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दक्षिण अमेरिका से भारत लौटी जल खोज यात्रा, अनुभव बताएंगे 'पानी बाबा'

हाल ही में एशिया, दक्षिण अमेरिका और यूरोप के कई देशों में जल और नदी यात्रा कर भारत लौटे मैग्सेसे और 'पानी के लिए नोबेल पुरस्कार' के रूप में ख्यात स्टॉकहोम जल पुरस्कार से सम्मानित राजेंद्र सिंह जलवायु परिवर्तन की चुनौती को भविष्य के विश्व युद्ध की नौबत तक मानते हैं।

Image : facebook/Waterman Rajendra Singh

पूरी दुनिया पर जलवायु परिवर्तन का असर दिखने लगा है। लेकिन यह चुनौती क्या भविष्य में विश्व युद्ध की नौबत ला सकती है? सुनकर हैरानी होती है लेकिन पानी और पर्यावरण के जानकार इस आशंका से इन्कार नहीं करते। वाटरमैन ऑफ इंडिया के रूप में विख्यात राजेंद्र सिंह कुछ ऐसा ही मानते हैं।

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- Fridays for Future Bonn, 2021-03-19
demo Photo by Mika Baumeister / Unsplash

हाल ही में एशिया, दक्षिण अमेरिका और यूरोप के कई देशों में जल और नदी यात्रा कर भारत लौटे मैग्सेसे और 'पानी के लिए नोबेल पुरस्कार' के रूप में ख्यात स्टॉकहोम जल पुरस्कार से सम्मानित राजेंद्र सिंह जलवायु परिवर्तन की चुनौती को भविष्य के विश्व युद्ध की नौबत तक मानते हैं।

राजेंद्र सिंह के नेतृत्व में जल खोज यात्रा अपने अंतिम पड़ाव दक्षिण अमेरिकी देश ब्राजील से लौटकर 28 सितंबर को राजस्थान, भारत पहुंची है। ब्राजील सहित कई देशों के अपने यात्रा अनुभवों को श्री सिंह 30 सितंबर को साझा करने वाले हैं। यह कार्यक्रम 30 सितंबर को सवेरे 10 से 11 के बीच फेसबुक लाइव होगा। इस कार्यक्रम में डॉ, इंदिरा खुराना वक्ता के रूप में मौदूग रहेंगी और राजेंद्र सिंह मुख्य वक्ता के रूप में अपनी यात्रा के अनुभव साझा करेंगे। फेसबुक लाइव का विषय है जलवायु परिवर्तन से विस्थापन:विश्व युद्ध की तैयारी।

न्यू इंडिया अब्रॉड से एक विशेष बातचीत में राजेंद्र सिंह कहते हैं कि जलवायु परिवर्तन के कारण आज भारत सहित पूरी दुनिया मौसम की अतिवादी स्थितियों (एक्सट्रीम वेदर कंडीशंस) का सामना कर रही है। अधिक बरसात, अत्यधिक सर्दी या जबर्दस्त गर्मी मौसम की अतिवादी स्थितियां हैं।

जिन इलाकों में सूखा पड़ता था अब वहां बाढ़ के हालात होते हैं। राजस्थान मौसम की अतिवादी स्थितियों का ज्वलंत उदाहरण है। पूरी दुनिया के लिए जलवायु परिवर्तन एक बड़ी चुनौती है और यदि इस दिशा में कुछ ठोस नहीं किया गया तो इस वजह से बड़े पैमाने पर विस्थापन और यहां तक कि विश्व युद्ध की स्थितियां भी पैदा हो सकती हैं।

श्री सिंह कहते हैं लेकिन इस चुनौती को लेकर न तो अभी समाज में जागरूकता है और न सरकारों में सक्रियता। विश्व मंचों से जो लक्ष्य तय किये जाते हैं उन्हे लेकर विकसित देश ही कोताही बरत रहे हैं। वे अपनी जिम्मेदारी विकासशील देशों पर ठेल रहे हैं जबकि विकासशील देश अपनी स्थानीय विकास चुनौतियों से जूझ रहे हैं।

ऐसे में शिक्षित समाज को आगे आना होगा और शेष समाज को जलवायु परिवर्तन की चुनौतियों से अवगत कराना होगा। हमारी कोशिश भी यही है कि पूरी दुनिया जलवायु परिवर्तन को भी एक बड़ी चुनौती के रूप में जाने और सब मिलकर इस पर गंभीरता से जमीनी स्तर पर काम करें।

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