पाकिस्तान की यह विडंबना है या रणनीति, कि जब भी नया वजीरे-आजम गद्दी संभालता है तो वह भारत के कश्मीर की बात जरूर करता है। पाक का हर नया शासक ‘दर्द-भरा कार्ड’ उछालता है और सोचता है कि कश्मीरी मुसलमानों की दर्द-भरी दास्तां बयान कर वह भारत पर दबाव बना लेगा और इस्लामी दुनिया में वाह-वाही भी पा जाएगा। लेकिन अब राजनीति और कूटनीति के अलावा सोशल व आर्थिक समीकरण बदल गए है। भारत की सरकार न तो किसी दबाव में है और न ही किसी डर में। तुष्टिकरण के बजाय उसके लिए देश और सभी वर्ग की जनता सर्वोपरि है। इसलिए पाक का कश्मीर राग चलता रहा तो इस बात की पूरी संभावना है कि भारत सरकार शायद ही एक एक ‘अच्छे पड़ोसी’ की भूमिका निभा पाए।

पाकिस्तान में शहबाज शरीफ ने नए प्रधानमंत्री के रूप में शपथ ले ली है। शहबाज भारत के प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी के दोस्त और पूर्व पाक पीएम नवाज शरीफ के छोटे भाई हैं। उम्मीद यह की जा रही थी कि गंभीर आर्थिक संकट व आतंकवाद से जूझते पाक के यह नए प्रधानमंत्री (जो नामी बिजनेसमैन भी हैं) अपने बड़े भाई की तरह नरेंद्र मोदी के साथ गर्मजोशी दिखाएंगे और आर्थिक मसले पर भारत से सहयोग की अपेक्षा करेंगे। लेकिन क्या ऐसा होगा भी? प्रधानमंत्री पद की शपथ लेने के बाद अपने पहले संबोधन में शहबाज ने कश्मीर पर बात छेड़ दी और कहा कि हम भारत से बेहतर संबंध चाहते हैं लेकिन मसला-ए-कश्मीर को हल किए बिना अमन कायम नहीं हो सकता। हम कश्मीरियों के लिए हर फोरम पर आवाज उठाएंगे। राजनयिक स्तर पर काम करेंगे। उन्हें सपोर्ट देंगे। वे हमारे लोग हैं।

दूसरी ओर भारत के प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी को देखिए। उन्होंने शहबाज के प्रधानमंत्री बनने पर बधाई दी और कहा भारत आतंक मुक्त क्षेत्र में शांति और स्थिरता चाहता है, ताकि हम अपनी विकास चुनौतियों पर ध्यान केंद्रित कर सकें और अपने लोगों की भलाई और समृद्धि सुनिश्चित कर सकें। दोनों पड़ोसी देशों का नजरिया साफ है। पाकिस्तान की सुईं आज भी कश्मीर पर रगड़ खा रही है तो भारत विश्व की गंभीर समस्या आतंकवाद पर बात करना चाहता है। असल में कसूर शहबाज शरीफ का नहीं है। वहां परंपरा है कि सत्ता संभालो तो कश्मीरी-दुख को जरूर उभारो। लेकिन भारत की अब प्राथमिकताएं और नीति बदल गई हैं। पीएम नरेंद्र मोदी सरकार की स्पष्ट रणनीति है कि कश्मीर भारत का अभिन्न अंग है और किसी दूसरे देश का दखल अब तो बिल्कुल भी मंजूर नहीं है।

असल में उम्मीद यह की जा रही थी कि पाक के प्रधानमंत्री और बड़े कारोबारी शहबाज अपने देश को आर्थिक विपन्नता से उबारने के लिए कुछ ठोस बातें करेंगे। लेकिन उन्होंने अपनी सोच के अनुसार ही कश्मीर को आगे रखा। वह पुराने नेता हैं और जब-तब कश्मीर मसले पर भारत को गरियाते रहे हैं। लेकिन क्या उनका यह नजरिया आगे भी जारी रहेगा? ऐसा कहा जा रहा है कि शहबाज को पीएम बनाने में पाक सेना की भी सहमति है। दूसरी ओर पाक सेना प्रमुख जनरल कमर जावेद बाजवा के पिछले बयानों पर गौर करें तो वह अब भारत के साथ अच्छे व्यापारिक रिश्ते चाहते हैं। जनरल बाजवा यह भी कह रहे हैं कि वह पाकिस्तान से आतंकवाद ख़त्म करना चाहते हैं ताकि भारत के साथ रिश्ते बेहतर हो सके। तो फिर इस बदलते समीकरण में प्रधानमंत्री शहबाज की उलटबांसी क्यों?
पूरे विश्व के नेता और कूटनीतिज्ञ जानते हैं कि पाकिस्तान में वही सरकार चलेगी, जिस पर सेना का हाथ होगा। सेना का साथ पाकर ही इमरान खान पीएम बने और बिगाड़ होने पर गद्दी से उतार दिए गए। ऐसे में अगर पाक सेना का रुख भारत को लेकर व्यावहारिक को जाता है तो उसका लाभ पाकिस्तान को जरूर मिलेगा। साल भर पहले जनरल बाजवा ने कहा था कि ‘ये समझना महत्वपूर्ण है कि शांतिपूर्ण तरीक़ों से कश्मीर विवाद के समाधान के बिना मैत्रीपूर्ण संबंध हमेशा ख़तरे में रहेंगे। बहरहाल हमारा मानना है कि यह समय अतीत को भुलाकर आगे बढ़ने का है।’ बड़ी बात यह भी है कि फरवरी 2021 के बाद से दोनों देशों की सीमा पर सीजफायर का उल्लंघन नहीं हुआ है। तो हम यह मान लें कि शहबाज को कुछ वक्त मिलना चाहिए, ताकि वह ‘सेना के सिस्टम’ को समझ लें।
अब हम पाकिस्तान के नए राजनैतिक परिदृश्य को भारत से जोड़ते हैं। पाक सेना जानती है कि भारत के प्रधानमंत्री किसी भी मसले पर झुकने वाले नहीं है, चाहे वह कोई भी देश हो। अब भारत में ऐसी सरकार नहीं है जो तुष्टिकरण के डर से मुस्लिम बहुल देश पाकिस्तान के सामने आंखें नीची किए रहेगी। बड़ी बात यह है कि विश्व के अधिकतर बड़े देश भारत के पीएम नरेंद्र मोदी से अपनापन चाहते हैं। इसी को ध्यान में रखते हुए ही पाक सेना प्रमुख अब आतंकवाद और भारत के साथ कारोबार की बातें कर रहे हैं। अगर सेना के कहे अनुसार शहबाज ने अपना स्टैंड बदला तो भारत के साथ बातचीत भी संभव है, कारोबारी भी हो सकता है और आतंकवाद पर भी नकेल लगेगी। यानी पाक के साथ ‘हनीमून पीरियड’ शुरू हो सकता है। लेकिन शाहबाज कश्मीर पर रगड़ मारते रहेंगे तो भारत के रुख में कोई बदलाव नहीं होगा और पाकिस्तान के हालात यथावत रहेंगे।