- राजेंद्र शेंडे
न्यू इंडिया को आजकल सुर्खियों के आधार पर परिभाषित किया जा रहा है। हाल की एक सुर्खी थी- भारत 2023 में दुनिया का सबसे अधिक आबादी वाला देश बन गया है। दूसरा सुर्खी थी- भारत यूनाइटेड किंगडम को पछाड़कर दुनिया की पांचवीं सबसे बड़ी अर्थव्यवस्था बन गया है। वह देश जिसने न केवल भारत पर बल्कि दुनिया के तमाम देशों पर शासन किया, 20वीं शताब्दी में वह दुनिया के सबसे गरीब देशों में से एक बनकर रह गया है।
मैं भारत को योग जैसी जीवंत प्राचीन प्रथाओं के आधार पर परिभाषित करता हूं, जो मन और शरीर को एकजुट करती हैं। आईटी में भारत को उसकी अद्वितीय सॉफ्ट पावर, सबसे अधिक युवा दिमाग वाली विशाल आबादी के साथ उसे दुर्जेय पारिस्थितिक चुनौतियों से निपटने के समाधान के रूप में परिभाषित किया जा रहा है। आज भारत दुनिया की सभी बड़ी अर्थव्यवस्थाओं में सबसे तेजी से बढ़ती अर्थव्यवस्था है। कोविड-19 महामारी से बाहर निकलने के बाद नया भारत नेट जीरो संकल्प के माध्यम से नई जलवायु महामारी का सामना करने के लिए भी आश्वस्त है।
वायु प्रदूषण और जलवायु परिवर्तन एक ही सिक्के के दो पहलू हैं। भारत के कई शहर, मुख्य रूप से मेट्रो शहर कुख्यात रूप से प्रदूषित है। प्रधानमंत्री मोदी की सरकार वायु प्रदूषण के खिलाफ कार्रवाई को अब स्वास्थ्य खर्चे बचाने और उच्च उत्पादकता बनाए रखने से भारी लाभ लेने के एक उपकरण के रूप में मानती है। इसलिए जैव ईंधन के रूप में सौर ऊर्जा और इथेनॉल को बड़े पैमाने पर बढ़ावा देकर जीवाश्म ईंधन पर अति-निर्भरता को कम किया जा रहा है। भारत के पास अब दुनिया की 5वीं सबसे बड़ी सौर ऊर्जा क्षमता, 4वीं सबसे बड़ी पवन ऊर्जा, 6वीं सबसे बड़ी पनबिजली क्षमता है। भारत ने संयुक्त राष्ट्र से वादे के अनुरूप गैर-जीवाश्म विद्युत क्षमता का लक्ष्य नौ साल पहले ही हासिल कर लिया है। उसका लक्ष्य है कि 2030 तक 50 प्रतिशत गैर-जीवाश्म स्थापित क्षमता हासिल कर ली जाए।
हालांकि बड़े कैनवास से देखें तो तस्वीर थोड़ी निराशाजनक दिखती है। भारत अभी भी 2023-एसडीजी रैंकिंग (112 वें) में काफी नीचे है। वैश्विक लक्ष्यों को प्राप्त करने के लिए केवल आठ साल बचे हैं और देश पटरी से उतर गया लगता है। कई लोग एसडीजी पर 'असभ्य और अल्पविकसित' सामान्य मानदंडों को अपनाकर देशों को रैंक करने के मापदंडों की तरफ इशारा करेंगे, जिनमें ऐतिहासिक समस्याओं और वैश्विक जलवायु अन्याय का ध्यान नहीं रखा गया है। लेकिन यह रैंकिंग मुश्किलों के बाद दिखने वाली उम्मीद का एक तरीका है।
भारत के नीति निर्माताओं के लिए 1.4 अरब की विविध आबादी के बीच आर्थिक विकास की आवश्यक दर को बनाए रखना, शेष 15 प्रतिशत आबादी को गरीबी से बाहर निकालना, उनकी भलाई के इंतजाम करना और प्राकृतिक संसाधनों के इस्तेमाल में संतुलन में बनाए रखना बड़ी चुनौतियां हैं। लेकिन अच्छी बात ये है कि इन चुनौतियों का समाधान साहस और नई नीतियों के जरिए किया जा रहा है।
इन समस्याओं को दूर करने और स्थायी समाधान खोजने के लिए भारत ने साझेदारी और सह निर्माण का तंत्र अपनाया है। साझेदारी योजनाओं के कार्यान्वयन में तेजी लाने का प्रमुख जरिया है। भारत-फ्रांस सौर गठबंधन और ग्रीन हाइड्रोजन पर नॉर्वे के साथ सहयोग इसके उदाहरण हैं।
भारत का 7500 किलोमीटर का तटीय क्षेत्र, 2500 किलोमीटर की हिमालय रेंज और 1600 किलोमीटर का पश्चिमी पर्वत न केवल देश के मौसम को परिभाषित करता है बल्कि संपदा का खजाना भी हैं। तटीय क्षेत्र ज्वारीय ऊर्जा की खान हैं। उत्तरी हिमालय रेंज स्वच्छ ऊर्जा भंडारण के लिए आवश्यक लिथियम सहित दुर्लभ खनिजों का संभावित स्रोत है। मध्य और पूर्वी हिमालय पर्वतमाला बड़े पैमाने पर जल-संचयन के अवसर हैं। भारत के रेगिस्तान का 250,000 वर्ग किमी सौर-खदान है जिसका पहले से ही दोहन किया जा रहा है। भारत आईटी की सॉफ्ट पावर और अंतरिक्ष प्रौद्योगिकी में तेजी से तरक्की कर रहा है।
भारत के लिए आज जो मायने रखता है, वह सिर्फ उसकी बढ़ती आबादी नहीं है। वह है देश के मूल्य, जिन्हें देशवासियों ने हजारों वर्षों से संजोया है और 'न्यू इंडिया' बनने के लिए अपने डीएनए में शामिल किया है। ये मूल्य दबा दिए गए थे। 10 शताब्दियों से अधिक समय तक विदेशी आक्रमणों के कारण अदृश्य बने हुए थे। पारिस्थितिक चुनौतियों से निपटने का उपाय इन्हीं मूल्यों में निहित है।
राजेंद्र शेंडे: यूएनईपी के पूर्व निदेशक, आईआईटी के पूर्व छात्र और ग्रीन टेरे फाउंडेशन के संस्थापक निदेशक