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आजादी से लेकर अंतरराष्ट्रीय दबदबे तक...भारत की कूटनीतिक यात्रा

आज दुनिया अंतरराष्ट्रीय आतंकवाद से लेकर कोविड-19 महामारी तक कई चुनौतियों से जूझ रही है लेकिन तब भी भारत ने बहुपक्षवाद, सुरक्षा और शांति को बढ़ावा देने की प्रतिबद्धता दिखाते हुए अंतरराष्ट्रीय समुदाय के एक स्थिर, विश्वसनीय और व्यावहारिक सदस्य के रूप में अपना दबदबा कायम रखा है।

हेमलता गुणसेकरन

वर्ष 1947 में मिली आजादी के बाद से लेकर अब तक भारत ने एक लंबी और उल्लेखनीय कूटनीतिक यात्रा की है। इसमें कई उतार-चढ़ाव आए। गत 75 वर्षों में दुनिया ने देखा कि भारत चुनौतीपूर्ण परिस्थितियों में कैसे आगे बढ़ा और प्रगति की दिशा में अपने पथ पर दृढ़ रहने के लिए प्रतिबद्ध रहा। एक उभरते राष्ट्र के रूप में भी भारत अपने कठिन, लेकिन निर्णायक कूटनीतिक प्रयासों के माध्यम से विश्व मंच पर अपनी उपस्थिति स्थापित करने के लिए लगातार प्रयासरत रहा।

वैश्विक भागीदारी और प्रभाव की अपनी खोज में भारत विश्व युद्ध के बाद के युग में नए अंतरराष्ट्रीय संगठनों की स्थापना के लिए वार्ता शुरू करने और उसमें भाग लेने में सबसे आगे रहा है। नतीजा यह रहा कि भारत संयुक्त राष्ट्र (UN) का संस्थापक सदस्य बन गया और टैरिफ तथा व्यापार पर सामान्य समझौते (GATT) का मूल हस्ताक्षरकर्ता भी।

शीत युद्ध के शुरू होते ही शांतिपूर्ण सह-अस्तित्व, गुटनिरपेक्षता और संप्रभुता के सम्मान के सिद्धांतों पर जोर देने से भारत को तटस्थता बनाए रखने में मदद मिली। इस सिद्धांत और आचरण ने भारत के अद्वितीय कूटनीतिक दृष्टिकोण की नींव रखी। यह किसी भी सुपरपावर ब्लॉक (समूह) के साथ स्थायी रूप से कदमताल किए बिना गठबंधन बनाने पर केंद्रित था। फिर, अगले कुछ दशकों के दौरान अंतरराष्ट्रीय संघर्षों को सुलझाने में भारत के सक्रिय राजनयिक प्रयासों ने उसे वैश्विक क्षेत्र में एक महत्वपूर्ण खिलाड़ी के रूप में अपनी विशिष्ट स्थिति के साथ मजबूती और स्थिरता प्रदान की।

आर्थिक मोर्चे पर, 1991 में उदारीकरण की ओर भारत का रुख एक महत्वपूर्ण मोड़ था जिसने दुनिया भर के देशों के साथ मजबूत आर्थिक संबंधों को सक्षम बनाया। बढ़ती अर्थव्यवस्था और उभरते बाजार ने भारत को लाभ की स्थिति में ला दिया।  2008 में भारत-अमेरिका असैन्य परमाणु समझौता एक कूटनीतिक उपलब्धि थी जिसने एक जिम्मेदार परमाणु शक्ति के रूप में भारत के कद को ऊपर उठाया और प्रमुख शक्तियों के साथ रणनीतिक साझेदारी को मजबूत किया। अपने पड़ोसी देशों के साथ घनिष्ठ संबंध बनाने की भारत की प्रतिबद्धता उसकी 'पड़ोसी प्रथम' नीति के माध्यम से प्रकट हुई थी। हालांकि इस लंबी कूटनीतिक यात्रा में कई बार अवसरों के अनुकूल नतीजे नहीं रहे। कई बार फैसलों में खामी रही तो कभी कदम देर से उठाए गए।

हालांकि आज दुनिया अंतरराष्ट्रीय आतंकवाद से लेकर कोविड-19 महामारी तक कई चुनौतियों से जूझ रही है लेकिन तब भी भारत ने बहुपक्षवाद, सुरक्षा और शांति को बढ़ावा देने की प्रतिबद्धता दिखाते हुए अंतरराष्ट्रीय समुदाय के एक स्थिर, विश्वसनीय और व्यावहारिक सदस्य के रूप में अपना दबदबा कायम रखा है। अपनी भू-आर्थिक सीमाओं को पार करने और उद्देश्य की अटूट भावना के साथ अवसर पर आगे बढ़ने की भारत की क्षमता अन्य देशों में शायद ही कभी देखी जाती है। इस सदी को आकार देने और भविष्य की दिशा को प्रभावित करने में भारत के कूटनीतिक प्रयासों की महत्वपूर्ण भूमिका को नजरअंदाज करना उभरती विश्व व्यवस्था का अदूरदर्शितापूर्ण और नासमझी से भरा आकलन होगा।

बेशक, हर संकट को एक अवसर में बदला जा सकता है जिसका उपयोग भारत बयानबाजी के स्थान पर वास्तविकता के सचेत विकल्प को अपनाकर कर सकता है। रूस-यूक्रेन के संदर्भ में यह बात देखी जा सकती है। जी 20 की अध्यक्षता में वैश्विक मामलों में अपनी आवाज को बढ़ाने का अवसर निहित है। समकालीन भारतीय कूटनीति का मार्गदर्शन करने वाले नैतिक सिद्धांत देश की समृद्ध राजनयिक विरासत में दृढ़ता से निहित होने चाहिए।

हेमलता गुणसेकरन: प्रमुख एवं सहायक प्रोफेसर, अंतरराष्ट्रीय अध्ययन विभाग, महिला क्रिश्चियन कॉलेज, चेन्नई

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