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IIT बॉम्बे के कायाकल्प के लिए पूर्व छात्रों ने शुरू किया प्रोजेक्ट एवरग्रीन

150 करोड़ रुपये की लागत से शुरू हुए प्रोजेक्ट एवरग्रीन के तहत आईआईटी बॉम्बे में 1,000-1,200 कमरों का नया छात्रावास परिसर बनाया जाएगा। प्रोजेक्ट एवरग्रीन भारत में किसी भी शैक्षणिक संस्थान के पूर्व छात्रों द्वारा किया गया सबसे महत्वाकांक्षी प्रोजेक्ट है।

आईआईटी बॉम्बे के छात्र। फोटो: IIT Bombay

आईआईटी बॉम्बे के दूर-दूर से आए पूर्व छात्र 24 जून को अपने संस्थान में इकट्ठा हुए और 150 करोड़ रुपये की लागत से प्रोजेक्ट एवरग्रीन की शुरुआत की। इस प्रोजेक्ट के तहत विश्वविद्यालय में 1,000-1,200 कमरों का एक नया छात्रावास परिसर बनाया जाएगा।

नंदन नीलेकणि संस्थान को 315 करोड़ रुपये दान देने की घोषणा पहले ही कर चुके हैं। फोटो Infosys

परियोजना के शुरुआती चरण में तीन इमारतें बनाई जाएंगी- हॉस्टल 7-8 और हॉस्टल 21। हॉस्टल 7-8 को गिराने की काफी आलोचना हुई थी। हॉस्टल 21 में 350-400 छात्राएं रह सकेंगी। आईआईटी में अब लगभग 24 प्रतिशत छात्राएं हैं। उम्मीद है कि आने वाले वर्षों में यह संख्या बढ़ेगी।

इस परियोजना को पूरी तरह भारत स्थित आईआईटी-बी पूर्व छात्र संघ और अमेरिका स्थित आईआईटीबी हेरिटेज फाउंडेशन सपोर्ट करेगा। दोनों संगठन पहले ही 50 करोड़ ($6 मिलियन) से अधिक का फंड जुटा चुके हैं। साथ ही विशेषज्ञता और कच्चा माल भी इकट्ठा हो चुका है।

इस महत्वाकांक्षी परियोजना ने प्रमुख दानदाताओं को आकर्षित किया है जिसमें इन्फोसिस के सह-संस्थापक नंदन नीलेकणि भी शामिल हैं। उन्होंने इस प्रोजेक्ट के लिए 10 करोड़ रुपये (लगभग $1.2 मिलियन) देने का वादा किया है। यह उस 315 करोड़ ($38 मिलियन) से अलग है, जो उन्होंने  इस महीने की शुरुआत में अपने पूर्व संस्थान को दान करने की घोषणा की थी।

वर्ष 1977 में आईआईटी बॉम्बे में पढ़ाई कर चुके और प्रोजेक्ट एवरग्रीन की अगुआई कर रहे धनंजय साहेबा ने न्यू इंडिया अब्रॉड से बातचीत में कहा कि नंदन का योगदान शानदार है और इसने बहुत उत्साह जगाया है। मुझे उम्मीद है कि यह अन्य पूर्व छात्रों को प्रेरित करेगा। iJunxion की संस्थापक और प्रबंध निदेशक साहेबा के अनुसार मैकिन्से इन्वेस्टमेंट्स ऑफिस के सह-मुख्य कार्यकारी अधिकारी टूस दारूवाला ने भी 10 करोड़ रुपये देने का वादा किया है। उन्होंने कहा कि न तो नीलेकणि और न ही दारुवाला ने नई इमारतों में अपना नाम लिखवाने की कोई मांग रखी है।

नीलेकणि ने पिछले महीने एक बयान में कहा था किआईआईटी-बॉम्बे मेरे जीवन की आधारशिला रहा है जिसने मेरे प्रारंभिक वर्षों को आकार दिया और मेरी जिंदगी की नींव रखी। मैं इस प्रतिष्ठित संस्थान के साथ अपने जुड़ाव के 50 साल पूरे होने का जश्न मना रहा हूं। मैं इसका हमेशा आभारी रहूंगा।उन्होंने कहा कि यह दान सिर्फ वित्तीय योगदान नहीं है, यह उस जगह के प्रति मेरी तरफ से सम्मान है जिसने मुझे बहुत कुछ दिया है और उन छात्रों को दे रहा है, जो हमारी कल की दुनिया को आकार देंगे।

आईआईटी बॉम्बे में छात्रों की संख्या पिछले कुछ समय में काफी बढ़ गई है। एक एक कमरे में दो छात्रों को रहना पड़ रहा है। आने वाले वर्षों में छात्रों के लिए लगभग 4,000 स्थानों की कमी होने का अनुमान है। साहेबा ने कहा कि परियोजना का लक्ष्य प्रत्येक विंग में शौचालयों और बाथरूम की संख्या को दोगुना करना है। साथ ही स्टडी एरिया बनाना है जहां छात्र काम कर सकें और अपने कमरों के बाहर एकत्र हो सकें। छात्रावास परिसर को टिकाऊ तरीके से बनाया जाएगा। संरचनाओं के आसपास के कई प्राचीन पेड़ों को संरक्षित किया जाएगा। छात्रावास सौर ऊर्जा से संचालित होंगे और अन्य पर्यावरणीय प्रयासों के साथ-साथ जल पुनर्चक्रण और अपशिष्ट जल उपचार की सुविधा भी प्रदान करेंगे।

1996 में आईआईटी बॉम्बे के स्टूडेंट रहे और आईआईटी बॉम्बे हेरिटेज फाउंडेशन के अध्यक्ष विनय कार्ले ने न्यू इंडिया अब्रॉड को बताया कि प्रोजेक्ट एवरग्रीन भारत में किसी भी शैक्षणिक संस्थान के पूर्व छात्रों द्वारा किया गया सबसे महत्वाकांक्षी प्रोजेक्ट है। उन्होंने कहा कि आईआईटी बॉम्बे में कुछ इमारतें 1958 से मौजूद हैं। जब मैं वहां था तब भी कुछ की हालत खस्ताहाल थी।

2011 में पूर्व छात्रों के एक समूह ने एकजुट होकर कुछ पुराने छात्रावासों की मरम्मत के उद्देश्य से हॉस्टल एलुमनी टीम्स स्टीवर्डशिप HATS - का गठन किया था। इसके तहत 2017 में 5.5 करोड़ रुपये ($750,000) की लागत से हॉस्टल 5 के कुछ हिस्सों का नवीनीकरण किया गया था। उसी परियोजना से प्रोजेक्ट एवरग्रीन का खाका तैयार हुआ।

उन्होंने कहा कि अतीत में अमेरिका में रहने वाले भारतीय पूर्व छात्रों से दान ज्यादा मिलता रहा रहा है। हालांकि अब लगता है कि प्रोजेक्ट एवरग्रीन से अमेरिका और भारत का दान 50-50 हो जाएगा। अटलांटा में वेंटिव टेक्नोलॉजी में एडवांस्ड एनालिटिक्स और एआई के ग्लोबल वाइस प्रेसिडेंट कार्ले ने कहा कि हम अपनी सफलता का श्रेय इस बात को देते हैं कि हम कहां से आए हैं। भारत ने हमें बिना किसी कीमत के गुणवत्तापूर्ण शिक्षा सहित बहुत कुछ दिया है।

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