होली अब सिर्फ भारत का पर्व नहीं रह गया है। जिस भी देश में भारतीय पहुंचे हैं, वहां उन्होंने इस पर्व को धूमधाम से मनाया। इसका एक कारण यह है कि यह पर्व सिर्फ धर्म, आस्था या कारोबार से जुड़ा हुआ नहीं है। यह उमंग, उल्लास और मन की भावनाओं से जुड़ा है। इस पर्व में धर्म भी जुड़ा है तो योग से भी है। व्यावहारिक पहलुओं का भी ध्यान रखा गया है तो यह भोग (शारीरिक आसक्तता) को भी दर्शाता है। विश्व का शायद यह ऐसा पर्व है, जहां व्यक्ति की काम व उद्दात्त भावनाएं जुड़ी हुई हैं। अगर कहें कि मन को पतंग को खुले आसमान में उड़ाने का पर्व है होली, तो अतिश्योक्ति नहीं होगी।
Celebrating Holi with US Commerce Secretary @SecRaimondo at Defence Minister @rajnathsingh ji’s house. pic.twitter.com/A91qNqMrdz
— Dr. S. Jaishankar (@DrSJaishankar) March 8, 2023
वंसतोत्सव और काम-महोत्सव
भारत के अलावा विदेश में जहां भी भारतीय रहते हैं, उनके लिए होली महत्वपूर्ण पर्व है। हिंदू पंचांग के अनुसार यह पर्व फाल्गुन मास (मार्च माह) की पूर्णिमा को मनाया जाता है। यह भारत का प्राचीनतम पर्व है। इसकी जानकारी भारतीय धर्मग्रंथों, साहित्य के अलावा लोकगीतों में भी मिलती है। भारत के किसी भी अन्य पर्व के मुकाबले लोकगीतों में सबसे अधिक वर्णन होली का ही है। प्राचीन समय में इसे वसंतोत्सव और काम-महोत्सव भी कहा गया है। आजकल यह पर्व एकाध दिन ही मनाया जाता है, लेकिन कभी वह भी समय था जब यह पर्व कम से कम एक माह तक चलता था। यह पर्व मौसम में अनूठी मादकता भर देता है। वातावरण में ऐसी फिजा घुल जाती है कि इंसान का अंतरतम ये पर्व मनाने के लिए उद्वोलित हो जाता है।
भक्त प्रहलाद की कथा इसे धर्म से जोड़ती है
धार्मिक रूप से देखा जाए तो इस पर्व को लेकर अनेक कथाएं हैं। लेकिन इनमें सबसे प्रसिद्ध भक्त प्रहलाद की कथा है। धार्मिक ग्रंथों के अनुसार प्राचीन काल में हिरण्यकशिपु नाम का एक अत्यंत बलशाली असुर था। वह स्वयं को ईश्वर मानता था। उसने अपने राज्य में ईश्वर का नाम लेने पर पाबंदी लगा दी थी। हिरण्यकशिपु का पुत्र प्रह्ललाद ईश्वर भक्त था। प्रह्ललाद की ईश्वर भक्ति से क्रुद्ध होकर हिरण्यकशिपु ने उसे अनेक कठोर दंड दिए, परंतु उसने ईश्वर की भक्ति का मार्ग न छोड़ा। हिरण्यकशिपु की बहन होलिका को वरदान प्राप्त था कि वह आग में भस्म नहीं हो सकती। हिरण्यकशिपु ने आदेश दिया कि होलिका प्रह्ललाद को गोद में लेकर आग में बैठे। जब होलिका आग में बैठी तो खुद ही जल गई, पर प्रह्ललाद बच गया। ईश्वर भक्त प्रह्ललाद की याद में इस दिन होली जलाई जाती है।

इसलिए योग के साथ भी मेल अपनापन है
भगवान कृष्ण के साथ भी यह पर्व जुड़ा है। गोपियों संग उनका रास और अठखेलियां सबसे अधिक इसी पर्व पर केंद्रित नजर आती हैं। इस पर्व को योग के साथ इसलिए जोड़ा जाता है क्योंकि फागुन माह से पूर्व के माह ऐसे होते हैं जब मनुष्य जितना भी खा-पी ले, वह सब हजम हो जाता है। उस वक्त मनुष्य में कफ का निर्माण बहुत अधिक होता है। सर्दी के दौरान शरीर के लिए यह कफ आवश्यक घटक होता है। लेकिन सर्दी खत्म होते ही जब मौसम बदलता है तो यह कफ शरीर के लिए समस्या पैदा कर सकता है। इसलिए शरीर को एक्टिव करना आवश्यक हो जाता है। यह पर्व शरीर व मन को बेहद एक्टिव किए रहता है। अलग प्रकार के भाव व विचार पैदा होते हैं, जिससे शरीर व मन आंदोलित हो जाता है। यही आंदोलन शरीर में कफ को गलाता है और मनुष्य को गर्मी, गर्म हवाओं के लिए तैयार करता है। कफ का शमन ही असल में योग है।
शरीर में काम का भाव पैदा करता है यह पर्व
यह पर्व सामाजिक व्यवहार व भोग से भी संबद्ध है। कहा जाता है कि होलिका दहन इसलिए होता है, क्योंकि इस पर्व के साथ ही गर्मी का आगमन हो जाता है, फसलें कटनी शुरू हो जाती हैं। परिणाम यह होता है कि मौसम परिवर्तन के चलते घरों में बेकार का सामान इकट्ठा हो जाता है। फसलों से भी ऐसे तत्व या खलिहान निकलता है जो किसी काम का नहीं रहता। ऐसे में उसका दहन करना आवश्यक हो जाता है। होलिका दहन ऐसे ही बेकार की चीजों को भस्म करने का पर्व है। दूसरी ओर इस पर्व से काम (Sensuality) का अनूठा संबंध बताया जाता है। जिस मौसम में यह पर्व आता है, स्त्री-पुरुष का मन और शरीर उन्मत्त सा हो जाता है। अंदर का वेग रुक नहीं पाता। कथा भी है कि जब भगवान शिव तप कर रहे थे तो कामदेव उसे भंग करने पहुंचे, लेकिन शिव ने उसे ही भस्म कर दिया। हालांकि उन्हें वरदान भी दिया कि वह अदृश्य होकर सभी मनुष्य में बस जाएगा। यही ‘कामदेव’ स्त्री-पुरुष को उद्वेलित करता है, जिसका परिणाम आगे वंश वृद्धि के रूप में आता है। भारतीय परंपरा में सिर्फ यही एक पर्व है जब स्त्री-पुरुष को एक-दूसरे को छूने की छूट मिली होती है। असल में होली बढ़ते काम के शमन का भी पर्व है।