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WHO की रिपोर्ट ने भारत पर उठाए सवाल, मसला नवजात शिशुओं से जुड़ा है

डब्ल्यूएचओ और यूनिसेफ की एक संयुक्त रिपोर्ट में कहा गया है कि साल 2020 में दुनिया में करीब 13.40 करोड़ बच्चों ने समयपूर्व जन्म लिया था। इनमें से 45 फीसदी शिशु पांच देश- पाकिस्तान, नाइजीरिया, चीन, इथियोपिया और भारत में पैदा हुए।

Photo by Christian Bowen / Unsplash

विश्व स्वास्थ्य संगठन (WHO) और यूनिसेफ की एक संयुक्त रिपोर्ट में कहा गया है कि भारत उन पांच टॉप देशों में शुमार है, जहां पर सबसे ज्यादा शिशु समय से पहले ही जन्म ले लेते हैं। रिपोर्ट के अनुसार साल 2020 में दुनिया में करीब 13.40 करोड़ बच्चों ने समय-पूर्व जन्म लिया था। इन्हें प्रीमैच्योर यानी अपरिपक्व शिशु कहा जाता है। इनमें से 45 फीसदी शिशु पांच देश- पाकिस्तान, नाइजीरिया, चीन, इथियोपिया और भारत में पैदा हुए। विश्व में सालाना 10 लाख से अधिक प्रीमैच्योर बच्चों की मौत हो जाती है।

Baby’s feet
Photo by Bonnie Kittle / Unsplash

रिपोर्ट में बताया गया कि 2020 में पूरी दुनिया में सबसे ज्यादा बांग्लादेश में 16.2 फीसदी से अधिक प्रीमैच्योर शिशु जन्म दर रही। उसके मलावी (14.5%), पाकिस्तान (14.4%), भारत (13.0%) और द. अफ्रीका (13.0%) का नंबर रहा। संख्या के लिहाज से देखें तो भारत में 30.16 लाख ऐसे बच्चे पैदा हुए। यह सबसे ज्यादा है। उसके बाद पाकिस्तान में 9.14 लाख, नाइजीरिया में 7.74 लाख, चीन में 7.52 लाख और इथियोपिया में 4.95 लाख प्रीमैच्योर बच्चों का जन्म हुआ।

रिपोर्ट के अनुसार किसी भी देश में बीते एक दशक में प्रीमैच्योर बच्चों की जन्म दर में कोई अंतर नहीं आया है। पिछले दशक में 15.2 करोड़ प्रीमैच्योर बच्चे पैदा हुए। कुल बच्चों में से 10 फीसदी बच्चे समय से पहले पैदा हुए। हर 40 सेकंड में इनमें से एक बच्चे की मृत्यु हो गई। दक्षिणी एशिया और उप-सहारा अफ्रीका में समय पूर्व जन्म की दर सबसे ज्यादा है। इन क्षेत्रों में अपरिपक्व शिशुओं की मृत्यु दर भी सबसे अधिक है। समय पूर्व जन्म के 65 प्रतिशत से अधिक मामले यहीं सामने आते हैं।

रिपोर्ट में कहा गया है कि अपरिपक्व बच्चों में विकलांगता, विकास में देरी और आजीवन स्वास्थ्य संबंधी परेशानियों जैसी समस्याएं आ सकती हैं। मां के स्वास्थ्य को भी खतरा रहता है। समयपूर्व जन्म की वजह किशोरियों में गर्भावस्था और प्री-एक्लेमप्सिया आदि भी बताई गई हैं।

इसके अलावा संघर्ष, जलवायु परिवर्तन, पर्यावरणीय क्षति, कोविड-19 और रहन-सहन की बढ़ती लागत से भी महिलाओं और शिशुओं के लिए जोखिम बढ़ रहा है। रिपोर्ट के अनुसार वायु प्रदूषण की वजह से हर साल 60 लाख से अधिक अपरिपक्व बच्चों का जन्म होने का अनुमान है।

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