अमेरिकी कंपनी डाउ केमिकल्स से 7400 करोड़ रुपये का अतिरिक्त मुआवजा दिलाने की भारत सरकार की अपील को देश के सुप्रीम कोर्ट ने खारिज कर दिया है। भारत सरकार ने भोपाल गैस पीड़ितों के लिए यूनियन कार्बाइड कॉर्पोरेशन और उसकी सहायक कंपनियों से अतिरिक्त मुआवजा दिलाने के लिए क्यूरेटिव पिटीशन दाखिल की थी।
सरकार की तरफ से हाल में सुप्रीम कोर्ट में दाखिल किए गए आधिकारिक आंकड़ों में बताया गया है कि 2-3 दिसंबर 1984 की रात को भोपाल में यूनियन कार्बाइड के प्लांट में गैस लीक होने से 5295 लोगों की मौत हुई थी और 40 हजार से अधिक लोग गंभीर रूप से प्रभावित हुए। भारत सरकार का कहना था कि इस मामले में यूनियन कार्बाइड ने पीड़ितों को 470 मिलियन डॉलर (लगभग 715 करोड़ रुपए) का मुआवजा दिया था, लेकिन यह पर्याप्त नहीं था। इसलिए यूनियन कार्बाइड को बाद में खरीदने वाली कंपनी डाउ केमिकल्स से अतिरिक्त मुआवजा दिलवाया जाए।
सरकार का कहना था कि इस हादसे के निशान बरसों बाद तक लोगों को परेशान करते रहे हैं, ऐसे में वह पीड़ितों को अधर में नहीं छोड़ सकती। सुनवाई के दौरान सरकार का कहना था कि सुप्रीम कोर्ट ने 1989 में एक लाख से ज्यादा पीड़ितों को ध्यान में रखकर हर्जाना तय किया था, लेकिन जैसे-जैसे समय बीता, गैस पीड़ितों की संख्या ज्यादा हो गई। ऐसे में हर्जाना भी बढ़ना चाहिए।
सुप्रीम कोर्ट ने मंगलवार को दिए अपने फैसले में कहा कि दो दशक के बाद इस केस को दोबारा से नहीं नहीं खोला जा सकता। पीड़ितों को नुकसान की तुलना में करीब 6 गुना मुआवजा दिया जा चुका है। अब यूनियन कार्बाइड कंपनी पर और अधिक मुआवजा देने का बोझ नहीं डाला जा सकता।
कोर्ट ने कहा कि 2004 में जब कार्यवाही समाप्त हुई थी, तब यह माना गया था कि मुआवजा राशि पर्याप्त है। कोर्ट का कहना था कि हम निराश हैं कि सरकार ने त्रासदी के दो दशक तक इस पर ध्यान नहीं दिया और अब इस मुद्दे को उठाने का कोई औचित्य नहीं है। सुप्रीम कोर्ट ने पहले दिए गए हलफनामे के मुताबिक गैस कांड पीड़ितों के लिए बीमा पॉलिसी तैयार न करने के लिए भी सरकार को फटकार लगाई और इसे घोर लापरवाही बताया।
इससे पहले, जनवरी में आखिरी सुनवाई के दौरान सुप्रीम कोर्ट ने टिप्पणी करते हुए कहा था कि अदालत को पीड़ितों से पूरी सहानुभूति है लेकिन वह इस तथ्य पर अपनी आंखें बंद नहीं कर सकती कि 1989 में जब समझौता हुआ था तब सरकार भी उसमें पक्षकार थी। तब सरकार ने मुआवजे के आदेश की समीक्षा की मांग तक नहीं की थी। कोर्ट ने सवाल उठाया था कि क्या सरकार को यह समझने में 25 साल लग गए कि मुआवजा बहुत कम है? क्या आप 100 साल के बाद भी मामले को फिर से खोलने की मांग करेंगे?