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अमेरिका में दवाओं की कीमतें होंगी कम, राष्ट्रपति बाइडेन ने किया वादा

नेवादा यूनिवर्सिटी में अपने संबोधन में राष्ट्रपति बाइडेन ने प्रतिबद्धता जताई कि वह न केवल मेडिकेयर लाभार्थियों के लिए बल्कि सभी अमेरिकियों के लिए दवाओं की कीमत कम करना चाहते हैं। राष्ट्रपति के इस आश्वासन का भारतवंशी डॉक्टरों ने स्वागत किया है।

प्रेसिडेंट जो बाइडेन (twitter / @presidentbidenden)

(डॉ. मनोज शर्मा और मनीष पाण्डेय)
अमेरिकी दुनिया की किसी भी अन्य देश की तुलना में दवाओं पर सबसे ज्यादा खर्च करते हैं। इसे देखते हुए बाइडेन प्रशासन के अजेंडे में दवाओं की कीमतों को तत्काल कम करना भी है ताकि अमेरिकियों को बेहतर स्वास्थ्य सेवा मिल सके। लास वेगास स्थित नेवाडा यूनिवर्सिटी (यूएनएलवी) में हाल ही में राष्ट्रपति बाइडेन के भाषण का भी यही मुद्दा रहा।

इस मौके पर राष्ट्रपति बाइडेन ने अमेरिकियों के बेहतर स्वास्थ्य को सुनिश्चित करने में डॉक्टर, नर्स और सार्वजनिक स्वास्थ की भूमिका का जिक्र किया। हालांकि उनका ज्यादा जोर दवाओं की कीमत कम करने पर रहा। राष्ट्रपति का ये कदम जरूरतमंद अमेरिकियों के लिए आर्थिक रूप से मददगार साबित होगा क्योंकि जीवनरक्षक दवाओं में उनकी आय का एक बड़ा हिस्सा खर्च हो जाता है।

आमतौर पर देखा गया है कि हर साल जनवरी या जुलाई में दवाओं की कीमतें बढ़ जाती हैं। वर्ष 2022 में इन दोनों महीनों में पिछले साल की तुलना में औसतन प्रति दवा कीमत क्रमश: 150 डॉलर (12 हजार रुपये से अधिक) या 10% और 250 डॉलर (20 हजार रुपये से अधिक) या 7.8% की वृद्धि हुई।

राष्ट्रपति के मंहगाई कम करने वाले कानून के तहत निर्माताओं को दवाओं में छूट देनी होती है। कानून के तहत मेडिकेयर एंड मेडिकेटेड सर्विसेज (सीएमएस) सेंटर ने मेडिकेयर पार्ट बी के साथ बीमा के लिए 27 दवाओं की कीमतों को कम करने की भी घोषणा की है।

यूएनएलवी में अपने संबोधन में राष्ट्रपति ने प्रतिबद्धता जताई कि वह न केवल मेडिकेयर लाभार्थियों बल्कि सभी अमेरिकियों के लिए दवाओं की कीमत कम करना चाहते हैं ताकि उन पर अतिरिक्त बोझ न बढ़े।

राष्ट्रपति बाइडेन के बयान की सराहना करते हुए मेडिसिन के क्लीनिकल प्रोफेसर डॉ. सतीश कठुला ने न्यू इंडिया एब्रॉड को बताया कि एक ऑन्कोलॉजिस्ट होने के नाते मैं रोजाना कई रोगियों से जीवनरक्षक कैंसर दवाओं पर होने वाले खर्च के बारे में सुनता हूं। कैंसर की कुछ नई दवाओं पर एक मरीज सालाना 100,000 डॉलर (करीब 82 लाख रुपये) से अधिक खर्च करता है जबकि अमेरिकियों की प्रति व्यक्ति औसत वार्षिक आय लगभग 36,000 डॉलर (करीब 29 लाख रुपये) है। कनाडा या अन्य यूरोपीय देशों की तुलना में अमेरिका में यह अधिक है।

डॉ. कठुला अमेरिकन एसोसिएशन ऑफ फिजिशियन ऑफ इंडियन ओरिजिन (AAPI) के उपाध्यक्ष भी हैं। उन्होंने कहा कि कैंसर की जेनरिक दवाओं की कीमतें भी अधिक हैं। चिंता की बात ये भी है कि किसी दवा के लॉन्च होने के बाद हर साल उसकी लागत बढ़ती जाती है। इस लिहाज से बढ़ती कीमतों पर सरकार का नियंत्रण स्वागतयोग्य है।

(प्रो. मनोज शर्मा नेवाडा विश्वविद्यालय, लॉस वेगास में सामाजिक और व्यवहारिक स्वास्थ्य विभाग के अध्यक्ष हैं। मनीष पांडेय वाशिंगटन डीसी में हावर्ड विश्वविद्यालय में फुलब्राइट प्रोफेसर एवं पीएचडी स्कॉलर हैं।)

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