क्या असर होगा इसीलिए उन्होंने इसके खिलाफ आवाज उठाई थी।
कोलकाता में जन्मे जय भट्टाचार्य महामारी विज्ञान और स्वास्थ्य अर्थशास्त्र पर शोध करते हैं। जय ने कहा कि यह जीत सिर्फ मेरी नहीं है बल्कि हर उस अमेरिकी की है जिसने महामारी के दौरान दमनकारी प्रतिबंधों की वजह से परेशानी महसूस की है। अब अदालत ने भी हमारी अभिव्यक्ति की आजादी के अधिकार को बहाल कर दिया है। यह बड़ी जीत है।