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कोर्ट के फैसले पर भारतीय अमेरिकियों ने दी प्रतिक्रिया, जताई निराशा

8 जून को जारी प्यू रिसर्च सर्वेक्षण से पता चलता है कि 60% भारतीय अमेरिकी इस कानून का समर्थन करते थे जबकि मात्र 19% ही सोचते थे कि यह गलत है। प्यू सर्वेक्षण के अनुसार रिपब्लिकन की ओर झुकाव रखने वाले भारतीय अमेरिकियों में से भी 35% इसके पक्ष में थे।

Photo : Harvard Indian Student Group photo

अमेरिका के सुप्रीम कोर्ट ने एक अहम फैसले में कॉलेजों में नस्लीय आधार पर दाखिले की नीति को खत्म कर दिया है। कोर्ट ने 29 जून को फैसला सुनाते हुए हार्वर्ड और उत्तरी कैरोलिना विश्वविद्यालय में कॉलेज प्रवेश कार्यक्रमों के लिए सकारात्मक कार्रवाई को रद्द कर दिया और कहा कि यह प्रथा श्वेत और एशियाई अमेरिकी छात्रों के खिलाफ भेदभाव करती है, साथ ही संविधान के 14वें संशोधन का उल्लंघन करती है। आसान शब्दों में समझें तो कोर्ट के फैसले के अनुसार अब नस्लीय आधार की बजाय मेरिट के आधार पर एडमिशन होंगे।

हालांकि कोर्ट के इस फैसले की कुछ एशियाई अमेरिकी संगठनों ने न सिर्फ निंदा की बल्कि फैसले की घोषणा के तुरंत बाद कोर्ट की सीढ़ियों पर विरोध प्रदर्शन शुरू कर दिया। 8 जून को जारी प्यू रिसर्च सर्वेक्षण से पता चलता है कि 60% भारतीय अमेरिकी इस कानून का समर्थन करते थे जबकि मात्र 19% ही सोचते थे कि यह गलत है। प्यू सर्वेक्षण के अनुसार रिपब्लिकन की ओर झुकाव रखने वाले भारतीय अमेरिकियों में से भी 35% इसके पक्ष में थे।

सैन डिएगो स्थित कैलिफोर्निया विश्वविद्यालय के चांसलर प्रदीप खोसला ने तुरंत एक बयान जारी कर कहा कि उनका कैंपस फैसले के बावजूद विविधता के लिए प्रतिबद्ध है। बता दें कि खोसला अकादमिक क्षेत्र में सर्वोच्च रैंकिंग वाले भारतीय अमेरिकियों में से एक हैं।

खोसला ने कहा कि कैलिफोर्निया के प्रस्ताव 209 ने 1996 से सार्वजनिक कॉलेज प्रवेश में नस्ल और लिंग पर विचार करने पर रोक लगा दी है। बावजूद इसके कैलिफोर्निया कैंपस ने प्रत्येक आवेदक के व्यक्तिगत संदर्भ का आकलन करने में नस्ल-तटस्थ विकल्पों पर विचार करने के लिए सावधानीपूर्वक और विचारपूर्वक प्रभावी तरीकों की तलाश की है।

हमारा मानना है कि गुणवत्तापूर्ण शिक्षा तक पहुंच आर्थिक गतिशीलता में महत्वपूर्ण योगदान देती है और कैरियर की संभावनाओं को बढ़ाती है। इसी से छात्रों और उनके परिवारों के जीवन में बदलाव आता है। हम आज के फैसले का हमारे कैंपस पर प्रभाव नहीं पड़ने देंगे और इस फैसले के प्रभाव को कम करने के लिए जांच करने के साथ-साथ काम भी करेंगे।

वहीं एडवांसिंग जस्टिस - एशियन लॉ कॉकस की कार्यकारी निदेशक आरती कोहली कहती हैं कि आज कई छात्रों को गुणवत्तापूर्ण शिक्षा प्राप्त करने में महत्वपूर्ण बाधाओं का सामना करना पड़ता है। ऐसे वक्त में जब बहुसंख्यकों और अल्पसंख्यकों के स्कूलों के बीच संसाधानों में बड़ा अंतर दिखाई पड़ता है, हमें यूएस कांग्रेस, हमारे स्थानीय निर्वाचित नेताओं और विश्वविद्यालयों से आह्वान करना चाहिए कि वे अपनी शक्तियों का उपयोग करते हुए ऐसे समाधानों को लागू करें जो वास्तव में आर्थिक समानता और नस्लीय भेदभाव को कम करने के लिए जरूरी है।

न्यू इंडिया अब्रॉड के साथ साक्षात्कार में भारतीय अमेरिकी छात्रों ने भी अदालत के इस फैसले पर निराशा व्यक्त की।

कार्नेगी मेलॉन विश्वविद्यालय से मैकेनिकल इंजीनियरिंग में ग्रेजुएशन और मास्टर डिग्री हासिल करने वाले कैलिफोर्निया के लॉस अल्टोस के निवासी कैजाद तारापोरवाला कहते हैं कि कैंपस में विविधता उनके कॉलेज के अनुभव का एक अभिन्न अंग थी। मैं सुप्रीम कोर्ट के फैसले से निराश हूं। यह फैसला उच्च शिक्षा में विविधता को भारी नुकसान पहुंचाएगा और सभी छात्रों के अनुभव को प्रभावित करेगा।

स्टूडेंट्स फॉर फेयर एडमिशन के बयानों का विरोध करते हुए तारापोरवाला ने कहा कि जिन उच्च-प्रतिस्पर्धी विश्वविद्यालयों में उन्होंने आवेदन किया था वहां प्रवेश प्रक्रिया के दौरान उन्हें कभी भी भेदभाव महसूस नहीं हुआ। बचपन में मुझे एडवांस क्लास लेने के लिए प्रोत्साहित किया जाता था। लेकिन मुझे लगता है कि प्रवेश प्रक्रिया में उन लोगों को ऊपर उठाना उचित है जिनके ग्रेड या टेस्ट स्कोर थोड़े कम हो सकते हैं क्योंकि उन्हें मेरी तरह प्रोत्साहित नहीं जाता है।

तारापोरेवाला आगे कहते हैं कि कॉलेज में मेरे अनुभव के लिए विविधता बेहद महत्वपूर्ण थी। बड़े होने पर मेरा शहर अधिकतर श्वेत या एशियाई था। इसलिए मेरे अधिकांश मित्र श्वेत या एशियाई बन गए। कॉलेज में मैंने दोस्त बनाए और विभिन्न प्रकार के लोगों के साथ परियोजनाओं पर काम किया जो मुझे लगता है कि मेरे व्यक्तिगत विकास के लिए बहुत महत्वपूर्ण था।

रिवरसाइड में कैलिफोर्निया विश्वविद्यालय से ग्रेजुएशन करने के बाद अब पेपरडाइन विश्वविद्यालय में नैदानिक ​​मनोविज्ञान में मास्टर डिग्री कर रहीं गीतांजलि चंद्रोथ ने भी सुप्रीम कोर्ट के फैसले पर निराशा व्यक्त की। गीतांजलि ने कहा कि मेरी प्रारंभिक प्रतिक्रिया यही थी कि हम एक देश के रूप में लगातार पीछे कैसे जा रहे हैं? हम ऐसे देश में रहते हैं जहां कॉलेज लगभग एक आवश्यकता है और इसलिए कुछ ऐसा होना चाहिए जो सभी लोगों के लिए सुलभ हो।

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