डॉ. मीनू अदनवाला
ओबामा प्रशासन के दौरान अमेरिका-भारत संबंधों में सबसे बड़ी प्रगति देखी गई। व्यापार, अर्थशास्त्र, निवेश और आज की भारतीय अर्थव्यवस्था में आश्चर्यजनक सुधार, हर क्षेत्र में विकास और सहयोग नजर आया था। इसने सुनिश्चित किया कि प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी के नेतृत्व में भारत इसी तरह विकास करना जारी रखेगा और उससे देश की आर्थिक प्रतिष्ठा और महत्व में इजाफा होगा।
स्वतंत्रता के बाद भारत और संयुक्त राज्य अमेरिका को यह तथ्य एक करता है कि दोनों देश लोकतंत्र हैं। अमेरिका ने हमेशा भारतीय स्वतंत्रता का समर्थन किया है। उदाहरण के लिए राष्ट्रपति फ्रैंकलिन रूजवेल्ट ने अपने अंतिम दिनों के दौरान भारतीय की स्वतंत्रता के लिए, ब्रिटिश सरकार पर भारी दबाव डाला था, विशेष रूप से विंस्टन चर्चिल के समय में। हालांकि चर्चिल ने इसका विरोध किया था। लेकिन शायद भारत और अमेरिका के करीबी महान रिश्ते की यह शुरुआत भर थी। जैसे ही संयुक्त राज्य अमेरिका और रूस के बीच शीत युद्ध शुरू हुआ, भारतीय प्रधानमंत्री जवाहरलाल नेहरू ने दोनों देशों के बीच तालमेल बनाकर चलने का प्रयास किया। नेहरू की स्थिति यह थी कि भारत गुटनिरपेक्ष होने जा रहा है और अपने स्वयं के विकास के संबंध में वह एक स्वतंत्र दृष्टिकोण अपनाएगा। इस बीच, पाकिस्तान संयुक्त राज्य अमेरिका का अच्छा सहयोगी बन गया जबकि भारत अलग-थलग बना रहा। यही वजह है कि भारत को शुरू में रूस समर्थक के रूप में ज्यादा देखा जाता था क्योंकि उसने संयुक्त राज्य अमेरिका या रूस के पक्ष में खड़े होने से इनकार कर दिया था।
आपको याद होगा कि संयुक्त राज्य अमेरिका जिसे सेंटो या केंद्रीय संधि संगठन कहा जाता था, ने पाकिस्तान के साथ गठबंधन किया और खुले तौर पर विदेश नीति के मामले में पाकिस्तान को सहयोगी बनाया। इसी वजह से भारत और संयुक्त राज्य अमेरिका के बीच एक समय तनाव था। भले ही दोनों लोकतंत्र हैं और निष्पक्ष चुनावों व कानून के शासन में विश्वास करते थे। संयुक्त राज्य अमेरिका नेहरू के गुटनिरपेक्ष दर्शन को रूस समर्थक के रूप में देखता था।
उदाहरण के लिए 1956 में जब हंगेरियन विद्रोह हुआ और सोवियत संघ ने इसे बलपूर्वक क्रूरता से दबा दिया तो भारत ने शुरू में इस तथ्य को स्वीकार करने से भी इनकार कर दिया था कि रूसी हंगरी को हटाने के लिए क्रूर साधनों का उपयोग कर रहा है। जब रूस में भारतीय राजदूत ने नेहरू को बताया कि वहां क्या हो रहा है, तब जाकर नेहरू अंततः रूसी स्थिति के बारे में आश्वस्त हुए। और फिर पाकिस्तान-बांग्लादेश युद्ध के दौरान, भारत ने बांग्लादेश का पक्ष लिया क्योंकि पाकिस्तान ने विद्रोह को दबाने की कोशिश की थी। इसने भारत को अमेरिका के साथ मतभेद की स्थिति में डाल दिया। विशेष रूप से निक्सन प्रशासन के दौरान बहुत तनाव रहा था। लेकिन बांग्लादेश का मुद्दा सुलझने और उसकी स्वतंत्रता के बाद और इधर निक्सन प्रशासन खत्म होने के बाद, भारत धीरे-धीरे अमेरिका के करीब और करीब आता चला गया।
सफलता वास्तव में तब मिली, जब नरसिम्हा राव भारत के प्रधानमंत्री थे। भारत में आर्थिक स्थिति निराशाजनक थी। नरसिम्हा राव ने कांग्रेस पार्टी के आर्थिक समाजवाद को खारिज कर दिया था और खुले तौर पर अधिक पूंजीवादी, मुक्त उद्यम समर्थक बन गए थे। इसे देखते हुए संयुक्त राज्य अमेरिका भारत का बहुत करीबी सहयोगी बन गया। जब भारत ने अपने आर्थिक हथियार विकसित किए, तब तनाव जरूर था लेकिन आज उसमें भी सुधार होता दिख रहा है। भारत द्वारा परमाणु हथियार विकसित करने के खिलाफ नाराजगी कम हो चुका है। भारत आज एक परमाणु शक्ति है लेकिन वह परमाणु खतरों पर अपनी स्थिति के बारे में बहुत संयमित रहा है।
सैन्य आपूर्ति के मामले में भारत अमेरिका के बेहद करीब पहुंच चुका है। संयुक्त राज्य अमेरिका आज भारत के सैन्य विकास के संबंध में बहुत अनुकूल प्रतिक्रिया देता है। अब संयुक्त राज्य अमेरिका बनाम चीन और भारत बनाम चीन के बीच बहुत तनाव है। चीन अब अपनी संप्रभुता पर कुछ ज्यादा ही जोर देने का प्रयास कर रहा है जैसा कि उसने पहले कभी नहीं किया था। आपको याद होगा, चीन ने भारतीय इलाके में आक्रमण किया था। लद्दाख के कुछ हिस्सों को अपने कब्जे में ले लिया। लद्दाख पर कब्जे और उसकी स्वतंत्रता के मामले में संयुक्त राज्य अमेरिका भारत के प्रयास का पूरी तरह से समर्थन करता है। इस तरह कहा जा सकता है कि अमेरिका-भारत संबंधों का भविष्य बेहद उज्ज्वल है। निकट भविष्य में और लगभग हर क्षेत्र में घनिष्ठ सहयोग की यह प्रवृत्ति जारी रहेगी।
डॉ. मीनू एडेनवाला: विस्कॉन्सिन के एप्पलटन में लॉरेंस विश्वविद्यालय से सेवानिवृत्त एमेरिटस प्रोफेसर। उन्होंने ने 1959 में लॉरेंस में पढ़ाना शुरू किया था और 95 साल की उम्र में पिछले वसंत तक पढ़ाया।