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बदलाव: दुनिया का सबसे बड़ा 4डे वर्किंग वीक परीक्षण UK में भी शुरू

सप्ताह में चार दिन काम करने के लिए किया जा रहा यह परीक्षण दरअसल एक पायलट प्रोजेक्ट है। इसका उद्देश्य छह महीने में कर्मचारियों की उत्पादकता को मापना है कि क्या वे एक दिन कम काम करके भी समान परिणाम दे सकते हैं? परीक्षण में 70 से अधिक कंपनियां और 3,300 कर्मचारी भाग ले रहे हैं।

Photo by Glenn Carstens-Peters / Unsplash

ब्रिटेन में सप्ताह में चार दिन काम करने से जुड़ा दुनिया का सबसे बड़ा परीक्षण शुरू हो गया है। इसमें 70 से अधिक कंपनियां और 3,300 कर्मचारी भाग ले रहे हैं। ब्रिटेन की अर्थव्यवस्था के विभिन्न क्षेत्रों में हजारों श्रमिकों ने वैश्विक अध्ययन के लिए साइन-अप किया है और इनसे सप्ताह में चार दिन काम कराया जा रहा है जबकि पूरा वेतन दिया जा रहा है।

सप्ताह में चार दिन काम करने के लिए किया जा रहा यह परीक्षण दरअसल एक पायलट प्रोजेक्ट है। इसका उद्देश्य छह महीने में कर्मचारियों की उत्पादकता को मापना है कि क्या वे एक दिन कम काम करके भी समान परिणाम दे सकते हैं? इसमें बैंकिंग, हॉस्पिटेलिटी, केयर और एनिमेशन स्टूडियो आदि की लगभग 70 कंपनियों ने दुनिया के सबसे बड़े पायलट प्रोजेक्ट में भाग लेने के लिए साइन अप किया है।

Harley working in the Studio Republic office, Winchester
इस कैंपेन को आमतौर पर तीन तरह से फायदे की नीति माना गया है। इसमें कर्मचारियों, कंपनियों और जलवायु की मदद करना शामिल है। Photo by Studio Republic / Unsplash

इसमें ऑक्सफोर्ड और कैम्ब्रिज विश्वविद्यालयों के शिक्षाविदों के साथ-साथ अमेरिका में बोस्टन कॉलेज के विशेषज्ञ भी शामिल हैं क्योंकि वे थिंक टैंक ऑटोनॉमी और नॉट-फॉर-प्रॉफिट गठबंधन 4डे वीक ग्लोबल के साथ साझेदारी में प्रयोग का समन्वय करते हैं। 4डे वीक कैंपेन की ओर से एक बयान में कहा गया है कि पूरे ब्रिटेन में स्थित और 30 से अधिक क्षेत्रों का प्रतिनिधित्व करने वाले 3,300 से अधिक कर्मचारी कम से कम 100 प्रतिशत उत्पादकता बनाए रखते हुए 80 फीसदी समय के भीतर 100 फीसदी वेतन प्राप्त कर रहे हैं।

बता दें कि दुनिया भर में संयुक्त राज्य अमेरिका, कनाडा, यूके, आयरलैंड, ऑस्ट्रेलिया और न्यूजीलैंड में 150 से अधिक कंपनियों और 7,000 कर्मचारियों ने 2022 कार्यक्रम के हिस्से के रूप में 4डे वर्किंग वीक कैंपेन के छह महीने के समन्वित परीक्षणों में भाग लेने के लिए साइन-अप किया है। बोस्टन कॉलेज में समाजशास्त्र के प्रोफेसर और प्रमुख शोधकर्ता जूलियट शोर ने कहा कि इस कैंपेन को आमतौर पर तीन तरह से फायदे की नीति माना गया है। इसमें कर्मचारियों, कंपनियों और जलवायु की मदद करना शामिल है। उन्होंने समझाया कि इस आंदोलन का आधार यह है कि कई कार्यस्थलों विशेष रूप से सफेदपोश कार्यस्थलों में गतिविधि चल रही है कि क्या उत्पादकता और व्यवसाय को नुकसान पहुंचाए बिना क्या हम दिनों में कटौती कर सकते हैं। क्योंकि एक कठोर, सदियों पुरानी, ​​समय-आधारित प्रणाली से चिपके रहने का कोई मतलब नहीं है।

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