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भारत के किस मंदिर की संपत्ति है बेशकीमती कोहिनूर, क्या है इतिहास

अंग्रेजों के पास पहुंचने से पहले कोहिनूर हीरा पटियाला के महाराजा रणजीत सिंह के पास था। अपने अंतिम समय में राजा की इच्छा थी कि इस हीरे का स्वामित्व जगन्नाथ मंदिर में देवता को दे दिया जाए। लेकिन अंग्रेज इसके बजाय यह हीरा अपनी महारानी को देने के लिए इंग्लैंड लेकर चले गए थे।

बेशकीमती कोहिनूर हीरा जिसे इस समय प्रदर्शन के लिए लंदन के जेवेल हाउस में रखा गया है, असल में तेलंगाना के एक मंदिर का है। इस मंदिर का नाम भद्रकाली मंदिर है जिसे वारंगल में 625 ईस्वी में चालुक्य वंश के राजा पुलकेशिन द्वितीय ने बनवाया था। बता दें कि जब काकतीय वंश के शासकों ने इस क्षेत्र का नियंत्रण हासिल किया तो उन्होंने देवी भद्रकाली को अपनी कुलदेवी बनाया और कोहिनूर को उनकी दाईं आंख में लगाया था।

काकतीय काल के दौरान ही कोल्लूर की खान से कोहिनूर हीरा निकाला गया था। 1310 ईस्वी के आसपास दिल्ली के सुल्तान अलाउद्दीन खिलजी ने अपने जनरल मलिक कफूर की मदद से कोहिनूर हीरा हासिल किया था। सूत्रों के अनुसार यह मुगल मयूर सिंहासन में जड़े पत्थरों में से एक था। इसके बाद यह कई शासकों के पास रहा और अंत जब अंग्रेजों ने 1849 में पंजाब पर कब्जा कर लिया था तब यह हीरा उनके पास आया जिसे महारानी विक्टोरिया को उपहार के तौर पर दिया गया था।

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