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भारतीय डायस्पोरा का महोत्सव : लोग साथ आते गए, कारवां बनता गया..

हाल में सम्पन्न प्रवासी भारतीय दिवस सम्मेलन भारत की समृद्धि को एक बार फिर से संजोने का महोत्सव था। यह एक नाद था कि किस तरह भारतवंशियों ने पिछले दो वर्षों के दौरान कोरोना नाम की घातक महामारी की दीवार को लांघकर अपनी विजय-यात्रा जारी रखी।

प्रवासी भारतीय दिवस के हाल ही में संपन्न हुए 17वें संस्करण को दो तरह से नहीं देखा जा सकता। बेशक, यह एक शानदार सफलता रही जो हर तरह के माहौल से ऊपर थी। बात सिर्फ इतनी नहीं है कि भारतीय मूल के सैकड़ों लोग समंदरों को पार करके केवल यह सुनने के लिए जमा हुए कि उन्होंने किस तरह 'अंगीकृत धरती' पर अपने देश के परचम को लहराया, और न ही यह उन अत्यधिक प्रतिष्ठित लोगों के एकत्र होने का महज एक अवसर था जो भारत की राष्ट्रपति से सर्वोच्च प्रवासी सम्मान पाने वाले थे। यह भारत की समृद्धि को एक बार फिर से संजोने का महोत्सव था।

यह एक नाद था कि किस तरह भारतवंशियों ने पिछले दो वर्षों के दौरान कोरोना नाम की घातक महामारी की दीवार को लांघकर अपनी विजय-यात्रा जारी रखी। वास्तव में इससे कोई फर्क नहीं पड़ता कि 17 मिलियन का भारतीय डायस्पोरा या 33 मिलियन भारतीय मूल के लोग विदेश में रह रहे हैं। फर्क इससे पड़ता है कि भारत के लोगों ने लगभग हर क्षेत्र में अपनी छाप छोड़ी है। ऐसी छाप जिससे शायद जलन होने लगे।

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