अफगानिस्तान में इस वक्त एक ऐसी त्रासदी की पुनरावृति हो रही है, जिसके बारे में किसी ने सपने में भी नहीं सोचा होगा। हालांकि यहां के हालात कुछ अलग वास्तविकता बयां कर रहे हैं। देश के ग्रामीण और उपनगरीय इलाकों में तालिबान आराम से कब्जा जमा रहा है और अफगान सेना उसका मुकाबला भी नहीं कर रही है। काबुल में बैठी अशरफ गनी की सरकार और वाशिंगटन में बैठे राष्ट्रपति जोसेफ बाइडेन और उनका प्रशासन विषम परिस्थितियों के चलते कुछ ठोस नहीं कर पा रहे हैं। वैसे काबुल और वाशिंगटन अब भी मानते हैं कि तालिबान के हमले से लड़ा जा सकता है और एक राष्ट्रीय सुलह सरकार किसी भी तरह से बना सकती है।
अक्टूबर 2001 में अफगानिस्तान से खदेड़े गए तालिबान का मानना है कि इस बार वक्त उसके पक्ष में है। पुरानी कहावत है "आपके पास घड़ियां हैं, हमारे पास समय है।" इस समूह ने अक्सर अमेरिकी और नाटो सैनिकों का उपहास किया है, जो पहली बार अफगानिस्तान आने पर अपनी स्टॉप क्लॉक सेट करते हैं और जाने का समय देखना शुरू कर देते हैं।