भारतीय-अमेरिकी समुदाय अमेरिका के साथ भारत के कूटनीतिक संबंधों का एक मजबूत और महत्वपूर्ण स्तंभ हैं। लेकिन यूक्रेन पर रूस के हमले को लेकर भारत की मोदी सरकार के रुख ने इस समुदाय को नई दिल्ली से पहले से कहीं अधिक दूर कर दिया है। इसे लेकर भारतीय-अमेरिकियों का एक द्वि-दलीय समूह इस मुद्दे पर कैपिटल हिल पर आयोजित होने वाले एक कार्यक्रम में मोदी सरकार से अपने मनमुटाव की जानकारी देगा, साथ ही उसे कम करने पर विमर्श भी करेगा।

इस कार्यक्रम के लिए विचार 'भारतीय-अमेरिकी यूक्रेन में नरसंहार के खिलाफ हैं' रखा गया है। इसका उद्देश्य यह दिखाना है कि डायस्पोरा भी यूक्रेन पर रूस के हमले से उतना ही डरा हुआ और दुखी है, जितना कि बाकी अमेरिका। इस कार्यक्रम में हाउस ऑफ रिप्रेजेंटेटिव्स के चार भारतीय-अमेरिकी सदस्यों समेत दोनों पार्टियों के कई सांसद संबोधित करेंगे।
राष्ट्रपति जो बाइडेन इस कार्यक्रम में शामिल नहीं हो रहे हैं। लेकिन आयोजकों की ओर से वितरित किए गए फ्लायर में सांसद राजा कृष्णमूर्ति की तस्वीर राष्ट्रपति के साथ देखी जा सकती है। इसका मतलब है कि कार्यक्रम व्हाइट हाउस की जानकारी में आयोजित किया जा रहा है। आयोजकों के अनुसार इससे भारतीय अमेरिकियों के बारे में गलतफहमियां दूर होंगी जिन्हें अक्सर नई दिल्ली के लिए 'चीयरलीडर्स' के रूप में देखा जाता है।
हालांकि बीते समय में भारतीय-अमेरिकियों ने खुद को भारत सरकार की नीतियों के साथ खुद को नजदीकी से जोड़ा है और उन्होंने सरकार के कार्यकर्ता की तरह भी काम किया है। वह 1998 में पोखरण परमाणु परीक्षणों के लिए क्लिंटन प्रशासन की ओर से लगाए गए प्रतिबंधों के असर को कुंद करने के लिए पूर्व प्रधानमंत्री अटल बिहारी वाजपेयी की सरकार के प्रयासों का अखंड हिस्सा रहे थे।
इसके अलावा समुदाय ने भारत-अमेरिका सिविल न्यूक्लियर डील को अमेरिकी कांग्रेस से समर्थन मिलने में अहम भूमिका निभाई थी। इससे द्विपक्षीय संबंधों में एक नई गर्मजोशी की शुरुआत हुई थी जो आज भी जारी है। इसका समर्थन रिपब्लिकन और डेमोक्रेट दोनों सरकारों ने किया है। यहां बता दें कि भारत के प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी भारतीय-अमेरिकियों के बीच बहुत लोकप्रिय हैं।
कई भारतीय अमेरिकियों ने तो मोदी के चुनाव अभियान के दौरान मदद करने के लिए भारत की यात्रा की थी या फिर फोन और कंप्यूटर के जरिए काम किया था। लेकिन रूस-यूक्रेन युद्ध को लेकर अपनी नीति के चलते उन्हें समुदाय की ओर से झटका लग सकता है। उल्लेखनीय है कि अमेरिका ने रूस पर शुरुआत से ही सख्त प्रतिबंध लगाए हैं जबकि भारत ने स्पष्ट तौर पर किसी का पक्ष नहीं लिया है और शांति की अपील की है।