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'अमेरिका में वामपंथी इको सिस्टम हिंदुत्व के खिलाफ झूठे नेरेटिव बना रहा है'

जब अकादमिक के माध्यम से हिंदुत्व, हिंदू मान्यताओं, आस्था संरचना आदि पर क्रूर हमले की रणनीतिक योजना बनाई जाती हैं तो पश्चिम में रहने वाले सभी हिंदुओं के लिए जागने का समय (wakeup call) है। यह कहना है लेखक निखिल ए.का।

महाराष्ट्र के पुणे शहर के पास भीमा कोरेगांव नाम की एक जगह है जहां ब्रिटिश सेना और मराठा योद्धाओं के बीच एक जंग लड़ी गई थी। ब्रिटिश सेना ने मराठाओं से लड़ने के लिए महार दलित रेजिमेंट बनाई थी। इस रेजिमेंट की बदौलत ब्रिटिश इस जंग को जीतने में कामयाब हुए। 31 दिसंबर 2017 को इस जीत के जश्न को लेकर एक सभा का आयोजन किया गया था।

ब्रिटिश सेना में सभी जातियों और धर्मों के लोग थे। इनमें मराठा भी थे तो महार, सिख, मुस्लिम, ईसाई और यहां तक ​​​​कि यहूदी भी शामिल थे।

सम्मेलन में भारत के वामपंथियों ने जाति को गलत तरीके से पेश करने में कोई कसर नहीं छोड़ी थी। भारतीय वामपंथियों ने इस लड़ाई को अत्याचारी ब्राह्मणों पर उत्पीड़ित दलितों की जीत बताया था जो कि हकीकत में ऐसा नहीं था। ब्रिटिश सेना में सभी जातियों और धर्मों के लोग थे। इनमें मराठा भी थे तो महार, सिख, मुस्लिम, ईसाई और यहां तक ​​​​कि यहूदी भी शामिल थे।

इस मामले में गौतम नवलखा, आनंद तेलतुम्बडे, सुधा भारद्वाज और 2017 एल्गर परिषद के कई अन्य आयोजकों पर यूएपीए अधिनियम के तहत मुकदमे दर्ज किए गए।

वर्ष 2017 में इस सम्मेलन के दौरान वामपंथी संगठनों और एल्गर परिषद ने हिंदुओं और विशेष रूप से ब्राह्मणों को कोसा। नफरत भरे भाषणों के अलावा वामपंथियों ने हिंदुओं और ब्राह्मणों के खिलाफ अपमानजनक नारे लगाए। इसका परिणाम यह हुआ कि हिंसा भी हुई, संपत्ति को भी नष्ट किया गया और काफी लोगों की मौत भी हुई। इस मामले में गौतम नवलखा, आनंद तेलतुम्बडे, सुधा भारद्वाज और एल्गर परिषद के कई अन्य आयोजकों पर यूएपीए (गैरकानूनी गतिविधि रोकथाम अधिनियम) के तहत मामला दर्ज किया गया।

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