इंद्रनील बसु-रे
एक मंद रोशनी वाले कमरे में दुनिया भर के बोझ हर तरफ से दबाते हुए लगते हैं। आसपास की दीवारें बंद होती दिखती हैं। हर कदम पर दम घुटता का लगता है। विचार बेकाबू हो जाते हैं। निराशा और चिंता की खाई चौड़ी होने लगती है। प्रियजनों के फोन उठाने उठाने का मन नहीं करता। उनके मैसेज देखने की इच्छा नहीं होती। ऐसे में नाइटस्टैंड पर रखी दवाई की शीशी ही त्वरित समाधान नजर आती है। यह एक संघर्ष है, बंद दरवाजों के पीछे लड़ी जाने वाली मूक लड़ाई है, जिसमें बिस्तर से बाहर निकलने जैसा सरल कार्य भी बड़ी चुनौती बन जाती है। यह मानसिक स्वास्थ्य से जूझते इंसान की अंदरूनी जद्दोजहद की महज एक झलक है, जो बाकी लोगों को नहीं दिखती लेकिन जो इसे झेलता है, उसके लिए कष्टदायी वास्तविकता होती है।
यह महज किस्सा या कहानी नहीं है बल्कि एक वैश्विक संकट की झलक है जो खतरनाक स्तर तक पहुंच रही है। विश्व स्वास्थ्य संगठन (WHO) के अनुसार दुनिया भर में मानसिक विकारों के 30 करोड़ से अधिक मामले आ रहे हैं। हर 8 में से 1 व्यक्ति मानसिक विकार से पीड़ित है। अमेरिका में स्थिति विशेष रूप से गंभीर है जहां पांच वयस्कों में से एक से अधिक यानी 57.8 मिलियन लोग मानसिक बीमारी के साथ जी रहे हैं। इनमें पुरुषों की संख्या 18.1% तो महिलाओं की संख्या 27.2% है।
एक और चीज है जो इस मुद्दे को जटिल बना रही है। 2021 में 19.7 मिलियन अमेरिकी वयस्को ने नशे की बीमारी के खिलाफ जंग लड़ी जो वयस्क आबादी का 7.1% है। इन वयस्कों में से लगभग 74% शराब की लत से जूझ रहे थे जबकि लगभग 38% अवैध नशीली दवाओं का इस्तेमाल करते थे। परेशान करने वाली बात यह है कि हर आठ वयस्कों में से एक ऐसा था जो शराब और नशीली दवा दोनों का इस्तेमाल करता था। 8.5 मिलियन अमेरिकी वयस्क मानसिक स्वास्थ्य विकार और मादक द्रव्यों के उपयोग दोनों से परेशान था।
मानसिक स्वास्थ्य को अनदेखा किया जाए या समय पर इलाज न किया जाए तो यह आत्महत्या तक भी पहुंच सकता है। संयुक्त राज्य अमेरिका में लोगों की मौत के पीछे आत्महत्या 11वां प्रमुख कारण है। अकेले 2021 में ही 48,183 लोगों ने आत्महत्या की थी। कोविड-19 महामारी ने स्थिति को विकराल बना दिया है। सीडीसी के एक अध्ययन से पता चला है कि 2019 और 2020 के बीच आत्महत्या की दर में 10.5% की वृद्धि हुई है।
ऐसा नहीं है कि मानसिक स्वास्थ्य अमीरों को प्रभावित नहीं करता। इस त्रासदी की भेंट कई मशहूर हस्तियां भी चढ़ चुकी हैं। हम कई ऐसे मशहूर लोगों को खो चुके हैं जिनके पास प्रसिद्धि, सफलता और पैसा सबकुछ था। मशहूर कॉमेडियन और अभिनेता रॉबिन विलियम्स ने गंभीर अवसाद और चिंता की वजह से 2014 में अपनी जान दे दी थी। लिंकिन पार्क के प्रमुख गायक चेस्टर बेनिंगटन ने 2017 में आत्महत्या कर ली थी। उन्होंने अवसाद और मादक द्रव्यों के सेवन के साथ अपने संघर्षों पर खुलकर चर्चा की थी। स्वीडिश डीजे और रिकॉर्ड निर्माता एविसी ने भी मानसिक स्वास्थ्य के मुद्दों और प्रसिद्धि के दबाव में टूटकर 2018 में खुदकुशी कर ली थी। सेलिब्रिटी शेफ और टेलीविजन होस्ट एंथनी बोर्डेन बाहरी दुनिया के लिए एक साहसी और संपूर्ण जीवन जीने वाले शख्स थे, इसके बावजूद 2018 में उन्होंने मौत को गले लगा लिया था।
मानसिक स्वास्थ्य एक वैश्विक और राष्ट्रीय संकट हैं। भारतीय-अमेरिकी समुदाय भी इससे अछूता नहीं है। हाल के आंकड़े बताते हैं कि 5 में से 1 भारतीय अमेरिकी मानसिक बीमारी का अनुभव करता है। यह 5 वयस्कों में से 1 के राष्ट्रीय औसत के करीब है। भारतीय अमेरिकियों में सबसे आम मानसिक बीमारियां चिंता विकार (15.3%), मनोदशा विकार (13.6%) और मादक द्रव्यों के उपयोग संबंधी विकार (11.3%) हैं। हालांकि विशेष चिंता की बात यह है कि मानसिक बीमारी वाले श्वेत अमेरिकियों की 43.7% की तुलना में केवल 38.4% भारतीय अमेरिकियों को ही 2020 में इसका इलाज मिल सका। यह असमानता भारतीय अमेरिकियों के सामने आने वाली अनूठी चुनौतियों को उजागर करती है जिसमें सांस्कृतिक बाधाएं और मानसिक स्वास्थ्य सेवाओं तक पहुंच में चुनौती शामिल हैं।
भारतीय-अमेरिकी समुदाय की इस अनूठी चुनौती के मद्देनजर ध्यान देने योग्य बात यह है कि समाधान हमारी अपनी सांस्कृतिक विरासत में छिपा है। योगाभ्यास भारतीय संस्कृति की पहचान है। अब अमेरिका सहित पूरे विश्व में इसे पहचान मिल चुकी है। अमेरिका में अधिकांश लोग योग को शारीरिक लचीलेपन और फिटनेस का जरिया मानते हैं लेकिन वो इसके मानसिक स्वास्थ्य पर गहन प्रभाव से अनजान हैं। योग स्वास्थ्य का एक समग्र दृष्टिकोण प्रदान करता है। योग केवल शारीरिक मुद्राओं के बारे में नहीं है। इसमें ध्यान जैसे अभ्यास भी शामिल हैं जो मानसिक स्पष्टता और भावनात्मक संतुलन लाते हैं।
योग के समग्र दृष्टिकोण और मानसिक स्वास्थ्य देखभाल पर हाल ही में टाइम ने अपने एक लेख में प्रकाश डाला है। मानसिक स्वास्थ्य जागरूकता और इलाज की उपलब्धता में वृद्धि के बावजूद अमेरिका में मानसिक स्वास्थ्य के पैमाने पर हालात खराब होते जा रहे हैं। लेख मनोवैज्ञानिक निदान और उपचार की प्रभावकारिता पर सवाल उठाता है और अधिक समग्र दृष्टिकोण अपनाने का सुझाव देता है। यह योग और ध्यान जैसे वैकल्पिक तरीकों की खोज का महत्व बताता है जो न केवल लक्षणों का इलाज करते हैं बल्कि मानसिक व भावनात्मक संकट के मूल कारणों का भी निदान करते हैं।
योग और ध्यान के लाभ केवल उपाख्यान या प्राचीन ज्ञान में निहित नहीं हैं, वे तेजी से आधुनिक विज्ञान द्वारा मान्य किए जा रहे हैं। मनोचिकित्सा इंटरनेशनल में प्रकाशित एक समीक्षा में चिंता, अवसाद और पीटीएसडी सहित विभिन्न मनोवैज्ञानिक स्थितियों के लिए एकीकृत चिकित्सा के रूप में योग की प्रभावकारिता पर जोर दिया गया है। समीक्षा से पता चलता है कि योग अकेले मानक औषधीय उपचार द्वारा प्राप्त प्रभावों से परे जाकर लक्षणों को कम करने में मदद कर सकता है।
इसी तरह नेशनल सेंटर फॉर कॉम्प्लीमेंटरी एंड इंटीग्रेटिव हेल्थ (एनसीसीआईएच) ने चिंता और मनोदशा संबंधी विकारों जैसी स्थितियों के लिए ध्यान, योग और विश्राम के नियमित उपयोग की सिफारिश करते हुए एक डाइजेस्ट प्रकाशित किया है। मेडिकल न्यूज टुडे ने भी इसका समर्थन करते हुए कहा है कि योग और ध्यान केंद्रीय तंत्रिका तंत्र और प्रतिरक्षा प्रणाली दोनों पर सकारात्मक प्रभाव डालते हैं जिससे व्यक्ति की भलाई की समग्र भावना में सुधार होता है।
योग जर्नल ने ध्यान के अंतहीन लाभों पर एक लेख प्रकाशित किया है। इसमें विशेष रूप से चिंता के लिए मंत्र और योग निद्रा जैसी गहरी विश्राम तकनीक के बारे में बताया गया है। बी.एस.आई.सी.सी. एडवांसेज मानसिक विकारों के लिए योग की नैदानिक उपयोगिता पर चर्चा करता है और न्यूरोबायोलॉजिकल तंत्र में अंतर्दृष्टि प्रदान करता है।
इंटरनेशनल जर्नल ऑफ योग भी इन निष्कर्षों की पुष्टि करता है जिसमें कहा गया है कि योग और ध्यान अकेले ही मानक औषधीय उपचार से प्राप्त प्रभावों से आगे जाकर चिंता, अवसाद और पीटीएसडी सहित कई मनोवैज्ञानिक लक्षणों को कम करने में मदद कर सकते हैं।
अमेरिका में मानसिक स्वास्थ्य की वजह से आर्थिक नुकसान का आंकड़ा चौंकाने वाला है। ये खर्च सालाना 193 अरब डॉलर से ज्यादा का बताया जाता है जो कैंसर, हृदय रोग और मधुमेह की संयुक्त लागत जितना है। मानसिक स्वास्थ्य के इलाज पर खर्च किए गए प्रत्येक 2 डॉलर के लिए अर्थव्यवस्था की उत्पादकता में 1 डॉलर कम हो जाता है। इस उच्च लागत वाले परिदृश्य में योग और ध्यान आर्थिक रूप से मददगार विकल्प नजर आते हैं। इनमें निवेश भी न्यूनतम होता है- बस एक शांत जगह और कुछ मिनट चाहिए होते हैं। इसका मानसिक और शारीरिक लाभ तो वैज्ञानिक रूप से सिद्ध है।
हमारे मन के अंधेरे कोनों में जहां निराशा और चिंता अक्सर हावी रहती है, शांति और स्पष्टता का एक अप्रयुक्त भंडार मौजूद रहता है। योग और ध्यान, भारतीय संस्कृति में गहराई से बुनी गई प्राचीन प्रथाएं, हमारे भीतर इन शांत स्थानों तक पहुंचने का जरिया बनाती हैं। अब तो वैज्ञानिक समुदाय तेजी से इसके प्रभावों को मान्यता दे रहा है।
मानसिक स्वास्थ्य संकट सिर्फ आंकड़ों की कहानी नहीं है, यह कई लोगों के लिए वास्तविकता है, जो अक्सर छिपी हुई रहती है लेकिन गहरा असर डालती है। इसका व्यक्तियों और समाज पर वित्तीय बोझ बहुत अधिक पड़ता है। राहत की बात ये है कि यहां पास ऐसे साधन मौजूद हैं जो एक तरह से मुफ्त और वैज्ञानिक रूप से मान्य हैं।
इसलिए जब भी लगे कि हर रास्ता बंद हो रहा, दुनिया असहनीय सी लगने लगे तो याद रखें कि राहत बस कुछ गहरी सांस जितनी दूर है। अमेरिकन एकेडमी फॉर योग इन मेडिसिन 30 सितंबर को मानसिक स्वास्थ्य पर एक वेबिनार आयोजित कर रहा है, जिसमें विशेषज्ञ चिकित्सक योग के मानसिक स्वास्थ्य पर असर पर चर्चा करेंगे। यह दिमाग का विस्तार करने और आत्मा को समृद्ध करने के बारे में है। क्या आप अपने अंदर की इस परिवर्तनकारी यात्रा के लिए तैयार हैं?
(लेखक मेम्फिस, टेनेसी, यूएसए स्थित एक कार्डियोलॉजिस्ट, मेडिटेशियन और योगी हैं। वह अमेरिकन एकेडमी फॉर योगा इन मेडिसिन के संस्थापक और अध्यक्ष हैं। वह कार्डियोवैस्कुलर चिकित्सा में योग का सिद्धांत और अभ्यास के प्रधान संपादक भी हैं।)