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विशेष लेख: भारत बात करेगा...लेकिन एजेंडे में सबसे पहले हो आतंकवाद

शरीफ साहब भारत को यह तो याद न ही दिलाएं कि दोनों दक्षिण एशियाई देश परमाणु हथियारों से लैस हैं या दोनों में से किसके पास अधिक परमाणु हथियार हैं। जिम्मेदार परमाणु शक्तियां कब्जे और उपयोग पर कभी चर्चा नहीं करतीं।

भारत के प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी और पाकिस्तानी पीएम शहबाज शरीफ। Image: NIA

पाकिस्तान के प्रधानमंत्री शहबाज शरीफ भारत से बातचीत के लिए लगातार गुहार लगा रहे हैं। लेकिन इस दरम्यान शरीफ शायद दो बातें भूल रहे हैं। पहली, कि भारत ने बातचीत के लिए कभी न नहीं कहा। और दूसरी यह कि किसी भी एजेंडा पर बातचीत में सीमापार से होने वाला आतंकवाद अवश्य शामिल रहेगा। बल्कि सबसे ऊपर होगा। भारत का मानना और कहना यही रहा है कि यदि पाकिस्तान के साथ बातचीत के एजेंडा में आतंकवाद का मुद्दा शामिल नहीं हुआ तो कोई बात नहीं होगी क्योंकि उसका कोई अर्थ ही नहीं रह जाएगा।

शरीफ को यह समझना होगा कि आतंकवाद की जिस आग में भारत दशकों से जल रहा है उसकी आंच को भुलाया नहीं जा सकता और उससे भी बुरा यह दिखावा करना है कि आतंकवाद जैसी कोई समस्या है ही नहीं। शरीफ शायद एक और बात भी भूल रहे हैं कि भारत एक शांतिपूर्ण दक्षिण एशिया चाहता है। ऐसा क्षेत्र जहां पड़ोसी निर्दोष लोगों को मारने के लिए विस्फोटकों और सब-मशीनगनों से लैस सीमा पार से आने वाले ठगों और गुंडों में उलझने के बजाय आवश्यक आर्थिक और सामाजिक मुद्दों पर अपना ध्यान केंद्रित करें। पाकिस्तान के प्रधानमंत्री को इस बात की पूरी जानकारी है कि चरमपंथी उनके देश में कितना नुकसान कर रहे हैं। दूसरों पर आरोप लगाने वाली उंगली उठाने से शायद ही मामले में कोई मदद मिलेगी।

पाकिस्तानी नेता का यह कथन भी नया नहीं है कि युद्ध कोई विकल्प नहीं है। भारत भली-भांति समझता है कि संघर्ष की स्थिति उत्पन्न होने पर भीषण विनाश होना तय है। सीमा पार से हथियारों से लैस और सरकारी मशीनरी द्वारा समर्थित आतंकवादियों की हिंसा का खामियाजा भुगत रहे निर्दोष लोगों कों देखते हुए भी अगर भारत इतना धैर्य बरत रहा है तो उसकी वजह यही है कि वह जंग की परिणति जानता-समझता है। वैसे, शरीफ साहब भारत को यह तो याद न ही दिलाएं कि दोनों दक्षिण एशियाई देश परमाणु हथियारों से लैस हैं या दोनों में से किसके पास अधिक परमाणु हथियार हैं। सच तो यह है कि जिम्मेदार परमाणु शक्तियां कब्जे और उपयोग पर कभी चर्चा नहीं करतीं। लेकिन यह बात पहले इस्लामाबाद में राजनेताओं और उच्च पदों पर बैठे लोगों को समझने की जरूरत है। इन हालात में पाकिस्तान के अंतरराष्ट्रीय समुदाय की प्रमुख चिंता यह है कि देश आर्थिक व राजनीतिक अस्थिरता और पतन के कगार पर लड़खड़ा रहा है। वहीं, परमाणु भंडार जिहादियों और आतंकवादियों के हाथों में पड़ने की दुस्स्वप्न जैसी स्थिति पैदा हो रही है।

पाकिस्तान खुद आतंकवाद से आहत है। जो भी थोड़े-बहुत देश पाकिस्तान का समर्थन कर रहे हैं वे भी वहां की जमीनी सच्चाई से वाकिफ हैं। हालात ऐसे हैं कि पाकिस्तान और अफगानिस्तान अब इस बात पर लगातार टकरा रहे हैं कि कौन सा देश आतंकवादियों को पनाह दे रहा है। लेकिन मूल बात यह है कि इन दोनों देशों में से किसी को भी यह नहीं भूलना चाहिए कि आतंकवादियों की मौजूदगी केवल उनकी आबादी के लिए और अधिक संकट ला सकती है, जो पहले से ही गंभीर कठिनाइयों से जूझ रही है। प्रधानमंत्री शरीफ को बिना किसी संदेह के यह साबित करना होगा कि उनका देश अब आतंक का केंद्र नहीं रह गया है और पाकिस्तानी सेना व आईएसआई अब सीमा पार से भारत में आतंकवादियों और आतंकी संगठनों की तस्करी में शामिल नहीं है। दिन में हाथ मिलाना और रात को आतंकियों से दोस्ती निभाने से तो कुछ नहीं होने वाला।

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