अमेरिका में रहने वाले हर 12 भारतीय में से एक के पास कोई दस्तावेज नहीं है। यह दावा माइग्रेशन पॉलिसी इंस्टीट्यूट की ओर से हाल ही में जारी एक रिपोर्ट में किया गया है।
एमपीआई ने 2019-2021 के अमेरिकी सामुदायिक सर्वेक्षण डेटा के हवाले से रिपोर्ट में कहा है कि अमेरिका में भारतीयों की कुल आबादी करीब 49 लाख है जिनमें से लगभग चार लाख भारतीयों के पास आवश्यक आव्रजन दस्तावेजों का अभाव है। हालांकि ये आंकड़ा पांच साल पहले जारी पिछली रिपोर्ट से कम है। उस रिपोर्ट में अमेरिका में अनुमानित 553,000 भारतीयों को बिना दस्तावेज़ के बताया गया था।

अमेरिका में गैर-दस्तावेज निवासियों की सबसे बड़ी आबादी वाले देशों में भारत का पांचवां स्थान है। वे अमेरिका में कुल 1.12 करोड़ अनिर्दिष्ट निवासियों में से लगभग चार प्रतिशत हैं। इस मामले में भारत से आगे मैक्सिको, ग्वाटेमाला, अल साल्वाडोर और होंडुरास का नंबर है। कैलिफोर्निया में गैर-दस्तावेजी भारतीयों की सबसे बड़ी आबादी है। अनुमानित 112,000 लोग गोल्डन स्टेट में रहते हैं।
अधिकांश भारतीय अमेरिकी समुदायों के बड़े केंद्रों में जा चुके हैं जिनमें अल्मेडा और लॉस एंजिल्स काउंटी शामिल हैं। बड़ी संख्या में अनिर्दिष्ट भारतीय फ्रेस्नो और सैन जोकिन काउंटी जैसे कृषि क्षेत्रों में चले गए। एमपीआई डेटा के मुताबिक सटर -युबा काउंटी क्षेत्र - में करीब 3,000 अनिर्दिष्ट भारतीय रहते हैं। इस कृषि क्षेत्र में 1800 के दशक के उत्तरार्ध में भारतीय आप्रवासन का एक समृद्ध इतिहास है।
2018 में इस रिपोर्टर की जांच से पता चला था कि अमेरिका में एक तिहाई से अधिक अनिर्दिष्ट भारतीय वरिष्ठ नागरिक थे जिनकी उम्र 55 या उससे अधिक थी। बिना दस्तावेज़ वाले निवासियों को अधिकांश राज्यों में स्वास्थ्य देखभाल जैसा कोई लाभ नहीं मिलता है। हालांकि कैलिफोर्निया ने कम आय वाले गैर-दस्तावेजी निवासियों को मुफ्त स्वास्थ्य देखभाल प्रदान करने के लिए पिछले साल अपने मेडिकल कार्यक्रम का विस्तार किया है।
आव्रजन वकील साइरस मेहता ने न्यू इंडिया अब्रॉड को बताया कि अमेरिका में अधिकांश गैर-दस्तावेज भारतीयों के पास वीज़ा ओवर स्टे है। वीज़ा ओवर स्टे वाले लोग आमतौर पर पर्यटक वीज़ा जैसा अस्थायी वीज़ा लेकर हवाई मार्ग से आते हैं और वीज़ा समाप्त होने के बाद रुक जाते हैं।
मेहता ने कहा कि कई अनिर्दिष्ट भारतीय दशकों से अमेरिका में रह रहे हैं और वैध रूप से वहां रहने की राह देख रहे हैं। शरण एक ऐसा रास्ता है लेकिन भारत से शरण के मामलों को साबित करना मुश्किल है। इसके लिए आवेदकों को "उत्पीड़न का खौफ" या "उत्पीड़न की संभावना" को साबित करना होता है।
मेहता ने कहा कि भारत एक लोकतांत्रिक देश है लेकिन ऐसे आरोप भी हैं कि मोदी प्रशासन में कई लोगों को लगता है कि सरकार के उत्पीड़न के डर से उन्हें देश से बाहर जाना होगा। अल्पसंख्यक समुदाय के कई लोग जो मानते हैं कि भारतीय पुलिस उनकी रक्षा नहीं करेगी, उन्होंने भी अमेरिका में शरण के लिए आवेदन किया है और शरण हासिल की है।
मेहता ने बताया कि बिना दस्तावेज वाले आप्रवासियों के अमेरिका में जन्मे बच्चे अपने माता-पिता को प्रायोजित कर सकते हैं। आव्रजन पर अत्यधिक सतर्कता वाले ट्रम्प प्रशासन के दौरान भी वीजा पर रहने वाले लोगों को शायद ही कभी निर्वासित किया गया था।
नॉर्थ अमेरिकन पंजाबी एसोसिएशन के कार्यकारी निदेशक सतनाम सिंह चहल हर साल अमेरिका आने वाले भारतीय प्रवासियों की संख्या पर नज़र रखते हैं। उन्होंने न्यू इंडिया अब्रॉड को बताया कि ऐसे प्रवासी अक्सर अपनी सारी संपत्ति बेचकर, कई देशों की यात्रा करने के बाद कई महीनों की पैदल कठिन यात्रा के बाद अमेरिकी धरती पर पहुंचते हैं।
उन्होंने कहा कि 2018 में 20,000 से अधिक भारतीय शरण प्रक्रिया में शामिल थे। ट्रम्प प्रशासन के दौरान शरण चाहने वाले कई लोगों ने अपने मामलों की सुनवाई से पहले दो या उससे भी ज्यादा समय तक आव्रजन और सीमा शुल्क प्रवर्तन हिरासत में बिताए।
चहल ने 2019 की रिपोर्ट में 153,000 भारतीयों की संख्या में गिरावट का उल्लेख किया। उनका कहना है कि भारत से ख़ासकर पंजाब से लोग अपनी ज़मीन और संपत्ति वापस पाने के लिए लौट रहे हैं। अमेरिका भारतीय प्रवासियों को अच्छा भविष्य नहीं देता है। कुछ अच्छी नौकरियां हैं लेकिन जीवन यापन की लागत अधिक है। इसके अलावा ऐसे लोगों को हमेशा बेहद डर में जीना पड़ता है और उनके सिर पर निर्वासन का खतरा मंडराता रहता है। लेकिन आप प्रवासियों को अमेरिका आने से रोक नहीं सकते। यह अमेरिकी सपने का वादा है।