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निजी दुख को बिसरा कर हमेशा देशहित को आगे रख देते हैं पीएम मोदी

दीपावली या अन्य पर्व। जब देश के पूर्व प्रधानमंत्री अपने विशाल आवासों में आनंद उठा रहे हों, तब पीएम मोदी सीमा पर भारतीय सैनिकों के साथ दीवाली मनाते। कभी वह सियाचिन के बर्फीले क्षेत्र में तो कभी धुर रेगिस्तान में सैनिकों से संवाद करते हैं। कोरोना महामारी में भी वह देश के लोगों से जुड़े रहे।

भारत के प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी देश के अन्य पूर्ववर्ती प्रधामंत्रियों की तरह तो नजर नहीं आते हैं। उनका काम करने का तरीका, आम जनता से सीधे जुड़ाव और देश के विकास को लेकर गहरी जिजिविषा दिखाती है कि उनकी सोच का दायरा एकदम अलग है। चाहे दुख हो या सुख की घड़ी, आपदा आए या किसी बड़ी जीत का क्षण, उनका एक ही उद्देश्य रहता है। वह है लगातार देश के लिए काम करना। उनकी यह ललक और कर्मठता लगातार दिखती रहती है। हाल ही के एक उदाहरण ने फिर जाहिर कर दिया कि पीएम मोदी के लिए देश पहले है, रिश्ते और दूसरे संबंध बाद में। इसके लिए वह बड़ा दुख भी सहने का तैयार रहते हैं।

गत शुक्रवार को प्रधानमंत्री की माताजी हीराबेन (हीराबा) का निधन हो गया था।

गत शुक्रवार को प्रधानमंत्री की माताजी हीराबेन (हीराबा) का निधन हो गया था। वह 100 वर्ष की थीं और खराब स्वास्थ्य के चलते उन्हें मोदी के गृहराज्य गुजरात के अस्पताल में दाखिल कराया गया था। सुबह तड़के 4.30 बजे हीराबा ने अंतिम सांस ली और सुबह 6 बजे पीएम के आधिकारिक ट्विटर हैंडल पर यह सूचना दे दी गई। संभावना जताई जा रही थी कि चूंकि विश्व के एक सशक्त प्रधानमंत्री की माताजी का निधन हुआ है, इसलिए उनके सम्मान में बड़ा कार्यक्रम आयोजित होगा और उनके अंतिम संस्कार में देश-विदेश के बड़े नेता शामिल होंगे और भारत एकाध दिन शोक मनाएगा। लेकिन पीएम ने इन सब संभावनाओं को बड़ी ही मजबूत लेकिन विनम्रता के साथ दरकिनार कर दिया। वह सुबह ही नई दिल्ली स्थित अपने आवास से अपने गृहनगर अहमदाबाद पहुंचे और सुबह ही उन्होंने अपनी माताजी का अंतिम संस्कार कर दिया। विशेष बात यह रही कि जब तक देश के लोग और नेता उनकी माताजी के निधन पर चर्चा या शोक मनाने के लिए तैयार होते, तब तक पीएम दोबारा से देश के काम में लग गए।

उन्होंने माताजी की अंत्येष्टि के तुरंत बाद पश्चिम बंगाल के लिए करोड़ों रुपये की योजनाओं की शुरुआत की। पूरा देश उनके इस कार्यकलाप पर हतप्रभ था। ऐसा लग रहा था कि जैसे पीएम ने माता के विछोह के दुख को अपने अंदर सिमेट लिया है। वह इस दुख को निजी मानते हैं और उसमें किसी को जोड़ना नहीं चाहते हैं। असल में निजी दुख को परे कर समाज व देश के लिए आगे आना मोदी जी के लिए नया नहीं है। राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ (RSS) में जुड़ते ही उनके लिए सुख-दुख की अवधारणा बदल गई थी। समाज और देशसेवा के लिए ही उन्होंने अपना घर और परिवार छोड़ दिया। वर्षों तक गुमनामी सा जीवन व्यतीत करते रहे, लेकिन असल में वह देश और समाजसेवा के लिए ऊर्जा प्राप्त कर रहे थे। जैसे ही सार्वजनिक जीवन में वह आए, उन्होंने बता दिया कि असल में वह समाज और देश के लिए ही बने हैं। उनकी अपनी पार्टी में महत्वपूर्ण भूमिकाएं हों या 15 वर्ष का गुजरात में मुख्यमंत्री का शासनकाल हो अब चल रहा प्रधानमंत्री का कार्यकाल। उनका टारगेट एक ही रहा। समाज की सेवा, देश का विकास।

इसके लिए मोदी ने बार-बार उदाहरण पेश किए हैं। दीपावली या अन्य महत्वपूर्ण पर्वों पर जब पहले के दिनों में देश के पूर्व प्रधानमंत्री अपने विशाल आवासों में आनंद उठा रहे हों, तब पीएम मोदी सीमा पर भारतीय सैनिकों के साथ दीवाली का आयोजन कर रहे होते हैं। कभी वह सियाचिन जैसे बर्फीले क्षेत्र में जाकर तो कभी धुर रेगिस्तान में जाकर सैनिकों से संवाद करते हैं और उनकी हौसलाअफजाई के सभी प्रयास करते हैं। कोरोना महामारी के दौरान उन्होंने सरकार-शासन को साथ लेकर इस देश को उबार ही लिया। इस दौरान उन पर लगातार आरोप लगते रहे, लेकिन उन्होंने अर्जुन की तरह ही ‘चिड़िया की आंख’ पर नजर रखी। विरोधी लााख उनकी आलोचना करते रहें, लेकिन अंत में वह उनकी मेहनत के आगे हार जाते हैं। विशेष बात यह भी है कि नरेंद्र मोदी को न तो किसी सर्टिफिकेट की जरूरत है और न ही प्रशंसा चाहिए। आप उन्हें गरियाएं या अपनत्व दिखाएं, वह शांत भाव से अपने कार्य को करते रहेंगे और उससे विचलित नहीं होंगे।

प्रधानमंत्री की माताजी का निधन भी देश के लिए एक और उदाहरण है। माना जा रहा था कि प्रधानमंत्री की माताजी के निधन के बाद देश में शोक लहर का वातावरण बन जाएगा और सरकारी गतिविधियां बाधित होंगी, साथ ही उनकी मां को श्रद्धांजली देने के लिए सभी राज्यों, जिलों, शहरों, गांवों में शोकसभाएं आयोजित की जाएंगी। शोक तो व्यक्त किया गया, लेकिन देश की गतिविधियां बाधित नहीं हुईं। देश में ऐसा पहली बार हुआ है कि राष्ट्र प्रमुख के किसी अपने के निधन के बाद विशेष औपचारिकताएं निभाएं बिना उनकी अंत्येष्टि कर दी गई हो। पूरे देश में इस मसले पर हैरानी तो जताई ही जा रही है, साथ ही गर्व भी किया जा रहा है और कहा जा रहा है कि देश के प्रमुख के सामने राष्ट्र पहले था, इसलिए उन्होंने अपने निजी दुख को सार्वजनिक नही बनने दिया। इसके बावजूद विदेशी हलकों ने उनकी माताजी के निधन को हलके में नहीं लिया है। दुनिया मे जाने-जाने लोगों ने उनकी माताजी को श्रद्धांजली देते हुए यह बता दिया कि दुनिया ने भारत और उसके प्रधानमंत्री को हलके में लेना छोड़ दिया है।

इस मसले पर अमेरिकी राष्ट्रपति जो बाइडेन ने ट्वीट करते हुए लिखा कि मैं और जिल बाइडेन (उनकी पत्नी) नरेंद्र मोदी की मां हीराबेन मोदी के निधन पर गहरी हार्दिक संवेदना व्यक्त करते हैं। इस कठिन समय में हमारी प्रार्थना पीएम और उनके परिवार के साथ हैं। इजराइल के नवनिर्वाचित प्रधानमंत्री बेंजामिन नेतन्याहू ने भी ट्वीट करके शोक प्रकट किया। नेतन्याहू ने कहा, मेरे प्रिय मित्र नरेंद्र मोदी, भारत के प्रधानमंत्री, कृपया अपनी प्यारी मां के निधन पर मेरी संवेदना स्वीकार करें। पाकिस्तान के प्रधानमंत्री शहबाज शरीफ, जापान के प्रधानमंत्री फुमियो किशिदा, नेपाल के प्रधानमंत्री पुष्प कमल दहल प्रचंड ने मां के निधन पर गहरा शोक जताते हुए पीएम मोदी और उनके परिवार के प्रति गहरी संवेदनाएं व्यक्त की हैं। श्रीलंका के राष्ट्रपति रानिल विक्रमसिंघे ने प्रधानमंत्री मोदी के प्रति अपनी संवेदना व्यक्त की। उन्होंने एक बयान में कहा, प्रधानमंत्री मोदी की प्यारी मां के निधन से गहरा दुख हुआ। दुख की इस घड़ी में प्रधानमंत्री मोदी और उनके परिवार के प्रति मेरी गहरी संवेदनाएं हैं। बांग्लादेश की प्रधानमंत्री शेख हसीना ने प्रधानमंत्री मोदी की मां के निधन पर गहरा दुख व्यक्त किया। मोदी को भेजे शोक संदेश में हसीना ने कहा, भारी मन से, मैं, बांग्लादेश के लोगों और अपनी ओर से, आपकी प्यारी मां श्रीमती हीराबेन मोदी के निधन पर गहरी संवेदना व्यक्त करती हूं। इसके अलावा रूस के राजदूत डेनिस अलीपोव, सिंगापुर के राजदूत एचसी वांग, जर्मनी के राजदूत फिलिप एकरमैन, ने भी हीराबेन का श्रद्धांजली अर्पित की।

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