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फिजी में ही क्यों हो रहा 12वां विश्व हिंदी सम्मेलन, वजह हैरान कर देगी

देशी हिंदी बोलने वालों की दुनिया में सबसे बड़ी आबादी फिजी में ही रहती है। यह देश न्यूजीलैंड के उत्तर में लगभग 2 हजार किलोमीटर की दूरी पर है। फिजी भारत के बाहर एकमात्र ऐसा देश है, जिसने हिंदी को आधिकारिक भाषा के रूप में मान्यता दी है।

फिजी के नांदी शहर में बुधवार से 12वां विश्व हिंदी सम्मेलन शुरू हो गया। तीन दिवसीय इस सम्मेलन का आयोजन पांच साल के अंतराल के बाद किया जा रहा है। इस मौके पर भारतीय विदेश मंत्री एस जयशंकर और फिजी के राष्ट्रपति विलियम काटोनिवेरे ने विशेष डाक टिकट जारी किया। हिंदी की छह पुस्तकों का विमोचन भी किया गया। आइए बताते हैं कि इस सम्मेलन के लिए फिजी को ही क्यों चुना गया।

विश्व हिंदी सम्मेलनों की परिकल्पना 1973 में राष्ट्रभाषा प्रचार समिति, वर्धा द्वारा की गई थी। पहले विश्व हिंदी सम्मेलन का आयोजन 10-12 जनवरी 1975 को भारत के नागपुर में किया गया था। अभी तक विश्व के अलग-अलग हिस्सों में 11 विश्व हिंदी सम्मेलनों का आयोजन किया जा चुका है। 12वें विश्व हिंदी सम्मेलन के लिए फिजी के चयन के पीछे भी खास वजह है। दरअसल देशी हिंदी बोलने वालों की दुनिया में सबसे बड़ी आबादी फिजी में ही रहती है। यह देश न्यूजीलैंड के उत्तर में लगभग 2 हजार किलोमीटर की दूरी पर है।

करीब 140 साल पहले भारत के हिंदी भाषी क्षेत्रों से गिरमिटिया श्रमिकों के द्वीपों पर खेतों में काम करने के लिए भेजा गया था। गिरमिटिया या जहाजी कहे जाने वाले इन श्रमिकों ने हिंदी की अलग-अलग बोलियां बोलीं और हिंदी को समृद्ध किया। उस दौरान लगभग 61 हजार गिरमिटिया फिजी भेजे गए थे। इनमें से बहुत से लोग 1920 में ठेका खत्म होने पर वापस लौट आए, लेकिन काफी तादाद में वहीं पर बस गए।

इन श्रमिकों के वंशजों ने हिंदी को न केवल फिजी में फैलाया बल्कि मॉरीशस, दक्षिण अफ्रीका, त्रिनिदाद व टोबैगो, गुयाना और सूरीनाम जैसे कई कैरीबियाई देशों में भी विस्तार देने में अहम भूमिका निभाई। एक अनुमान के अनुसार फिजी हिंदी जिसे फिजियन बाट भी कहा जाता है, देश के लगभग 40 फीसदी आबादी की भाषा है। फिजी भारत के बाहर एकमात्र ऐसा देश है, जिसने हिंदी को आधिकारिक भाषा के रूप में मान्यता दी है।

फिजी के प्रमुख शहर नांदी में फिजी सरकार और भारतीय विदेश मंत्रालय की ओर से आयोजित 12वें विश्व हिंदी सम्मेलन में दुनिया भर से हिंदी के करीब 1200 विद्वान व लेखक भाग ले रहे हैं। इस सम्मेलन की थीम 'हिंदी-पारंपरिक ज्ञान से कृत्रिम बुद्धिमत्ता तक' रखी गई है। सम्मेलन में एक पूर्ण सत्र और 10 समानांतर सत्र होंगे जिनका विषय गिरमिटिया देशों में हिंदी; फिजी और प्रशांत क्षेत्र में हिंदी; सूचना प्रौद्योगिकी और 21वीं सदी में हिंदी; मीडिया और हिंदी को लेकर वैश्विक धारणा;भारतीय ज्ञान परंपराओं और हिंदी का वैश्विक संदर्भ;भाषायी समन्वय एवं हिंदी अनुवाद होगा।

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