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भारत की नई संसद, सर्वधर्म समभाव और 'सेंगोल' की स्थापना

भारत के राजनैतिक इतिहास में ऐसा पहली बार हुआ है कि किसी सरकारी कार्यक्रम में वैदिक विधि विधान को भव्य रूप से जोड़ा गया। इस अवसर पर भारत के दक्षिण राज्य तमिलनाडु के अधीनम संतों ने पूरे विधि-विधान के साथ अनुष्ठान कराया। पूजा में पीएम मोदी व लोकसभा अध्यक्ष ओम बिड़ला बैठे थे।

नई संसद का विहंगम दृश्य। सभी फोटो साभार: पीआईबी

भारत के राजनैतिक परिवेश में एक नए अध्याय की शुरुआत हो चुकी है। देश के प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने रविवार 28 मई को राजधानी नई दिल्ली में नए संसद भवन का उद्घाटन किया। इस अवसर पर मंत्रोच्चार के बीच सुनहरे राजदंड (सेंगोल) की स्थापना भी की गई। यह सेंगोल (Scepter) ‘ऐतिहासिक’ है जो निष्पक्ष, न्यायसंगत शासन के मूल्यों का प्रतिनिधित्व करता है।

नई संसद में स्थापित करने के लिए सेंगोल को ले जाते पीएम नरेंद्र मोदी।

भारत के राजनैतिक इतिहास में ऐसा पहली बार हुआ है कि जब किसी भव्य सरकारी कार्यक्रम में वैदिक विधि विधान को जोड़ा गया और सर्वधर्म समभाव के रूप में आयोजन पूरा किया गया। इस अवसर पर भारत के दक्षिण राज्य तमिलनाडु के अधीनम संतों ने पूरे विधि-विधान के साथ यह अनुष्ठान कराया। पूजा में प्रधानमंत्री मोदी और लोकसभा अध्यक्ष ओम बिड़ला बैठे थे। धार्मिक अनुष्ठान के बाद अधीनम संतों ने प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी को सेंगोल सौंपा, जिसे नए संसद भवन में लोकसभा स्पीकर की कुर्सी के पास स्थापित किया गया। इस अवसर पर सरकार के अधिकतर मंत्री व आला अधिकारी मौजूद थे। वैसे विपक्षी दलों ने इस आयोजन से किनारा किया था। नए संसद भवन में लोकसभा में 888 और राज्यसभा में 384 सदस्यों के बैठने की व्यवस्था है। तीसरे मुख्य हिस्से में संयुक्त सत्र के लिए 1272 सीटों वाला विशाल हॉल बनाया गया है।

आधुनिक सुविधाओं से सज्जित है नई संसद। इसमें अधिकतम 1272 सदस्य बैठ सकते हैं। 

इस अवसर पर नए संसद भवन के उद्घाटन के लिए हवन हुआ। मंत्रोच्चार के बीच पीएम मोदी ने पूरे विधि-विधान से पूजन कार्यक्रम में हिस्सा लिया। इस दौरान उनके साथ लोकसभा के सभापति ओम बिरला भी हवन-पूजा में बैठे। यह हवन-पूजा कार्यक्रम करीब एक घंटे तक चला। सेंगोल की स्थापना से पहले प्रधानमंत्री पूजन हवन के बाद सेंगोल के सामने दंडवत हुए। उन्होंने नए संसद भवन में सेंगोल की स्थापना के बाद तमिलनाडु के विभिन्न अधीनम संतों का आशीर्वाद प्राप्त किया। देश के नए संसद भवन के निर्माण के लिए देशभर से अनोखी सामग्रियों को जुटाया गया है। जैसे नागपुर से सागौन की लकड़ी, राजस्थान के सरमथुरा से सैंडस्टोन, यूपी के मिर्जापुर की कालीन, अगरतला से बांस की लकड़ी और महाराष्ट्र के औरंगाबाद और जयपुर से अशोक प्रतीक को मंगवाया गया। इस अवसर पर 75 रुपये का नया सिक्का भी जारी किया गया।

जिन श्रमिकों ने संसद के निर्माण में सहयोग दिया, उन्हें भी सम्मानित किया गया। 

नई संसद में जो सेंगोल स्थापित किया गया है, उसका एक रोचक इतिहास है और यह भारत की स्वतंत्रता से भी जुड़ा हुआ है। स्वाधीन भारत के पहले प्रधानमंत्री पंडित जवाहर लाल नेहरू ने इसे स्वीकार किया था। ये सत्ता के हस्तांतरण का प्रतीक था। बाद में इसे इलाहाबाद म्यूज़ियम में नेहरू द्वारा इस्तेमाल की गई अन्य वस्तुओं के साथ रख दिया गया। भारत के ऐतिहासिक दस्तावेजों के अनुसार भारत के कई साम्राज्यों में सेंगोल या राजदंड भावी राजा को मुख्य पुरोहित द्वारा सौंपा जाता था। ये सत्ता के हस्तातंरण का प्रतीक माना जाता था। अब इस सेंगोंल को दोबारा से भारत की नई संसद में स्थापित कर दिया गया गया है। भारत सरकार का मानना है कि वह भी सेंगोल से प्रेरणा लेकर देश में निष्पक्ष, न्यायसंगत शासन को मान्यता देगी, ताकि हर भारतवासी को उचित न्याय मिल सके।

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