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हफ्ते में 70 घंटे काम का अब इस दिग्गज भारतीय-अमेरिकी ने किया समर्थन

विनोद खोसला ने नारायणमूर्ति के सुझाव का समर्थन करते हुए यहां तक कह दिया कि जो कोई उनके सुझाव को हमले की तरह देख रहा है, उसे अपनी मानसिक जांच करा लेनी चाहिए। खोसला का कहना था कि लोगों को मेहनत करने के लिए पेटी बांध लेनी चाहिए। मजबूत बनना सीखना चाहिए।

विनोद खोसला और एनआर नारायणमूर्ति। फोटो साभार सोशल मीडिया

भारतीय आईटी दिग्गज कंपनी इन्फोसिस से संस्थापक एनआर नारायणमूर्ति के भारत के युवाओं को हर हफ्ते 70 घंटे काम करने के सुझाव पर बहस और चर्चाओं का दौर अभी तक जारी है। इसी कड़ी में अब भारतीय-अमेरिकी कारोबारी और सन माइक्रोसिस्टम्स के सह-संस्थापक विनोद खोसला का बयान सामने आया है।

विनोद खोसला ने नारायणमूर्ति के सुझाव का समर्थन करते हुए यहां तक कह दिया कि जो कोई उनके सुझाव को हमले की तरह देख रहा है, उसे अपनी मानसिक जांच करा लेनी चाहिए। खोसला का कहना था कि लोगों को मेहनत करने के लिए पेटी बांध लेनी चाहिए। मजबूत बनना सीखना चाहिए। इसे हमले की तरह नहीं देखना चाहिए।

खोसला ने आगे कहा कि आप ऐसी जिंदगी चुन सकते हैं, जिसमें आपको सप्ताह में 70 घंटे काम न करना पड़े। लेकिन उसके जो परिणाम होंगे, उसका सामना करने के लिए भी तैयार रहना चाहिए। उनका कहना था कि नारायणमूर्ति ने 70 घंटे काम का सुझाव ऐसे युवाओं के लिए दिया था, जो करियर में आगे बढ़ना चाहते हैं। लेकिन अगर कोई दूसरे तरीके से अपनी जिंदगी जीना चाहता है, तो उसके लिए भी विकल्प होते हैं।

68 वर्षीय अरबपति खोसला ने अपना अनुभव बताते हुए कहा कि वह भी हफ्ते में 80 घंटे काम किया करते थे और अब भी करते हैं। उन्हें नहीं लगता कि आने वाले समय में इसमें कोई कटौती होने जा रही है। खोसला का कहना था कि लोगों में काम के प्रति समर्पण की भावना उनके अंदर से आनी चाहिए।

सिलिकॉन वैली के दिग्गज खोसला ने कहा कि बड़ा रुतबा, बड़े घर, हर किसी को खुश नहीं करते हैं। प्रति सप्ताह 70 घंटे काम न करने से आपको अपने पड़ोसियों को दिखाने के लिए बड़ा घर या बड़ी कार नहीं मिल सकती, लेकिन आपके सामने वह विकल्प भी होता है। आप उसे भी चुन सकते हैं। कुछ लोगों को ऐसी चीजें खुश नहीं करती हैं। बहुत से लोग रिटायर होने के बाद भी काम में जुटे रहते हैं।

गौरतलब है कि नारायणमूर्ति ने एक यूट्यूब पॉडकास्ट में यह सुझाव देकर बहस छेड़ दी है कि अगर भारत को उल्लेखनीय प्रगति करने वाली विकसित अर्थव्यवस्थाओं के साथ प्रतिस्पर्धा करनी है तो युवाओं को सप्ताह में 70 घंटे काम करना चाहिए। उनके इस सुझाव से कई लोगों ने सहमति जताई लेकिन अधिकांश लोग इसकी मुश्किलें गिनाते हुए वर्क-लाइफ बैलेंस का हवाला दे रहे हैं।

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