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विशेष लेखः यज्ञोपवीत के 3 धागे तीन लोकों के प्रति नैतिक कर्त्तव्य निर्वहन का बोध कराते हैं

यज्ञोपवीत धारण करने की परंपरा 2500 वर्ष पहले तक पूरे विश्व में विद्यमान थी तथा अन्य मतावलंबियों की उद्दण्डता के कारण अब यह परंपरा भारत में ही रह गई है। मुझे भारत की संस्कृति का यह चिह्न किसी भी प्रकार के अन्य धार्मिक एवं परवर्ती सभ्यताओं के बाह्य चिह्नों से कमतर नहीं लगता है।

अमेरिकी यात्रा की तैयारी- 8/ सातवां रत्न- यज्ञोपवीत

मानव की स्पर्धा मानव से ही है। इस धरती पर मनुष्य से बढ़कर बुद्धिमान एवं मनुष्य से ही बढ़कर मूर्ख कोई प्राणी नहीं है। मानव की समझदारी जहां धरती के लिए वरदान हो जाती है, वहीं उसकी मूर्खता अभिशाप सिद्ध होती है।

यदि कोई जन्मदाता के महत्त्व को नकारता है तो इसका अर्थ है कि उसका नैतिक विकास नहीं हो सका, वह मूर्ख है।

मनुष्य के बारे में 3 महत्वपूर्ण बातें हैं - प्रथम है, उसका जन्म। दूसरा - उसके ज्ञान व समझ का स्तर और तीसरा है, उसका प्रकृति एवं समाज के प्रति सरोकार।

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