पिछले दिनों अमेरिका के आसमान में उड़ते गुब्बारे ने दुनियाभर की मीडिया में सुर्खियां बटोरीं। मगर यह उस तरह का गुब्बारा नहीं था जो एक उत्साही बच्चा हवा में उड़ाता है। यह कोई पतंग भी नहीं थी जो आसमान पर आवारगी के गोते लगा रही थी। यह एक किस्म का 'जासूसी' गुब्बारा था जिसके प्रयोग बीते कुछ समय से चीन कर रहा है ताकि यह जान सके कि उसके 'दोस्त' और 'दुश्मन' आखिर कर क्या रहे हैं।
'रंगे हाथ' पकड़े जाने पर जैसे किया जाता है, चीन ने वैसा ही किया और ड्रैगन इसमें माहिर भी है। उसने मासूमियत दिखाते हुए दुनिया पर ही तोहमत लगा दी और ऐसे जताया मानो 'निर्दोष' गुब्बारा राह भटक गया था। इस पतंगबाजी के शुरुआती प्रयास में ड्रैगन ने यह जतलाने की कोशिश की कि जिस गुब्बारे के बारे में हंगामा बरपा है, वह तो महज मौसम का मिजाज जानने के लिए उड़ान पर था।
उसी समय लैटिन अमेरिका के ऊपर एक अन्य गुब्बारे के उडा़न भरने की रिपोर्ट सामने आई, जो स्पष्ट रूप से वायुमंडल का अध्ययन कर रहा था। फिर कहा गया कि गुब्बारा एक 'हवाई पोत' था, या जो कुछ भी उसका मतलब था। खैर हड़बड़ाई अंतरराष्ट्रीय बिरादरी को शांत करने के लिए मीडिया में खबरें चलीं कि विभाग के प्रभारी व्यक्ति को 'ठिकाने' लगा दिया गया है। यह संदेश देने की कोशिश हुई कि जमीनी नियंत्रित एक गुब्बारा भटकने की हिमाकत कैसे कर सकता है।
लेकिन तब तक चीन के राष्ट्रपति को इस बात का अहसास हो चला था कि मासूमियत का लबादा ओढ़कर वह जो कोलाहल कर रहे हैं, उस पर कोई भरोसा नहीं कर रहा। हालांकि पिछले कुछ वर्षों से बीजिंग यह जताने की जद्दोजहद में है कि वह अंतरराष्ट्रीय कानूनों और रीति-रिवाजों की परवाह करता है। अगर वह गुब्बारा वाकई मौसम का मिजाज जानने के लिए हवा में गोते लगा रहा था तो उसे इसके बारे में अमेरिका को अलर्ट कर देना चाहिए था।
लेकिन उसने वाशिंगटन का तब तक इंतजार किया जब तक कि उसने यह मुद्दा खुद नहीं उठाया क्योंकि तब तब वह 'मौसमी गुब्बारा' मोंटाना को पार कर चुका था और माना जाता है कि वहां पर परमाणु हथियारों वाले कई ठिकाने हैं। लेकिन जब अमेरिका ने इस गुब्बारे को मार गिराया तो चीन की प्रतिक्रिया उतने हंगामे वाली नहीं थी जिसमें कि वह माहिर है।
अब अमेरिकी खुफिया एजेंसियां दुनिया को बता रही हैं कि जासूसी गुब्बारे पीपल्स लिबरेशन आर्मी की सरपरस्ती में आए थे और हो सकता है कि उतने समय में भारत और जापान सहित 40 से अधिक देशों की जासूसी कर ली गई हो। अब अगर वाशिंगटन को सब कुछ पता था तो उसने भी इसे स्पष्ट कारणों से गुप्त रखा। कुछ राष्ट्रीय सुरक्षा मुद्दों पर सार्वजनिक रूप से चर्चा नहीं की जाती इसलिए यह कहना भोलापन होगा कि भारतीय खुफिया तंत्र को इस प्रकार की खुफिया जानकारी एकत्र करने की जानकारी नहीं थी।
एफबीआई को लग रहा है कि 'जासूसी-यान' विरोधियों के संचार नेटवर्क को निशाना बनाकर काम करने के लिए भेज गया था। इस बारे में अधिक जानकारी तब हासिल होगी जब समुद्र की गहराइयों से गुब्बारे का मलबा निकाल लिया जाएगा। इससे कोई फर्क नहीं पड़ता कि लक्षित क्षेत्र क्या थे लेकिन गुप्त निगरानी के लिए उच्च तकनीक के साथ ही 'हत्यारे' और 'शिकारी-हत्यारे' उपग्रह ही काम में नहीं लिए जाते, गुब्बारे और पतंगें भी काम आती हैं। बुद्धिमत्ता के इस खेल में कुछ भी 'आदिम' नहीं है।