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भारत-कनाडाई सांसद संख्या में कई लेकिन प्रभावशाली नहीं: दोसांझ

उज्जल दोसांझ कहते हैं कि भारतीय मूल के संसद सदस्यों की संख्या पर उत्साहित होने के बजाय यह समय समुदाय के सदस्यों के लिए संसद में और साथ ही व्यापक सामाजिक संदर्भ में अधिक राजनीतिक दबदबा हासिल करने की दिशा में काम करने का है।

Photo by Guillaume Jaillet / Unsplash

जस्टिन ट्रूडो की लिबरल पार्टी कनाडा में सरकार बनाने के लिए सत्ता में वापस आ गई है और न्यू डेमोक्रेटिक पार्टी (एनडीपी) के नेता जगमीत सिंह ने बर्नबाई साउथ की अपनी सीट फिर से जीत ली है। पूर्व मंत्री हरजीत सज्जन, अनीता आनंद और बर्दीश चागर सहित 17 भारतीय-कनाडाई हैं जो अपनी सीटों से चुने गए हैं। 2019 में हुए चुनावों की तुलना में इस बार ज्यादा बदलाव देखने को नहीं मिला। 2019 में पंजाबी मूल के 19 सहित 20 भारतीय-कनाडाई सांसद चुने गए थे, जिनमें से चार कैबिनेट मंत्री बने।

उज्जल दोसांझ। photo : Twitter

कनाडा के पहले इंडो-कनाडाई प्रांतीय नेता उज्जल दोसांझ को लगता है कि कई नेताओं ने चुनाव केवल इसलिए जीता है क्योंकि वे सही चुनावी जिले में सही पार्टी का प्रतिनिधित्व कर रहे थे और सीट जीतने का उनकी व्यक्तिगत लोकप्रियता या प्रभाव से कोई लेना-देना नहीं था।

भारत के अंग्रेजी दैनिक समाचार पत्र टाइम्स ऑफ इंडिया को दोसांझ ने बताया कि चाहे भारतीय मूल के चार मंत्री हों या दो, यह बात मायने नहीं रखती। यहां तक कि पोर्टफोलियो भी मायने नहीं रखते। जरूरी यह है कि एक मंत्री या सांसद के रूप में भारतीय कनाडाई नेता महत्वपूर्ण मुद्दों को प्रभावी ढंग से टेबल पर रख सकें।

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