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CERN साइंटिस्ट डॉ. अर्चना बोलीं, विज्ञान को जादू की छड़ी बना सकते हैं भारतीय, बशर्ते...

डॉ. अर्चना ने कहा कि भारतीय छात्र बहुत मेहनती और जुगाड़ू हैं। वह किसी भी हालात में काम निकालने का हुनर जानते हैं। मुश्किलें बहुत सी हैं, लेकिन वो जानते हैं कि कैसे उससे पार पाना है। उनकी यही काबिलियत उन्हें वैज्ञानिक समुदाय के बीच पहचान देती है।

डॉ. अर्चना को राष्ट्रपति ने प्रवासी भारतीय सम्मान से नवाजा है। 

साल 2012 में जब हिग्स बोसोन पार्टिकल की ऐतिहासिक खोज हुई थी, तब भारत के लिए खुश होने की दो वजहें थीं। पहली, इससे इंसानों को प्रकृति के सिद्धांतों को समझने में मदद मिलेगी। दूसरा, CERN यानी यूरोपियन ऑर्गनाइजेशन फॉर न्यूक्लियर रिसर्च की जिस टीम ने ये खोज की थी, उसमें भारत की डॉ. अर्चना शर्मा भी शामिल थीं। अर्चना भारत से इकलौती वैज्ञानिक थीं, जो इस टीम में थीं। उन्हीं अर्चना से न्यू इंडिया अब्रॉड ने भारत में वैज्ञानिक संभावनाओं और आगामी उम्मीदों को लेकर बातचीत की।

डॉ. अर्चना उन 27 लोगों में शामिल थीं, जिन्हें इंदौर में आयोजित भारतीय प्रवासी दिवस सम्मेलन के दौरान प्रवासी भारतीय सम्मान से राष्ट्रपति ने सम्मानित किया था। अर्चना जिनीवा स्थित दुनिया की सबसे बड़ी पार्टिकल फिजिक्स लैब सीईआरएन में सीनियर स्टाफ साइंटिस्ट हैं। वह सीएमएस जेम कोलैबोरेशन की संस्थापक भी हैं। वह LHC यानी लार्ज हैड्रोन कोलाइडर पर CMS (कॉम्पैक्ट म्यूऑन सोलनॉइड) से जुड़े प्रयोग में भागीदारी कर रही हैं। वह यह संभावना तलाश रही हैं कि सीएमएस का प्रयोग शुरू करने के सबसे संवेदनशील डिटेक्टर को कैसे ट्रिगर किया जाए और कैसे ट्रैक किया जाए।

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